भगवान बुद्ध का जब पाटलिपुत्र में शुभागमन हुआ, तो हर व्यक्ति अपनी-अपनी सांपत्तिक स्थिति के अनुसार उन्हें उपहार देने की योजना बनाने लगा। राजा बिंबिसार ने भी कीमती हीरे, मोती और रत्न उन्हें पेश किए। बुद्धदेव ने सबको एक हाथ से सहर्ष स्वीकार किया।
इसके बाद मंत्रियों, सेठों, साहूकारों ने अपने-अपने उपहार उन्हें अर्पित किए और बुद्धदेव ने उन सबको एक हाथ से स्वीकार कर लिया।
इतने में एक बुढ़िया लाठी टेकते वहां आई।
गौतम बुद्धा: दान की महिमा
बुद्धदेव को प्रणाम कर वह बोली, ‘भगवन्, जिस समय आपके आने का समाचार मुझे मिला, उस समय मैं यह अनार खा रही थी। मेरे पास कोई दूसरी चीज न होने के कारण मैं इस अधखाए फल को ही ले आई हूं। यदि आप मेरी इस तुच्छ भेंट स्वीकार करें, तो मैं अहोभाग्य समझूंगी’।
भगवान बुद्ध ने दोनों हाथ सामने कर वह फल ग्रहण किया। राजा बिंबिसार ने जब यह देखा तो उन्होंने बुद्धदेव से कहा, ‘भगवन्, क्षमा करें! एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। हम सबने आपको कीमती और बड़े-बड़े उपहार दिए जिन्हें आपने एक हाथ से ग्रहण किया लेकिन इस बुढ़िया द्वारा दिए गए छोटे एवं जूठे फल को आपने दोनों हाथों से ग्रहण किया, ऐसा क्यों’?
यह सुन बुद्धदेव मुस्कराए और बोले, राजन्! आप सबने अवश्य बहुमूल्य उपहार दिए हैं किंतु यह सब आपकी संपत्ति का दसवां हिस्सा भी नहीं है। आपने यह दान दीनों और गरीबों की भलाई के लिए नहीं किया है इसलिए आपका यह दान ‘सात्विक दान’ की श्रेणी में नहीं आ सकता।
इसके विपरीत इस बुढ़िया ने अपने मुंह का कौर ही मुझे दे डाला है। भले ही यह बुढ़िया निर्धन है लेकिन इसे संपत्ति की कोई लालसा नहीं है। यही कारण है कि इसका दान मैंने खुले हृदय से, दोनों हाथों से स्वीकार किया है।
Pataliputra, adjacent to modern-day Patna, was a city in ancient India, originally built by Magadha ruler Udayin in 490 BCE as a small fort near the Ganges river.
It became the capital of major powers in ancient India, such as the Shishunaga Empire (c. 413–345 BCE), Nanda Empire (c. 460 or 420–325 BCE), the Maurya Empire (c. 320–180 BCE), the Gupta Empire (c. 320–550 CE), and the Pala Empire (c. 750–1200 CE). During the Maurya period (see below), it became one of the largest cities in the world. As per the Greek diplomat, traveler and historian Megasthenes, during the Mauryan Empire (c. 320–180 BCE) it was among the first cities in the world to have a highly efficient form of local self government. Afterwards, Sher Shah Suri (1538–1545) revived Pataliputra, which had been in decline since the 7th century CE, and renamed it Paṭna.
The location of the site was first identified in modern times in 1892 by Laurence Waddell, published as Discovery Of The Exact Site Of Asoka’s Classic Capital. Extensive archaeological excavations have been made in the vicinity of modern Patna. Excavations early in the 20th century around Patna revealed clear evidence of large fortification walls, including reinforcing wooden trusses.