विंध्यवासिनी माता मंदिर सलकनपुर, जिला सीहोर, मध्य प्रदेश

विंध्यवासिनी माता मंदिर सलकनपुर, सीहोर, मध्य प्रदेश: विजयासन माता मन्दिर

विंध्यवासिनी माता मंदिर सलकनपुर: प्राचीन विंध्यवासनी देवी का सिद्धपीठ मध्य प्रदेश कौ राजधानी भोपाल से 70 किलोमीटर दूर सलकनपुर गांव में एक 800 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 400 सीढ़ियों से जाना पड़ता है, जबकि पहाड़ी पर जाने के लिए कुछ वर्ष पहले सड़क मार्ग भी बना दिया गया है। दर्शनार्थियों के लिए रोप-वे भी शुरू हो गया है, जिसकी मदद से यहां 5 मिनट में पहुंचा जा सकता है।

विंध्यवासिनी माता मंदिर सलकनपुर

Name: विंध्यवासिनी माता मंदिर सलकनपुर (विजयासन माता मन्दिर) Vindhyawasini Mata Temple Salkanpur / Siddhpeeth of Vindhyavasni Beejasan Devi
Location: Salkanpur, Madhya Pradesh 4664461 India
Deities: Goddess Durga
Affiliation: Hinduism
Festival: Navaratri
Location: On an 800-foot summit
वास्तुकला: दक्षिणमुखी पाषाण मूर्ति है। मूर्ति के सामने भैरव जी स्थापित हैं।
निर्माण: 1100 ई. के करीब गौंड राजाओं द्वारा किला गिन्नौरगढ़ निर्माण के दौरान करवाया गया था

विध्यांचल पर्वत श्रंखला पर विराजी माता को विध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी।

श्रीमदूभागवत कथा के अनुसार, जब रक्तबीज नामक दैत्य से त्रस्त होकर देवता देवी की शरण में पहुंचे, तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवती की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।

6000 वर्ष पुराना मंदिर: विंध्यवासिनी माता मंदिर सलकनपुर

मान्यता है कि यह मंदिर 6000 साल पुराना है, जिसका जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंचने पर अनेक बार जीर्णोद्धार किया जा चुका है | इसकी व्यवस्था भोपाल नवाब के संरक्षण में होती थी। तब वहां पर अखंड धूनी और अखंड ज्योति स्थापित की जा चुकी थी, जो सालों से आज भी प्रज्वलित है। गर्भगृह में देवी की प्रतिमा स्वयंभू है, जिसे किसी के द्वारा तराशा नहीं गया परंतु बाद में चांदी के नेत्र एवं मुकुट आदि से देवी को सजाया गया।

विजयासन देवी कौ प्रतिमा के दाएं-बाएं जो 3 संगमस्मर की मूर्तियां हैं, उनके विषय में मान्यता है कि गिन्नौर किले के वीरान होने पर एक घुमक्कड़ साधु इन्हें यहां पर ले आया था। स्वतंत्र भारत की मध्य प्रदेश विधानसभा ने 1956 में इस मंदिर व्यवस्था का पृथक से अधिनियम बनाया, जो 1966 में लागू हुआ तथा मंदिर की व्यवस्था प्रजातांत्रिक तरीके से गठित समिति के हाथों में आई।

गर्भगृह के दोनों ओर द्वारपाल की स्थापना है। द्वार के ठीक ऊपर मां के सेवक लांगुरवीर अर्थात हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है।

मां विजयासन की प्रतिमा के साथ-साथ गर्भगृह में कुछ अन्य मूर्तियां विराजमान हैं। वे महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली और महागौरी की प्रतिमाएं हैं, जिन्हें एक प्रकार से वैष्णो रूप में माना जाता है।

गर्भगृह में लगभग 500 वर्षों से अधिक समय से 2 अखंड ज्योतियां प्रज्वलित हैं – एक नारियल के तेल तथा दूसरी घी की।

मंदिर के भीतर गर्भगृह के ठीक सामने भैरव बाबा की मूर्ति स्थापित है, जहां भक्त माता के दर्शनों को पूर्ण और सार्थक मानते हैं। मंदिर में ही भैरव बाबा की मूर्ति के किनारे एक धूनी है, जो 500 सालों से अखंड जल रहो है। इस जलती धूनी को स्वामी भद्रानंद और उनके शिष्यों ने प्रज्वलित किया था तथा तभी से इस अखंड धूनी की भस्म अर्थात राख को ही महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

2025 में हो जाएगा देवीलोक तैयार

मुख्यमंदिर और कॉम्प्लैक्स के पुर्निर्माण पर 5 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च की जा रही है। यहां आधुनिक रोपवे भी 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है।

कैसे पहुंचें विंध्यवासिनी माता मंदिर सलकनपुर:

सलकनपुर देवीधाम पहुंचने के लिए रेलमार्ग द्वारा होशंगाबाद रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड अथवा सीहोर जिले के बुदनी स्टेशन उतरकर वहां से बस द्वारा जाया जा सकता है।

वायु मार्ग

  • भोपाल – नसरुल्लागंज रोड पर राजा भोज एयर पोर्ट भोपाल से 70 किलोमीटर दुरी पर स्थित है।

ट्रेन द्वारा

  • बुदनी रेलवे स्टेशन से 15 कि.मी. दुरी पर स्थित है ।

सड़क मार्ग

  • भोपाल से 70 किलोमीटर दुरी पर भोपाल – नसरुल्लागंज रोड पर स्थित है ।

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