रमजान के महीने और रोजों के महत्व को बता रहे हैं नदीम:
खास है यह महीना
इस्लाम मे इस महीने को सबसे ज्यादा रहमत वाला महीना बताया गया है। इस महीने मांगी जाने वाली दुआएं जरूर कबूल होती हैं क्योंकि अल्लाह अपने रोजेदार बंदों की फरियाद को खारिज नहीं करता है। अल्लाहताला फरमाते हैं, ‘रोजा मेरे लिए है, रोजेदार मेरी खुशी के लिए अपनी ख्वाहिशें छोड़ देता है, इसलिए उसका सवाब (फल) मैं ही दूंगा।’ इस महीने जो इबादत की जाती है, उसका पुण्य भी कई गुना ज्यादा होता है।
सिर्फ भूख-प्यास रहना नहीं है रोजा
पहली बात यह समझनी होगी कि रोजे का मतलब सिर्फ दिन भर भूखे-प्यासे रहना ही नही है। यह नियत और आत्मनियंत्रण का भी इम्तिहान है। अगर रोजा रखकर गलत काम करते रहे (जिसमे झूठ बोलना, धोखा देना, बुराई करना, गलत निगाहों से दूसरों को देखते रहना या अन्य गंदे विचारों का दिमाग मे आते रहना भी शामिल है) तो रोजा नहीं हुआ, यह सिर्फ फाका करना हुआ। इसका कोई पुण्य नहीं मिलने वाला। रोजे के दौरान पति-पत्नी को भी आपस मे संबंध बनाने की मनाही है।
रोजे और कुरआन सिफारिश करेंगे
रसूल सल्लल्लाहअलैहिवसल्लम ने फरमाया है कि हिसाब के दिन रोजे अल्लाह से सिफारिश करेंगे – ए परवरदिगार मैंने इस बंदे को खाने, पीने और उसकी तमाम दूसरी ख्वाहिशों से दिन में रोक दिया था, आप इसके हक में मेरी सिफारिश कबूल कर लीजिए। इसी तरह कुरआन अल्लाह से सिफारिश करेगा कि – ए परवरदिगार मैंने इस बंदे को रात में सोने से रोक दिया था, आप इसके हक में मेरी सिफारिश कबूल कर लीजिए। रसूल फरमाते हैं – अल्लाह दोनों की सिफारिशें कबूल कर लेगा।
जन्नत में दाखिला आसान
रसूल सल्लल्लाहअलैहिवसल्लम ने फरमाया है कि जन्नत में आठ दरवाजे होंगे लेकिन उनमें से एक दरवाजा खासतौर पर रोजेदारों के लिए होगा। रोजेदार से मतलब उन लोगों से है, जिन्होंने अपनी जिंदगी में रोजे अल्लाह का हुक्म मानते हुए, अपने को तमाम बुराइयों से बचाते हए सबसे ज्यादा रखे होंगे।