गौमूत्र और उसके फायदे

गौमूत्र और उसके फायदे

सनातन धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि के देवी-देवता निवास करते हैं अर्थात गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्‍विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं। इसी कारण दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा पर गायों की विशेष पूजा की जाती है। मूलतः हर धार्मिक कार्य में सर्वप्रथम गणेश व माता पार्वती को गाय के गोबर से बने उपले बनाकर पूजा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गाय में सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा होती है।

अतः घर के आसपास गाय के होने का अर्थ है कि हम सभी तरह के संकटों से दूर रहकर सुख और समृद्धिपूर्वक जीवन जी रहे हैं। गाय माता के शरीर में जीवन के किसी भी संदर्भ से जुड़ी समस्या का समाधान मौजूद है।

  • प्रतिदिन घर में गौमूत्र का छिड़काव करें। इससे घर में 33 करोड़ देवी-देवता स्वयं घर में वास करते हैं।
  • वास्तु दोष निवारण के महंगे उपायों को अपनाने से बेहतर है आप घर में गौमूत्र का छिड़काव करें। जिससे आपके बहुत सारे वास्तु दोषों का समाधान एक साथ हो जाएगा।
  • गौमूत्र की गंध से हानिकारक सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता है। जिससे पारिवारिक सदस्य स्वस्थ रहते हैं।
  • जिस घर में नियमित रूप से गौमूत्र का छिड़काव होता है, वहां महालक्ष्मी अपना स्थायी बसेरा बना कर रहती हैं और उस घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती।
  • प्रतिदिन गौमूत्र पीने से रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।
  • गौमूत्र में गंगा मईया वास करती हैं। अत: गंगा को सभी पापों का हरण करने वाली माना गया है, अतएव गौमूत्र पीने से पापों का नाश होता है।
  • भूत प्रेत बाधा से युक्त व्यक्ति पर गौमूत्र का छिड़काव करें भूतों के अधिपति भगवान शंकर हैं। शंकर के शीश पर गंगा है। गौमूत्र में गंगा है, अतएव गौमूत्र पान से भूतगण अपने अधिपति के मस्तक पर गंगा के दर्शन कर, शान्त हो जाते हैं और उस शरीर को नहीं सताते जिस पर उन्होंने अपना अधिपत्य स्थापित कर रखा होता है। इस तरह भूताभिष्यंगता रोग से बचा जा सकता है।

उपाय: व्याधि, रोग, पीड़ा के निवारण हेतु कांसे अथवा तांबे के कलश में पानी लेकर उसमें थोड़ा सा गौमूत्र मिलाकर इस मंत्र से घर में नित्य छिड़काव करें।

मंत्र: गोपस्वामी गोकुलेन्द्रो गोवर्धनवरप्रदः। नन्दादिगोकुलत्राता दाता दारिद्र्यभञ्जनः॥

मंत्र श्रीगोपाल सहस्रनाम स्तोत्र से लिया गया है।

About Aacharya Kamal Nandlal

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