लोहार्गल सूर्य मंदिर, झुंझुनू जिला, राजस्थान

लोहार्गल सूर्य मंदिर, झुंझुनू जिला, राजस्थान

सूर्य पूजन से सुख, ज्ञान, स्वास्थ्य और उन्नति की प्राप्ति होती है। राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र के झुंझुनूं जिले से 70 कि. मी. की दूरी पर अरावली पर्वत की घाटी के उदयपुरवाटी कस्बे से लगभग 10 कि.मी. दूर लोहागर्ल जगह स्थित है। यहां सूर्यदेव का मंदिर स्थित है। यह स्थान राजस्थान के पुष्कर के बाद सबसे बड़ा दूसरा तीर्थ है।

लोहार्गल सूर्य मंदिर, उदयपुरवाटी, झुंझुनू जिला, राजस्थान

स्थानीय लोगों का मानना है कि इस स्थान पर आने वाले श्रद्धालुअों की इच्छाएं पूर्ण होती हैं अौर पापों से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि सूर्यदेव ने भगवान विष्णु की तपस्या करके इस स्थान की प्राप्ति की थी। इस स्थान पर वे अपनी पत्नी संग विराजते हैं। यहां चारों अोर पहाड़ों से घिरा सूर्य कुंड है। कहा जाता है कि यहां स्नान करने से सारे पापों से छुटकारा मिलता है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार पापों से मुक्ति पाने के लिए पांडव महाभारत के युद्ध के बाद इस कुंड में आए थे। कहा जाता है कि युद्ध के बाद पांडव अपने परिजनों की मृत्यु से दुखी थे। तब श्री कृष्ण ने लाखों लोगों के पाप का दर्द देख पांडवों से कहा था कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब में उनके शस्त्र पानी में गल जाएंगे, वहीं उनका मनोरथ पूरा होगा। जब पांडवों ने यहां के सूर्यकुंड में स्नान किया तो उनके सभी शस्त्र गल गए थे। उन्होंने भोलेनाथ की उपासना करके मोक्ष की प्राप्ति की थी। पांडवों ने ही इस जगह के प्रताप को देख तीर्थ राज की उपाधि दी थी।

इस स्थान पर सूर्यदेव के पूजन अौर कुंड में स्नान हेतु बहुत से श्रद्धालु आते हैं। यहां स्नान करने से चर्म रोग अौर पापों से छुटकारा मिलता है।

ब्रह्माजी स्वयं करते हैं तीर्थ की रक्षा, यहां श्राद करने से पितरों को मिलता है मोक्ष

भारत में बहुत सारे तीर्थस्थान हैं, जहां श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया जाता है। उन्हीं में से एक तीर्थ ऐसा भी है जिसकी रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं। वह तीर्थ है राजस्थान का लोहागर। इस स्थान को पिंडदान अौर अस्थियों के विसर्जन के लिए जाना जाता है।

कहा जाता है कि यहां जिस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां की विशेषता है कि यहां विसर्जित अस्थियां पानी में ही गल जाती हैं। यहां चैत्र में सोमवती अमावस्या और भाद्रपद अमावस्या को मेला लगता है।

यहां का मुख्य तीर्थ पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं। कहा जाता है कि पर्वत के नीचे ब्रह्मह्लद है अौर ये धाराएं उसी में से निकली हैं। यहां के प्रधान देवता सूर्यदेव हैं। यहां स्थित सूर्यकुंड के आस-पास 45 मंदिर और हैं। लोहागर की परिक्रमा भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी से पूर्णिमा तक होती है।

इस तीर्थ से संबंधित एक कथा के अनुसार ब्रह्मह्लद देवताओं का प्रिय तीर्थ था।कलयुग में पापी इस कुंड में स्नान करके इसे अपवित्र न कर दें, इसके लिए सभी देवताअों ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि वे इसकी रक्षा करें। ब्रह्मा जी ने देवताअों की प्रार्थना सुनकर हिमालय के पुत्र केतु को कुंड की रक्षा हेतु यहां भेजा। केतु ने अपनी आराधना से यहां के अधिदेवता को प्रसन्न करके तीर्थ को आच्छादित कर लिया। जिससे ब्रह्मह्लद तीर्थ पर्वत के नीचे लुप्त हो गया। उसकी सात धाराएं पर्वत के नीचे से बहने लगी। वे सातों धाराएं आज भी वहां हैं।

पांडवों के मन में महाभारत के युद्ध के पश्चात महासंहार का दुख था। वे दुख से मुक्ति पाना अौर पवित्र होना चाहते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि जिस तीर्थ पर भीम की अष्टधातु की गदा गलकर पानी हो जाए समझ लेना कि वहां सब लोग शुद्ध हो गए हैं। तीर्थों की यात्रा करते हुए पांडव यहां पहुंचे तो उनके सभी शस्त्र पानी में गल गए। तभी से इस स्थान का नाम लोहागर पड़ गया।

कैसे पहुंचे: राजस्थान में सवाई माधोपुर से लुहारू तक पश्चिम रेलवे की एक लाइन पर सीकर या नवलगढ़ स्टेशन पड़ता है। यहीं पर लोहागर का नजदीकी स्टेशन है। यहां से तोर्थ तक पहुंचने के लिए बहुत सारे साधन उपलब्ध हो जाते हैं।

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