पनाचिक्कड़ सरस्वती मंदिर, केरल
कहा जाता है कि यह केरल का एकमात्र ऐसा मंदिर है जो देवी सरस्वती को समर्पित है, जिसे दक्षिणा मूकाम्बिका के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि ये मंदिर चिंगावनम के पास मौजूद है। मान्यता है कि इस मंदिर को स्थापित करने वाले किझेप्पुरम नंबूदिरी था। कहा जाता है कि उन्होंने यहां स्थापित प्रतिमा को ढूंढा था और पूर्व दिशा की तरफ इसे स्थापित किया था। इलके अलावा पश्चिम की तरफ एक और प्रतिमा की स्थापित है लेकिन उसका कोई आकार नहीं है इस प्रतिमा के पास एक दिया जो हर समय जलता रहता है।
श्रृंगेरी मंदिर, चिकमंगलूर, कर्नाटक
श्रृंगेरी मंदिर नामक ये मंदिर यहां के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है, जिस इस शरादाम्बा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि ज्ञान और कला की देवी को समर्पित ये मंदिर आचार्य श्री शंकर भागावात्पदा ने 7वीं शताब्दी में बनवाया था। कुछ किंवदंतियों की मानें तो 14 वीं शताब्दी के समय यहां चंदन की प्राचीन प्रतिमा को सोने और पत्थर से अंकित करके स्थापित करवाया गया था। बता दें कि इस मंदिर शारदा अंबा मंदिर भी कहते हैं।
वारंगल श्री विद्या सरस्वती मंदिर, वारंगल, आंध्र प्रदेश
देवी सरस्वती जी वारंगल श्री विद्या सरस्वती मंदिर आंध्र प्रदेश के मेंढक जिले के वारंगल में स्थित है। यहां माता सरस्वती जी की पूजा आराधना होती है। लोक मान्यता है कि कांची शंकर मठ इस मंदिर का रखरखाव करता है। इसी जगह इसी कईं देवी देवताओं के मंदिर, जैसे श्री लक्ष्मी गणपति मंदिर भगवान शनीश्वर मंदिर और भगवान शिव मंदिर भी निर्मित है।
सरस्वती मंदिर, पुष्कर, राजस्थान
सरस्वती मंदिर पुष्कर सरस्वती जी का मंदिर दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित। इसकी खासियत यहां का ब्रह्मा मंदिर है, तो वहीं विद्या की देवी माता सरस्वती जी का भी प्रसिद्ध मंदिर भी, जो इसी स्थान पर है। कहते हैं यहां माता सरस्वती जी का प्रमाण नदी के रूप में मिलता है। जहां देवी को उर्वरता और शुद्धता का प्रतीक कहा जाता है।
श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर, आंध्र प्रदेश
ये मंदिर देशभर के प्रसिद्ध मंदिरों में से माना जाता है जो आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले में मंदिर स्थित है। बता दें कि इसे बासर या बसरा के नाम से भी जाना जाता है। माता का यह मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। कुछ धार्मिक पौराणिक कथाओं के मुताबिक महाभारत युद्ध के बाद ऋषि व्यास शांति की तलाश में घूमते घूमते गोदावरी नदी के किनारे कुमारचला पहाड़ी पर पहुंच थे। यहां उन्होंने देवी की आराधना की थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर देवी ने उनको दर्शन दिए थे।