श्री गणेश उच्ची पिल्लयार मंदिर: भारतवर्ष में जितने भी मंदिर है हर एक के बनने के पीछे कोई न कोई वजय ज़रूर है। एक ऐसा ही श्री गणेश का प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु में स्थित है। यहां हजारों लोग दर्शन करने आते हैं। यहां का नज़ारा बहुत ही सुंदर और भव्य है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बनने के पीछे का राज़:
Name: | श्री गणेश उच्ची पिल्लयार मंदिर – Thayumanaswami Temple, Rockfort |
Location: | Trichi, Tamil Nadu 603109 India |
Deity: | Thayumanavar Mattuvar Kuzhalammai – Lord Ganesha |
Affiliation: | Hinduism |
Architecture Type: | Dravidian Architecture |
श्री गणेश उच्ची पिल्लयार मंदिर, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
तिरुचिरापल्ली (त्रिची) नामक स्थान पर रॉक फोर्ट पहाड़ी की चोटी पर बसा हुआ है। यह मंदिर 273 फुट की उंचाई पर स्थित है। इस पहाड़ी की खास बात यह है कि इसकी तीनों चोटियो पर शिव परिवार विराजमान है, पहली पहाड़ी पर भगवान शिव का मंदिर है, दुसरी पहाड़ी पर मां पार्वती विराजमान है और तीसरी पहाड़ी पर गणेश मंदिर उच्ची पिल्लयार पर स्थित है।
इस मंदिर की स्थापना रामायण काल में हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार रावण शिव जी के साथ युद्ध करने कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। उस समय शिव जी भक्ति में लीन थे। रावण को अपनी शक्ति पर इतना अहंकार हो गया था कि वह कैलाश पर्वत को उठाने लगा तभी शिव जी ने अपने अंगूठे से ही कैलाश पर्वत का भार बढ़ा दिया जिससे वह पर्वत को हिला भी न पाया और उसके हाथ पर्वत के नीचे दब गए। इसके बाद रावण ने हार मानकर शिव जी को अपना गुरू बनाया था और उनकी तपस्या की थी। उसकी तपस्या से भगवान प्रसन्न हुए रावण ने वरदान के रूप में शिव जी से लंका में उनके महल में रहने की प्रार्थना की।
शिव जी ने उन्हे शिवलिंग दी और कहा इसे लंका ले जाओ जब भी तुम्हें कुछ चाहिए होगा इस शिवलिंग के आगे प्रार्थना करना लेकिन एक शर्त है कि उन्हे इस शिवलिंग को कहीं भी नीचे नहीं रखना है जिस जगह पर इसे रख दिया जाएगा, वह हमेशा के लिए उसी जगह पर स्थापित हो जाएगी। देवता इस बात से बहुत परेशान हुए वो राक्षसों के कुल से था इसलिए देवता नहीं चाहते थे कि वो इस शिवलिंग को लेकर लेकर जाए। सभी देवताओं ने गणेश जी से प्रार्थना की कि वो रावण को शिवलिंग ले जाने से रोके। गणेश जी ने सभी की प्रार्थना स्वीकार की।
लंका जाते-जाते रावण को लघुशंका आई अब वो शिवलिंग नीचे रखने से रहे वो शिवलिंग को पकड़ने के लिए किसी को खोजने लगे। तभी एक बालक के रूप में गणेश जी वहां प्रकट हुए रावण ने उस बालक से शिवलिंग पकड़ने के लिए आवेदन किया। गणेश ने उनकी बात मान ली और उनसे शिवलिंग पकड़ ली। रावण लघुशंका के लिए गए, गणेश जी शिवलिंग वहां रख वहां से चले गए। रावण जब वापिस आया शिवलिंग ज़मीन पर था और वहां कोई नहीं था। रावण की लाख कोशिशों के बाद भी शिवलिंग उस स्थान से न हिला। ऐसा होने पर उसे बहुत क्रोध आया और उस बालक की खोज करने लगा। भगवान गणेश भागते हुए पर्वत के शिखर पर पहुंच गए, आगे रास्ता न होने पर भगवान गणेश उसी स्थान पर बैठ गए। जब रावण ने उस बालक को देखा तो क्रोध में उसके सिर पर वार कर दिया। तभी गणेश जी ने उन्हें असली रूप में दर्शन दिए। इस दिन के बाद से उस जगह पर गणेश जी के मंदिर की स्थापना हुई।