नागर शैली के लिए मशहूर है सिद्धनाथ शिव मंदिर सैथा, शिखर में गर्भगृह छुपा होने का दावा
आपको सैथा का सिद्धनाथ मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो शहर का इकलौता संरक्षित शिवाला है। नागर शैली में बने इस मंदिर को राज्य पुरातत्व निदेशालय ने संरक्षित किया है। यह मंदिर 8वीं सदी के होने का अनुमान माना जा रहा है। आइए जानते हैं मंदिर की खास बातें…
Name: | सिद्धनाथ शिव मंदिर सैथा (Shri Siddhnath Shiv Mandir) |
Location: | Munna lal Khera, Brawan Kalan post, Saitha, Kakori, Uttar Pradesh 226101 India |
Deity: | Lord Shiva |
Affiliation: | Hinduism |
Architecture: | नागर शैली |
Creator: | |
Festivals: | Shivratri |
Completed In: | 18th Century ~ 300 years old |
हम आपको लखनऊ के खास मंदिर ‘सिद्धनाथ शिव मंदिर सैथा‘ के बारे में बताने जा रहे हैं। वैसे तो शहर-ए-अवध गुंबदों, मीनारों और इमामबाड़े के लिए जाना जाता है। लेकिन इस शहर ने बहुत से प्राचीन मंदिरों को भी धरोहरों के रूप में समेटा हुआ है। इन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक है काकोरी के सैथा का बड़ा शिवाला (सिद्धनाथ शिव मंदिर सैथा)। इसे अक्टूबर 2023 में राज्य पुरातत्व निदेशालय ने संरक्षित स्मारक की श्रेणी में रखा था।
मंदिर को संरक्षित स्मारक की श्रेणी में रखा गया
काकोरी के सैथा का बड़ा शिवाला यह शहर का पहला ऐसा शिवाला है, जो संरक्षित स्मारक की श्रेणी में आता है। इसके बारे में राज्य पुरातत्व निदेशालय की निदेशक रेनू द्विवेदी ने बताया कि मंदिर नागर शैली में बना है। इसको 18वीं सदी का माना जा सकता है। यह भी बताया कि इसके निर्माण की कहानी कोई भी क्षेत्रीय व्यक्ति नहीं जानता। अनुमान के मुताबिक इसका निर्माण 200 से 250 वर्ष पूर्व हुआ होगा। इसके आर्किटेक्चर के आधार पर इसे संरक्षित स्मारक की श्रेणी में इसे रखा गया है।
इसलिए खास है मंदिर:
- मंदिर एक मंजिल की बारादरी के ऊपर बना है, जो अष्टकोणीय है।
- मंदिर का शिखर रेखीय है जो ऊरु शृंग से युक्त है।
- मंदिर का निर्माण लखौरी ईंट और सुर्खी चूने से हुआ है।
- दीवारों पर फूलों की सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है।
- गर्भगृह में बेल बूटे की चित्रकारी देखने को मिलती है।
- गर्भगृह की हर दीवार और शिखर पर 8 आले (ताखें) हैं। जिसमे कभी देवी देवताओं की मूर्ति रही होगी जिसे कबूतरों ने गिराकर तोड़ दी।
- इसके अलावा मंदिर के पास में एक प्राचीन कुआं भी है।
शिखर में गर्भगृह छुपा होने का दावा
यहां के रहने वालों का मानना है कि इस मंदिर के शिखर में भी एक गर्भगृह छुपा है। स्थानीय निवासी शिव कुमार राजपूत की माने तो वर्ष 2000 में जब मंदिर में सफेदी की जा रही थी तो मजदूरों से शिखर पर बने आले से ईंटें गिर गई। इससे वहां पर अंदर छुपी छोटी सी गैलरीनुमा जगह मिली। वहां पर लोगों को बड़े बड़े गोबर के कंडे मिले। कंडे हटाने पर एक छोटी सी मंदिरनुमा संरचना मिली। हालांकि कोई मूर्ति नहीं थी। उसके बाद वहां पर एक छोटी सी मूर्ति रखवा दी गई। बताया कि 1975 से शिवरात्रि पर मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग आते हैं। शिवरात्रि के दिन ही शिखर के गर्भगृह में जाकर पूजन भी किया जाता है।
औरंगजेब के जमाने का है लखनऊ का सिद्धनाथ शिव मंदिर सैथा, सावन में लगता भव्य मेला
दुबग्गा में सैथा गांव के मजरा मुन्ना लाल खेड़ा में स्थित प्राचीन सिद्ध नाथ बड़ा शिवाला को पर्यटन व संस्कृति विभाग द्वारा जीर्णोद्धार कर संवारा जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि यह औरंगजेब के जमाने का है। वहीं कुछ ने बताया कि यह 300 वर्ष से अधिक पुराना मंदिर है।
लखनऊ: दुबग्गा में सैथा गांव के मजरा मुन्ना लाल खेड़ा में स्थित प्राचीन सिद्ध नाथ बड़ा शिवाला को पर्यटन व संस्कृति विभाग द्वारा जीर्णोद्धार कर संवारा जाएगा। यह मंदिर कितना पुराना है। इसके बारे में किसी को भी सही जानकारी नहीं है। हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि यह औरंगजेब के जमाने का है। वहीं कुछ ग्रामीणों ने बताया कि यह 300 वर्ष से अधिक पुराना मंदिर है।
बारादरी की छत पर बना है यह मूंदिर: यह मंदिर बारादरी की छत पर बना हुआ है। मंदिर के ग्राउंड फ्लोर पर बारादरी बनी हुई है। जिसमें मेला के अवसर पर आने वाले भक्तों को ठहरने के लिए व्यवस्था है। ग्रामीणों के अनुसार, मंदिर का निर्माण बिना सीमेंट के हुआ है। मंदिर लाखौरी ईंटों से बना हुआ है। मंदिर के अंदरूनी दीवारों व छत में नक्काशी बनी हुई है। बाहरी दीवारों पर दक्षिण भारत मंदिरों की तरह डिजाइन बनी हुई है। मंदिर में शिव लिंग व नंदी स्थापित हैं। इसकी मंदिर की व्यवस्था का देख रेख करने के लिए श्री सिद्ध नाथ मंदिर समिति बनी हुई है। समिति के अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने बताया कि मंदिर में शिव रात्रि के मौके पर भव्य मेला लगता है।सावन के महीने में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
समिति के अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने बताया कि प्राचीन मंदिर के संरक्षण के लिए बहुत प्रयास किया गया है। अब जाकर शासन से मंजूरी मिल गई है। ग्रामीणों में इसको लेकर बेहद खुशी है कि अब प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार होगा। मंदिर को संवारा जायेगा। बुधवार को पर्यटन विभाग के निर्देश पर पैकफेड के जेई अजय पाल ने यहां आकर मंदिर परिसर को देखा। मंदिर के पुजारी बाबू लाल ने बताया कि यह मंदिर सिद्ध है। भक्तगण सावन में पूजा अर्चना के लिए आते हैं।