वरदराज पेरुमाल मंदिर (Varadaraja Perumal Temple) भारत के तमिल नाडु राज्य के कांचीपुरम तीर्थ नगर में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। यह दिव्य देशम में से एक है, जो विष्णु के वह 108 मंदिर हैं जहाँ 12 आलवार संतों ने तीर्थ करा था। यह कांचीपुरम के जिस भाग में है उसे विष्णु कांची कहा जाता है। तमिल भाषा में “मंदिर” को “कोइल” या “कोविल” कहा जाता है और इस मंदिर को अनौपचारिक रूप से पेरुमल कोइल (Perumal Koil) के नाम से भी बुलाया जाता है। कांचीपुरम के इस मंदिर, एकाम्बरेश्वर मंदिर और कामाक्षी अम्मन मंदिर को सामूहिक रूप से “मूमुर्तिवासम” कहा जाता है, यानि “त्रिमूर्तिवास” (तमिल भाषा में “मू” से तात्पर्य “तीन” है)।
Name: | वरदराज पेरुमल मंदिर (Varadharaja Perumal Temple, Kanchipuram) |
Location: | RP9F+MQP, W Mada St, Nethaji Nagar, Kanchipuram, Tamil Nadu 631501 India |
Deity: | Varadharaja Perumal (Vishnu); Perundevi Thayar (Lakshmi) |
Affiliation: | Hinduism |
Architecture: | Dravidian Architecture |
Creator: | Chola Kings, later Nayaks of Thanjavur |
Completed In: | 3rd century C.E |
‘वरदराज पेरुमल मंदिर’ 40 वर्ष में एक बार पूजे जाते हैं ‘इष्टदेव’
तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित श्री वरदराज पेरुमल मंदिर का इतिहास बेहद प्राचीन व रोचक है। इस मंदिर को श्री देवराज स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता रहा है। मंदिर भगवान विष्णु जी को समर्पित है जो अथि वरदराजा या वरदराजा स्वामी के रूप में पूजे जाते हैं।
मंदिर को विशेषता है कि पूरे विश्व में यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मंदिर के इष्टदेव 40 वर्षो में एक बार पूजे जाते हैं, क्योंकि 40 साल में एक बार ही भगवान वरदराजा स्वामी की मूर्ति मंदिर परिसर में स्थित पवित्र अनंत सरोवर से बाहर आती है।
मानव जीवन में आयु के आधार पर देखा जाए तो इंसान इस मूर्ति के दर्शन एक या अधिक से अधिक दो बार ही कर सकता है। धार्मिक मान्यताओं व इतिहास के आधार पर माता सरस्वती नाराज होकर देवलोक से इस स्थान पर आ गई थीं।
इसके बाद जब सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी उन्हें मनाने के लिए आए तो उनको देखकर माता सरस्वती वेगवती नदी के रूप में बहने लगीं। ब्रह्माजी ने इस स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ करने का निर्णय लिया।
उनके यज्ञ का विध्वंस करने के लिए माता सरस्वती नदी के तीक्र बेग के साथ आईं। तब माता सरस्वती के क्रोध को शांत करने के लिए यज्ञ कौ बेदी से भगवान विष्णु श्री बरदराजा स्वामी के रूप में प्रकट हुए।
इस क्षेत्र में अंजीर के पेड़ों का एक विशाल जंगल था, इसलिए इन्हीं अंजीर के पेड़ों की लकड़ी से देवों के शिल्पकार विश्वकर्मा जी ने श्री वरदराजा की प्रतिमा का निर्माण किया था।
अंजीर को ‘अथि’ के नाम से जाना जाता है। इसी वजह से भगवान श्री वरदराजा को ‘अथि वरदराजा’ के रूप में भी जाना जाने लगा। विश्वकर्मा जी ने अथि वरदराजा की 12 फुट की मूर्ति का निर्माण किया था।
इस मंदिर को ध्वस्त करने के लिए कई मुस्लिम शासकों ने आक्रमण किया लेकिन कभी पूर्णत: ध्वस्त नहीं कर पाए। 11वीं शताब्दी के दौरान मंदिर का निर्माण महान चोल शासकों ने कराया था और इसके बाद हिन्दू राजा बार-बार इस मंदिर की मुरम्मत कराते रहे। देश ही नहीं, विदेशों तक इस मंदिर को जाना जाता है और लोग दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं।
इस मंदिर के दर्शन के लिए कांचीपुरम पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा चेन्नई इंटरनैशनल एयरपोर्ट है और यहां से मंदिर 58 किलोमीटर की दूरी पर है।
इसके अलावा कांचीपुरम ट्रेन की सहायता से आसानी से पहुंचा जा सकता है। कांचीपुरम रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 4 किलोमीटर है।