किन्नौर: जनजातीय क्षेत्र जिला किन्नौर में समुद्र तल से लगभग दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यूला कंडा में बनी प्राकृतिक झील के मध्य में विद्यमान भगवान श्री कृष्ण का मंदिर क्षेत्र वासियों के लिए धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यूला कंडा एन. एच. पर चोलिंग नामक स्थान से लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर है तथा वहां पहुंचने के लिए यूला गांव से पैदल लगभग 6-7 घंटे का समय लगता है तथा यह कंडा लगभग 80 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। यूला कंडा में 18 प्रकार के फूल व कई प्रकार की जड़ी बूटियां पाई जाती हैं तथा जन्माष्टमी के दिन इन 18 प्रकार के फूलों से लोग भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।
वनवास के दौरान पांडवों ने किया था यहां वास
पौराणिक मान्यता है कि जब पांडव 12 वर्ष के वनवास को गए थे तो कई वर्षों का वास उन्होंने हिमालय की गोद में गुजारा था तथा यूला कंडा में भी कुछ समय वास किया था। यूला कंडा में जहां एक ओर पांडवों ने अपने पद चिन्हों की छाप छोड़ी है वहीं दूसरी ओर भगवान श्री कृष्ण ने भी अपनी अलौकिक लीला की छाप छोड़ी है जिससे गांवों की उत्पत्ति के कुछ वर्षों पश्चात यूला कंडा में जन्माष्टमी पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन जो भी कंडा में विद्यामान सात रंगी फूलों व अन्य पूजा सामग्रियों से भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
नहरों में टोपी डालकर जानते हैं भविष्य को
यूला कंडा में जन्माष्टमी के दिन श्रद्धालु प्राकृतिक झील के साथ बनी नहरों में टोपी डालकर अपने भविष्य को जानते हैं तथा मान्यता है कि यदि टोपी नहर में बहती हुई एक स्थान से दूसरे स्थान तक सकुशल (बिना डूबे) पंहुच जाए तो भाग्य अच्छा होता है तथा यदि इसके विपरीत टोपी नहर में डूब जाए तो अनिष्ट माना जाता है।