भगवान शिव का एकमात्र मंदिर जहां त्रिलोकीनाथ के मस्तक पर महात्मा बुद्ध विराजित हैं। हिंदू संप्रदाय के अनुयायी त्रिलोकीनाथ को शिव और बौद्ध संप्रदाय के अनुयायी अवलोकितेश्वर के नाम से पूजन करते हैं। हिंदुओं के इस भक्ति केंद्र को शैव पीठ भी कहा जाता है। मंदिर शिखर शैली का है, जो पत्थरों से बना है। समीप ही सीढ़ियां उतरकर बौद्ध मंदिर है। छह भुजाओं वाले भगवान त्रिलोकी नाथ का मंदिर है। सिर पर बौद्ध की आकृति है। हिंदुओं और बौद्धों के लिए यह स्थान साझा आध्यात्मिक स्थल है।
हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति से औसतन 37 किलोमीटर दूर त्रिलोकनाथ गांव है। जिसका पूर्व में नाम तुंदा गांव था। मंदिर के विषय में माना जाता है की वर्षों पूर्व इस गांव के पास ही हिन्सा गांव था। जहां टिंडणू नामक गड़रिया रहता था। वह गांव वासियों की भेड़-बकरियां चराता था लेकिन उन बकरियों का दूध कोई अज्ञात शख्स दुह ले जाता था। जिसका न तो गांव वालों और न ही गड़रिए को कुछ पता चलता।
जब काफी खोज खबर करने के बाद भी कुछ पता न चल सका तो गांव वालों ने टिंडणू पर झूठा आरोप लगा दिया कि वह ही बकरियों का दूध चुराता है। इस आरोप से टिंडणू बहुत आहत हुआ। अपने पर लगे झूठे आरोप को हटाने के लिए उसने असली चोर को ढूंढने का दृढ़ निश्चय किया। वह जी जान से असली चोर को खोजने लगा एक दिन उसने देखा एक स्थान पर जल के जलाशय से सात मानस आकृतियां निकलीं और उन्होंने बकरियों को दुहना आरंभ कर दिया।
टिंडणू ने भागकर उन्हें पकड़ना चाहा लेकिन सफेद कपड़ों में एक ही व्यक्ति को पकड़ पाया। अन्य आकृतियां अदृश्य हो गई। उस व्यक्ति ने स्वयं को छुड़वाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन छुड़ा नहीं पाया। फिर उसने टिंडणू से प्रार्थना की उसे छोड़ दे। टिंडणू को अपने पर लगे झूठे आरोप को हटाना था वह उसे गांव हिन्सा तक ले गया। वहां जाकर उसने गांव वालों को एकत्र कर चोर के विषय में बताया।
गांव वालों ने जब उस सफेद कपड़ों वाले व्यक्ति को देखा तो उन्हें वो देव स्वरूप लगा। उन्होंने घी और दूध से उस व्यक्ति का पूजन आरंभ कर दिया। व्यक्ति ने गांव वालों को बताया कि वह त्रिलोकनाथ है और यहीं पर निवास करना चाहता है। उन्हें तुंदा गांव भा गया है। फिर उन्होंने टिंडणू से कहा कि वह उस स्थान पर भी पूजन करके आए जहां से वह उन्हें लेकर आया है। साथ ही कहा जब वापिस आए तो पीछे मुड़कर न देखे।
टिंडणू उनके कहे अनुसार पूजन करने वापिस उसी स्थान पर गया तो वहां सात झरने बह रहे थे। वर्तमान में इन झरनों को सप्तधारा के नाम से जाना जाता है। टिंडणू जब पूजन करके अपने गांव लौटा तो त्रिलोकनाथ और टिंडणू दोनों पत्थर रूप में परिवर्तित हो गए। उसी दिन से तुंदा गांव का नाम त्रिलोकीनाथ पड़ा। यहां पर भव्य मंदिर बना।