स्कन्दपुराण के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र ऋषि अत्री के पुत्र सोम (चंद्रमा) का विवाह प्रजापति दक्ष की 17 पुत्रियों से हुआ। अपनी सभी पत्नियों में से वह रोहिणी नाम की पत्नी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। उनकी अन्य सभी पत्नियों को इस बात से बहुत ईर्ष्या होती।
एक दिन उनकी 16 पत्नियों ने अपने पिता दक्ष से शिकायत की। दक्ष ने सोम को समझाया कि वह अपनी सभी पत्नियों से समान प्रेम करें लेकिन चन्द्र पर उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ। अपनी आज्ञा की अवहेलना देख दक्ष ने सोम को श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से सोम लुप्त हो गए।
अन्य देवता विचलित होकर ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा श्री विष्णु की शरण में गए। विष्णु ने सोम को ढूंढकर लाने को कहा लेकिन चंद्रमा मिले नहीं तत्पश्चात ब्रह्मा ने समुद्र मंथन करने को कहा। मंथन के उपरांत एक अन्य चंद्रमा निकले।
विष्णु और अन्य देवताओं ने एकमत होकर चन्द्रमा को श्रेष्ठ माना और उसे धरतीवासियों का पालन-पोषण करने को कहा।
उसी समय पहले वाले चंद्रमा श्राप से मुक्त होकर लौट आए नए चंद्र को देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। वह हताश होकर ब्रह्मा के पास गए, ब्रह्मा ने उन्हें श्री विष्णु के पास भेज दिया। तब श्री विष्णु की आज्ञा से श्रापमुक्त चंद्रमा महाकाल वन गए। वहां जाकर शिवलिंग का पूजन करने के बाद वह देह रूप को प्राप्त हुए। तभी से उक्त लिंग सोमेश्वर कहलाए।
सोमनाथ मंदिर की गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। गुजरात के सौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र के वेरावल में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।
खास दिनों में इस मंदिर में जानें से विशेष फलों की प्राप्ति होती है जैसे शुक्ल पक्ष की द्वितीया, प्रदोष, पूर्णिमा को पूजन और अभिषेक से अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है।श्रावण मास में चंद्र ग्रह के दोष दूर करने के लिए इन की पूजा का खास महत्व है। कच्चे दूध से रूद्र अभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
इस मंदिर में चांदी, मोती, शंख, चावल, मिश्री आंकड़े के फूल और कपूर के दान का विशेष महत्व है।