हिमाचल में पड़ने वाले कांगड़ा देहरा के परागपुर गांव में अवस्थित श्री कालीनाथ महाकालेश्वर महादेव मंदिर ब्यास नदी के तट पर है। यहां पर स्थापित शिवलिंग भी अपने आप में अद्वितीय है। मान्यता है कि इस शिवलिंग में महाकाली और भगवान शिव दोनों का वास है। इसके समीप ही श्मशानघाट है जहां पर हिंदू धर्म के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने आते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां बड़े पैमाने पर मेला लगता है।
भगवती दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक हैं महाकाली। जिनके काले और डरावने रूप की उत्पति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। यह एक मात्र ऐसी शक्ति हैं जिन से स्वयं काल भी भय खाता है। उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है की संपूर्ण संसार की शक्तियां मिल कर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। उनके इस क्रोध को रोकने के लिए स्वयं उनके पति भगवान शंकर उनके चरणों में आ कर लेट गए थे। उस समय महाकाली का क्रोध चरम पर था उन्हें कुछ भी सुध-बुध न थी। अत: भगवान शिव पर उन्होंने अपना पांव रख दिया था।
अनजाने में हुए इस महापाप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें वर्षों तक हिमालय में प्रायश्चित के लिए भटकना पड़ा था। सतयुग के समय भगवान शिव से वरदान पाकर दैत्य अत्यंत शक्तिशाली हो गए। उनके पाप कर्मों से धरती माता थरथराने लगी। भगवान शिव ने योगमाया को आदेश दिया की वह महाकाली का रूप धार कर असुरों का नाश कर दें। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव भी दैत्य रूप में आ गए और दोनों में विकराल युद्ध हुआ जिससे कि देवता तक कांप उठे।
महाकाली महादेव को राक्षस जान उन पर प्रहार करने लगी तो उन्हें भगवान शंकर का रूप दिखा जिसे देखते ही उनका क्रोध शांत हो गया। अपनी भुल का प्रायश्चित करने के लिए वह हजारों वर्षों तक हिमालय में भटकती रही। माना जाता है कि ब्यास नदी के तट पर जब महाकाली भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए समाधि में मग्न हो गई तो उनके तप के प्रभाव से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें उनके पाप से मुक्त किया।
इस तरह से महाकाली को भूलवश हुए अपने महापाप से मुक्ति मिली। तभी वहां ज्योर्तिलिंग की स्थापना हुई थी और मंदिर का नाम श्री कालीनाथ महाकालेश्वर महादेव मंदिर पड़ा। सतयुग से आरंभ हुआ इस शिवलिंग का पूजन आज तक होता आ रहा है।
HAR HAR MAHADEV JI