श्रीनाथ जी मंदिर नाथद्वारा, उदयपुर, राजस्थान

श्रीनाथ जी मंदिर नाथद्वारा, उदयपुर, राजस्थान

राजस्थान के श्रीनाथ मंदिर के बारे में तो सब जानते होंगे, इस मंदिर का मुकेश अंबानी से बहुत गहरा संबंध है। कहा जाता है कि मुकेश अंबानी किसी भी शुभ काम को करने से पहले यहां ज़रूर जाते हैं। केवल मुकेश अंबानी ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था जुड़ी हुई है। यहीं कारण है मुकेश अंबाने ने अपने बेटी की शादी का सबसे पहला न्यौता भी श्रीनाथ को ही दिया था। ये सब बातें शायद बहुत से लोगों को पता होगी क्योंकि पिछले कुछ दिन नीता अंबानी की शादी से जुड़ी हर बात सुर्खियों में रही है। लेकिन आज हम आपको नीता अंबानी की शादी से जुड़े श्रीनाथ मंदिर से जुड़ी ऐसी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में शायद किसी को नहीं पता होगा।

श्रीनाथ जी मंदिर नाथद्वारा, उदयपुर, राजस्थान

Name: श्रीनाथ जी मंदिर नाथद्वारा (Shrinathji Temple)
Location: NH 8, Shiv Nagar, Nathdwara, Rajsamand District, Rajasthan 313301 India
Deities: Shrinathji (form of Lord Krishna)
Affiliation: Hinduism
Festival: Krishna JanmashtamiHoli
Architecture: Rajputana
www: nathdwaratemple.org
Opened In: 1672
Created By: Goswami Tilakayat Damodar lalji and other Goswami Descendants

दिल्ली से करीब 600 कि.मी दूर राजस्थान के नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथ जी का धाम स्थापित है।राजस्थान का ये श्रीनाथ मंदिर देशभर में अपने चमत्कारों के लिए जाना जाता है। मान्यताएं है कि इस मंदिर में आज भी बहुत चमत्कार देखने को मिलते हैं। ऐसी मान्यता है श्रीनाथ जी की भक्तों में इतनी शक्ति है कि यहां आने वाले हर भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। बता दें कि श्रीनाथ जी भगवान स्वयं श्रीकृष्ण के अवतार हैं, और वे लगभग 7 साल के थे जब से वे यहां विराजमान थे। मंदिर में स्थापित श्रीकृष्ण की इस संगमरमर काले रंग की मूर्ति को एक ही पत्थर से बनाया गया है।

पूरी दुनियाभर में ये केवल एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्रीकृष्ण को 21 टोपों की सलामी दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां के पूरे इलाके में ये इकलौता ऐसा मंदिर है जिसके राजा कोई और नहीं बल्कि नाथद्वारा के श्रीनाथ जी हैं। बता दें कि यहां स्थापित श्रीकृष्ण की प्रतिमा में हीरे जड़े हुए हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां चावल के दानों में भक्तों को श्रीनाथ के दर्शन होते हैं। इसलिए लोग यहां से चावलों के दाने लेकर जाते हैं और अपने घरों की तिज़ोरी में रखते हैं ताकि उनके घर में कभी पैसों से संबंधी कोई परेशानी न हो।

यहां रहने वाले लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले लोगों का भी मानना है यहां यानि श्रीनाथ मंदिर में आज भी भगवान श्रीकृष्ण साक्षात मौज़ूद हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार कुछ चोरों ने मिलकर भगवान की प्रतिमा में लगे इस हीरे को चुराने की कोशिश की थी, लेकिन चोर प्रतिमा से हीरे को निकाल नहीं सके। बल्कि जब चोर हीरे को निकालते तो हीरा अपने आप वापिस मूर्ति तक पहुंच जाता।

मान्यताओं के अनुसार श्रीनाथ जी मंदिर की प्रतिमा में लगे हीरे से एक बहुत ही दिलचस्प बात जुड़ी है, जिसे जानकर शायद हर कोई दंग रह जाएगा। इतना तो हम आपको बता चुके हैं श्रीनाथ मंदिर में स्थापित श्रीकृष्ण की मूर्ति में हीरे लगे हुए हैं, लेकिन अब हम आपको इससे जुड़ी ये जानकारी देने वाले हैं कि इसे लूटने के लिए कौन और कैसा आया था। 16 फरवरी 1739 में नादिर शाह ने नाथ द्वारा पर इस मंदिर पर हमला किया था, जो सिर्फ हीरा और मंदिर का बाकी का खज़ाना लूटने के लिए किया गया था। परंतु पौराणिक कथाओं की मानें तो जब नादिर शाह मंदिर में खज़ाना लूटने के आया तो मंदिर के बाहर बैठे एक फकीर ने उसे चेतावनी दी कि अगर वो मंदिर के अंदर जाएगा तो उसकी आंखों की रोशनी चली जाएगी। परंतु वो नही माना और जैसे ही उसने मंदिर के अंदर कदम रखे तो अचनाक से उसकी आंखों की रौशनी चली गई और वो मंदिर की नौ सीढ़िया तक नहीं चढ़ सका। कहते हैं नादिर शाह की आंखों की रोशनी तब लौटी थी जब उसने अपनी दाढ़ी के साथ इन्हें साफ किया था।

कैसे बना था नाथद्वारा में श्रीनाथ जी का मंदिर

9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को तोड़ने के लिए आदेश जारी किया। अनेक मंदिरों की तोडफ़ोड़ के साथ वृंदावन में गोवर्धन के पास श्रीनाथ जी के मंदिर को तोड़ने का काम भी शुरू हो गया। इससे पहले कि श्रीनाथ जी की मूर्ति को कोई नुक्सान पहुंचे, मंदिर के पुजारी दामोदर दास बैरागी ने मूर्ति को मंदिर से बाहर निकाल लिया। दामोदर दास बैरागी वल्लभ संप्रदाय के थे और वल्लभाचार्य के वंशज थे। उन्होंने बैलगाड़ी में श्रीनाथजी की मूर्ति को स्थापित किया और उसके बाद वह बूंदी, कोटा, किशनगढ़ और जोधपुर तक के राजाओं के पास आग्रह लेकर गए कि श्रीनाथ जी का मंदिर बनाकर उसमें मूर्ति स्थापित की जाए। लेकिन औरंगजेब के डर से कोई भी राजा दामोदर दास बैरागी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रहा था।

कोटा से 10 किमी दूर श्रीनाथ जी की चरण पादुकाएं आज भी रखी हुई है, उस स्थान को चरण चौकी के नाम से जानते हैं। तब दामोदर दास बैरागी ने मेवाड़ के राजा राणा राज सिंह के पास संदेश भिजवाया। राणा राजसिंह पहले भी औरंगजेब से पंगा ले चुके थे। जब किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह करने का प्रस्ताव औरंगजेब ने भेजा तो चारुमती ने इससे साफ इंकार कर दिया और रातों-रात राणा राजसिंह को संदेश भिजवाया कि चारुमती उनसे शादी करना चाहती है। राणा राजसिंह ने बिना कोई देरी के किशनगढ़ पहुंचकर चारुमती से विवाह कर लिया। इससे औरंगजेब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वह राणा राजसिंह को अपना सबसे बड़ा शत्रु समझने लगा। यह बात 1660 की है। यह दूसरा मौका था जब राणा राजसिंह ने खुलकर औरंगजेब को चुनौती दी और कहा कि “मेरे रहते हुए श्रीनाथजी की मूर्ति को कोई छू तक नहीं पाएगा”।

उस समय श्रीनाथजी की मूर्ति बैलगाड़ी में जोधपुर के पास चौपासनी गांव में थी और चौपासनी गांव में कई महीने तक बैलगाड़ी में ही श्रीनाथजी की मूर्ति की उपासना होती रही। यह चौपासनी गांव अब जोधपुर का हिस्सा बन चुका है और जिस स्थान पर यह बैलगाड़ी खड़ी थी वहां आज श्रीनाथजी का एक मंदिर बनाया गया है। 5 दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी की मूर्तियों का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह स्वयं सिहाद गांव गए। यह सिंहाड गांव उदयपुर से 30 मील एवं जोधपुर से लगभग 140 मील की दूरी पर स्थित है जिसे आज हम नाथद्वारा के नाम से जानते हैं।

20 फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण संपूर्ण हुआ और श्री नाथ जी की मूर्ति सिहाड़ गांव के मंदिर में स्थापित कर दी गई। यही सिहाड़ गांव अब नाथद्वारा बन गया।

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