यंत्रों एवं इनके उपयोग का उल्लेख वेदों एवं पुराणों में विस्तृत रूप से मिलता है। वेदों में मंत्रों को जीवन दर्शन एवं रहस्य सूत्ररूप में ही निरूपित किया गया है। सनातन धर्मानुसार ब्रह्मांड में कई प्रकार की शक्तियां निरंतर ऊर्जा के रूप में प्रवाहित होती हैं। पौराणिक काल में ही ऋषि-मुनियों को इन शक्तियों का आभास था तथा उन्हें इस बात का भी ज्ञान था कि इन शक्तियों का यदि विधिवत तरीकों से आह्वान किया जाए तो ये मनुष्यों को उनके कष्टों एवं दुखों से मुक्ति दिलाने में उनकी सहायता करती हैं एवं मनुष्य को जीवन में सही दिशा एवं मार्ग दर्शन प्राप्त होता है। मंत्र जाप करते समय यदि संबंधित देवी या देवता का यंत्र भी स्थापित कर लिया जाए तो जप के प्रभाव में वृद्धि होती है।
सर्वसिद्धि सरस्वती मंत्र और यंत्र मां वाग्देवी सरस्वती की पूजा हेतु उपयोग में लिया जाता है। पढ़ाई में कंसन्ट्रेशन न बनती हो, राहू अथवा बुध ग्रह के कारण जनित दोषों के कारण शिक्षा में व्यवधान आता हो, तो इस यंत्र का रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र, वसंत पंचमी अथवा अन्य शुभ मुहूर्त में अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से भोजपत्र पर निर्माण करें अथवा चांदी के पत्तर पर धातु की कलम से इसे शुभ महूर्त में बनाएं।
यंत्र की स्थापना उत्तरमुखी होकर और सफ़ेद कपड़े पर रखकर करें। यंत्र निर्माण के पश्चात् प्रतिदिन निम्न मंत्र का सरस्वती मां के समक्ष जाप करें –
मंत्र: ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वतयै बुधजन्नयै स्वाहा।
इस प्रयोग मे सफ़ेद कपड़े पहन कर शुद्ध घी का दीपक जलाएं, चंदन से धूप करें, सफ़ेद फूल अर्पित करें, सफ़ेद चन्दन से तिलक करें, मावे के पेड़े का भोग लगाएं। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना से शिक्षा में बाधा दूर होती है और पढाई में निश्चित सफलता मिलती है।