विनायक मंदिर, त्रिची (तिरुचिरापल्ली), तमिलनाडु

विनायक मंदिर, त्रिची (तिरुचिरापल्ली), तमिलनाडु

विनायक मंदिर, त्रिची से संबंधित इतिहास

कहा जाता है कि रावण के वध के पश्चात श्रीराम ने विभीषण को विष्णु के ही एक स्वरूप रंगनाथ की प्रतिमा दी। विभीषण राक्षस कुल से था इसलिए देवता नहीं चाहते थे कि वह इस प्रतिमा को लंका लेकर जाए। सभी देवताअों ने भगवान श्रीगणेश से प्रार्थना की वे उनकी सहायता करें। उस प्रतिमा के विषय में मान्यता थी कि उसे जिस स्थान पर रख दिया जाएगा वह वहीं स्थापित हो जाएगी।

विभीषण जब प्रतिमा को लेकर त्रिचि पहुंचे तो कावेरी नदी देख उनका मन स्नान करने का हुआ। वह प्रतिमा को पकड़ने के लिए किसी को खोजने लगे। तभी वहां भगवान गणेश बालक का रुप लेकर आए। विभीषण ने वह प्रतिमा उस बालक को देकर कहा कि वह इसे जमीन पर न रखें। जब विभीषण स्नान करने गया तो भगवान गणेश ने उस प्रतिमा को जमीन पर रख दिया। जब विभीषण वापिस आए तो उनको प्रतिमा को जमीन में देखकर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने बालक को खोजना आरंभ कर दिया। भगवान गणेश भागते हुए पहाड़ की चोटी पर पहुंच गए। आगे रास्ता न होने के कारण वहीं बैठ गए। जब विभीषण वहां पहंचे तो उन्होंने गुस्से में आकर बालक के सिर पर वार कर दिया। उसके पश्चात भगवान गणेश अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए। उनका वास्तविक स्वरूप देखकर विभीषण ने उनसे क्षमा मांगी अौर चले गए। तब से उस पहाड़ की चोटी पर भगवान गणेश ऊंची पिल्लयार के स्वरूप में विराजमान हो गए। कहा जाता है कि मंदिर में विराजित श्रीगणेश प्रतिमा पर विभीषण द्वारा किए वार की चोट का चिन्ह आज भी देखा जा सकता है।

तिरुचिरापल्ली का पुराना नाम थिरिसिरपुरम

माना जाता है कि तिरुचिरापल्ली को पहले थिरिसिरपुरम के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का नाम एक राक्षस के नाम पर रखा गया था। कहा जाता है कि थिरिसिरन नामक राक्षस ने इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी इसलिए इस जगह का नाम थिरिसिरपुरम पड़ गया। मंदिर के संबंध में ये भी माना जाता है कि इस पर्वत की तीनों चोटियों पर भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीगणेश स्थित हैं। जिसके कारण इसे थिरि-सिकरपुरम भी कहा जाता था। बाद में थिरि-सिकरपुरम को बदल कर थिरिसिरपुरम कर दिया गया। इस मंदिर में प्रतिदिन भगवान गणेश की 6 आरतियां की जाती हैं। यहां आदि पूरम और पंगुनी त्यौहार बड़े हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं।

कैसे पहंचे तिरुचिरापल्ली

तिरुचिरापल्ली पर हवाई मार्ग द्वारा भी पहंचा जा सकता है। त्रिचि का एयरपोर्ट मंदिर से करीब 7 कि.मी. दूर है। त्रिची से चेन्नई करीब 320 कि.मी. अौर मदुरै से 124 कि.मी. दूर है। रेल मार्ग अौर बस मार्ग द्वारा दक्षिण भारत में सभी प्रमुख शहरों से त्रिचि पहुंचा जा सकता है।

Check Also

Attack By Night: Sigrun Srivastava - Real-Life Story of Bravery

Attack By Night: Sigrun Srivastava – Real-Life Story of Bravery

Attack By Night – The night of February 14, 1980 was cold and dark. The …