गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) से 51 कि.मी. से दूर पवह नदी के तट पर शक्तिपीठ माता आद्रवासिनी लेहड़ा देवी का मंदिर स्थित है। मान्यता है पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान अपना अधिक समय यहां इसी स्थान पर बीताया था। कहा जाता है कि भीम ने इस मंदिर में पिंडी की स्थापना की थी और इसी स्थान पर पांडव मां जगदंबा की अराधना किया करते थे। माना जाता है कि जो भी यहां सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी मन्नत अवश्य पूरी होती है।
कुछ पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार एक समय यहां पवह नदी बहा करती थी और जो आज भी नाले के रूप में मंदिर के पीछे मौजूद है। वहीं कुछ किंवदंतियों की मानें तो देवी जगदंबा सुंदर कन्या के रूप में नाव की मदद से नदी पार कर रही थीं। मां के इस सुंदर और आकर्षित रूप को देखकर नाविक ने गलत भावना से उन्हें स्पर्श करने की कोशिश की। जिससे माता जगदंबा क्रोध में आ गई और उन्होनें अपना क्रूर रूप धारण कर लिया। माता का ये रूप देखकर नाविक सहम गया और वह अपनी गलती का अहसास करता हुआ माता के चरणों में गिर गया और माफी मांगने लगा। नाविक को ऐसे देख माता उस पर तरस आ गया और उन्होनें उसे माफ़ करते हुए वरदान दे दिया कि आद्रवन शक्तिपीठ पर दर्शन करने वाले भक्त तुम्हारे दर्शन करने भी ज़रूर आएंगे।
इसके अलावा मंदिर को लेकर एक और कखा प्रचलित है जिसके मुताबिक बर्तानिया (British) शासन में एक दिन सैन्य अधिकारी शिकार करते हुए इस मंदिर में आ पहुंचें। मंदिर पर भक्तों की भीड़ देखकर उन्होंने पिंडी पर गोलियों की बौछार कर दी। जिससे वहां खून की धारा बहने लगी। खून देख कर अंग्रेज अफसर बहुत ज्यादा घबरा गया और डरकर वापिस लौट गया। कहा जाता है कि जब वह वापिस कोठी की तरफ आ रहा था तभी घोड़े सहित उसकी मौत हो गई थी। लोक मान्यता के अनुसार इस अंग्रेज अफसर की कब्र मंदिर से 1 कि.मी दूर पश्चिम में स्थित है।
[content_block id=52 slug=matched-content-unit]