विश्व एक व्यायामशाला है, जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं: स्वामी विवेकानंद
भारतीय संस्कृति के मूल मंत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की प्रासंगिकता से सर्वप्रथम स्वामी विवेकानंद ने ही पूरे विश्व को परिचित कराया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस मूल मंत्र का और सुदृढ़ तरीके से प्रचार-प्रसार किया।
स्वामी विवेकानंद: वसुधैव कुटुंबकम
वसुधैव कुटुंबकम – भारतवर्ष के महानतम व्यक्तित्वों में से एक, जो गुरु बनने से पहले एक कर्तव्यनिष्ठ शिष्य थे, एक महान विचारक, सेवक, समाज सुधारक होने के साथ सनातन धर्म के आधुनिक विश्लेषक तथा ध्वजवाहक भी थे, और ऐसे तमाम अन्य विशेषणों से सुसज्जित जीवन के स्वामी जो आगे चलकर सभी के प्रिय स्वामी विवेकानंद कहलाए। वह भारतीय ज्ञान परंपरा के वो मील के पत्थर हैं, जहाँ पहुचने के बाद जीवन के सारे द्वंद्वों का उत्तर अपने आप स्पष्ट हो जाता है। उनका अनुकरण करने पर जीवन, धर्म और न्याय का अर्थ अपनी पूरे सापेक्षता के साथ स्पष्ट हो जाता है।
स्वामी विवेकानंद को सनातन धर्म और उसके आधुनिक स्वरूप का परस्पर ज्ञान था। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन नैतिक और मानव कल्याणकारी विचारों के प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया। उनके उन्नत प्रयासों के बदौलत भारत और भारतीयता का वैश्विक संवर्धन तो हुआ ही, साथ ही साथ विश्व पटल पर उचित स्थापत्य भी प्राप्त हुआ।
आज भी हर भारतीय के मन-मस्तिष्क में 11 सितंबर सन् 1893 में अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म संसद में उनके द्वारा दिया गया ओजस्वी भाषण जीवित है। स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत के हिंदू धर्म और उसके गौरवशाली इतिहास से पूरे विश्व समुदाय को परिचित करवाया था। उन्होंने अपने ऐतिहासिक भाषण की शुरुआत ही हिंदी में “अमेरिका के भाइयों और बहनों” से की थी और कहा,
“मुझे ऐसे धर्म पर गर्व है, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाया है। हम न केवल सार्वभौम सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मों को सच मानते हैं।”
उनके इस प्रेरणादायक भाषण पर आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो (Art Institute of Chicago) में पूरे दो मिनट तक तालियाँ बजती रहीं। स्वामी विवेकानंद के उस व्याख्यान को सुनकर पश्चिम के लोग भारतीय धर्म और संस्कृति की तरफ काफी आकर्षित हुए। उनको यह दृढ़ विश्वास था कि “अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना यह विश्व अनाथ हो जाएगा।”
अगर हम आज के परिप्रेक्ष्य में भारत के बढ़ते कद और उसके प्रभाव की बात करें तो इसमें स्वामी विवेकानंद के द्वारा दर्शायी गई अध्यात्म-विद्या एक प्रमुख भूमिका में नज़र आती है। विश्व के हर कोने से आज लोग आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भारत की धरती पर आ रहे हैं। आज का यह नया भारत या कह लें कि ‘न्यू इंडिया‘ विश्व शांति और भाईचारा का एकमात्र ध्वजवाहक है। जहाँ एक तरफ विश्व आज कोरोना महामारी के साथ-साथ अनेक तरह के संघर्षों से जूझ रहा है, वहीं भारत विश्व कल्याण की भावना के साथ आगे बढ़ रहा है। वर्ष 2020 से लेकर अब तक भारत ने परंपरागत रूप से अपने पड़ोसी देशों तत्पश्चात संपूर्ण विश्व में कोरोना की दवाइयाँ एवं ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के अंतर्गत कोरोना वैक्सीन भेजकर पूरी दुनिया को विश्व बंधुत्व का संदेश दिया। भारत के द्वारा इन निर्णायक घड़ियों में भेजी गई मदद की पूरे विश्व में सराहना हुई और भारत को एक संकटमोचक के रूप में जाना गया।
जैसा कि हम सब जानते हैं, भारत अपने आजादी के अमृतकाल में G20 2023 की अध्यक्षता कर रहा है, जिसका विषय “वसुधैव कुटुम्बकम” (पूरी पृथ्वी ही एक परिवार है) या “एक पृथ्वी – एक कुटुंब – एक भविष्य” है। भारत के द्वारा इस सम्मेलन के विषय का चुनाव कोई संयोग नहीं है। यह विषय भारत की एक समृद्ध, समावेशी और विकसित विश्व समाज की परिकल्पना का परिचायक है।
ऐसा माना जाता है कि भारतीय संस्कृति के मूल मंत्र “वसुधैव कुटुंबकम” की प्रासंगिकता से सर्वप्रथम स्वामी विवेकानंद ने ही पूरे विश्व को परिचित कराया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने इस मूल मंत्र का और सुदृढ़ तरीके से प्रचार-प्रसार किया। वर्तमान मे चले रहे रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में हुई एससीओ (SCO) की बैठक में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को स्पष्ट शब्दो में कहा था कि यह दौर युद्ध का नहीं है। आपसी मतभेदों को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से सुलझाया जा सकता हैं। पूरे विश्व मे उनके इस कथन की सराहना हुई और वैश्विक राजनीति में भारत के बढ़ते प्रभाव की भी चर्चा हुई।
हम ऐसा भी कह सकते हैं कि आज के इस नए भारत की परिकल्पना स्वामी विवेकानंद जैसे दिव्यदर्शी ने दशकों पहले ही कर ली थी। उन्होंने कहा था कि भारत का विश्व गुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु समस्त विश्व के हित में है। उनके इन्हीं विचारों को प्रतिबिम्बित करती ‘रामकृष्ण मिशन‘ संस्था जिसकी स्थापना उन्होंने सन् 1897 में की, वह आज पूरे विश्व भर में मानवता की सेवा एवं परोपकार के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का जोर शोर से प्रचार-प्रसार कर रही है। वर्तमान में इस संस्था की संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई अन्य पश्चिमी देशों में शाखाएँ हैं। अनेक देशों के विद्वानों ने विवेकानंद के सानिध्य में रहकर आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण की और सनातन धर्म को प्रसन्नता के साथ अपनाया।
अगर हम भारत में स्वामी विवेकानंद की लोकप्रियता की बात करें तो कमोबेश हर भारतीय उनके विचारों से प्रभावित है। गौरतलब है कि उनके विचारों के समसामयिक प्रासंगिकता के कारण भारत के युवाओं में उनकी एक अलग छवि और पहचान है। इसका प्रमुख उदाहरण, देश के युवाओं को समर्पित ‘राष्ट्रीय युवा दिवस‘ है, जो प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को उनकी जन्मतिथि पर मनाया जाता है। यह दिन न केवल स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष के जन्म को अंकित करता है बल्कि युवाओं को दिए गए उनके मूलमंत्रों का भी स्मरण कराता है।
स्वामी विवेकानंद का दर्शन, आदर्श और काम करने का तरीका हमेशा से ही भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत रहा है। उन्होंने युवाओं को धैर्य, व्यवहार में शुद्धता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत रहने का संदेश दिया। उनके अनमोल विचारों ने युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हें युवा पीढ़ी की क्षमता, परिवर्तनकारी शक्ति एवं कुशलता पर अटल विश्वास था। इसलिए उन्होंने युवाओं को एक सशक्त सामाजिक प्रभाव निर्माण करने के लिए सदैव प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद युवाओं को संदेश देते हुए कहते हैं:
“विश्व एक व्यायामशाला है, जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।”
आज के इस परिदृश्य में हम सभी युवाओं का यह दायित्व बनता है कि हम एकजुट होकर स्वामी विवेकानंद के मूल्यों पर खरे उतरने की हर वो कोशिश करें, जिससे कि एक सशक्त समाज का निर्माण हो सके और हमारा राष्ट्र नई ऊँचाइयों को छु सके। ऐसे ही राष्ट्रभक्तों की टोलियों पर विवेकानंद ने कहा है कि देशभक्त बनो। जिस राष्ट्र ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े-बड़े काम किए हैं, उसे प्राणों से भी प्यारा समझो। इन विचारों से युक्त विश्वासी युवा देशभक्तों की आज समस्त भारत को आवश्यकता है।