A Murder Mystery Story in Hindi ए डिस्कवरी इन साइमन

A Murder Mystery Story in Hindi ए डिस्कवरी इन साइमन

ए डिस्कवरी इन साइमन Page 2: भीम सईद

“जिस समय तुम ने कमरे में प्रवेश किया, सुमन की मां कहाँ थी?” मेरा पहला सवाल आसिम ले लिए था।

“वैसे समीर, मैं बच तो जाऊंगा न… सुमन की मां के बारे में मैं कुछ कह नहीं सकता क्योंकि वह सबिया के चीखने के काफी देर बाद आई थीं, पर मैं…

मैं आसिम की परेशानी समझ सकता था, क्योंकि आसिम और सबिया ही घटनास्थल पर पहले पहुंचने वालों में से थे। पुलिस पूरे केस को कोई भी रूप दे कर इन्हें फांस सकती थी। वास्तव में मैं आसिम के ही कारण इस केस से जुड़ा था।

मैं कोई जासूस नहीं हूं। मैं तो लखनऊ से प्रकाशित ‘फारचून फ्यूचर वाइस’ में रिपोर्टर हूं। इस तरह के मामलों में मैं दिलचस्पी रखता हूं।

यह केस मुझे अनुभवों की मदद से सुलझाना था। मैंने पहली बार किसी केस में हाथ डाला था और मैं असफल नहीं होना चाहता था।

अगली सुबह बहुत सुहानी थी। मेरा उठने का मन नहीं हो रहा था, पर उठना तो था ही। कुछ देर बाद आसिम आ गया। यद्यपि वह परेशान था, मगर उसके चेहरे पर मुसकराहट थी।

“हां, क्या सोचा मेरे बारे में,” आसिम का स्वर था।

“मेरा विचार है कि पहले कातिल को खोजना चाहिए। अभी मैं सबिया के यहां जा रहा हूं फिर सुमन के घर की छानबीन करुंगा,” मैंने अपना प्लान बताया।

“पर तुम कह रहे थे कि सबिया कातिल नहीं हो सकती…” आसिम ने एकदम प्रश्न किया।

“पर उससे मिलना जरूरी है। शायद कोई सुराग मिल जाए,” मैंने कहा।

सबिया के घर से मुझे कोई महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ न लगा। मैंने अपने अखबार के आफिस में फोन कर दिया था कि आज देर से पहुंचूंगा।

मुझे अब सायमन जाना था। मुझे कातिल तक पहुंचना था, वह भी चंद अस्पष्ट सुबूतों के आधार पर। घटनास्थल पर मौजूद दाएं पैर के निशान अब भी मेरे दिमाग में उथलपुथल मचा रहे थे। मुझे वहां जा कर सुमन की मां से भी मिलना था।

सुमन की मां, जो पूरे समय लेटी ही रहीं, मुझे कोई ऐसी बात न बता सकीं जिससे कुछ मदद मिले। मैंने घर की तलाशी लेनी शुरू की। यह मध्यम श्रेणी का कई कमरों वाला बड़ा सा मकान था। इसमें सुमन व उसकी मां ही रहती थीं।

यह 5वां कमरा था, पिछले 4 कमरों में मैंने कोई असाधारण बात नोट नहीं की थी, पर इस कमरे में घुसते ही मेरे दिमाग ने मुझे किसी असाधारण बात का संकेत दिया। यह बड़ा सा कमरा था। इसमें 2 दरवाजे थे। एक रोशनदान उत्तरी दीवार था। एक खिड़की दक्षिणी दीवार थी।

पूरे कमरे में धूल की चादर सी बिछी हुई थी। अचानक दाईं तरफ मेज पर पैरों के निशान देखकर मैं चौंका और यदि मेरी नजर धोखा नहीं खा रही थी तो ये निशान ठीक वही थे जैसे मैंने सुमन के कमरे में पाए थे। शायद कोई इस मेज पर चढ़ चुका था, पर क्यों? यह सोचते हुए मेरी नजर ऊपर उठती गई। ऊपर पुराना सा छप्पर था। शायद किसी ने मेज का उपयोग छप्पर तक पहुंचने के लिए ही किया हो।

मैंने मेज को उस स्थान से हटा दिया। वहां पर दूसरी मेज रखी, फिर उस पर एक अखबार बिछाया और कुरसी की सहायता से उस पर चढ़ गया मैंने छप्पर को गौर से देखना शुरू किया। अचानक पुराने कपड़े के टुकड़े का एक कोना हाथ आ गया। उसे खींचा तो पूरा कपड़ा ही निकल आया। उसे खोला तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसमें एक चाकू था, वह भी खून से सना हुआ। अचानक मुझे अपने दिल की धड़कने कनपटियों मे गूंजती महसूस हुई। इस समय मैं बंद कमरे में रक्तरंजित चाकु लिए खड़ा था। मेरे अंदर भय की एक सिहरन सी दौड़ गई और खुशी की भी, क्योंकि मैं एक महत्त्वपूर्ण सुबूत तक पहुंच गया था।

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