“क्या साहब अंदर हैं?”
उस की भारी आवाज से दरबान परिचित था। “जी, वह आप का ही इन्तजार कर रहे हैं,” कह कर दरबान ने गेट खोल दिया।
वह व्यक्ति धन्यवाद कह कर कमरे में दाखिल हो गया।
उस के जाने के बाद एक अफसर ने दूसरे से पूछा, “यार, यह आदमी है कौन? ऐसे रोब से रहा था जैसे के जेम्स बांड हो।”
“तुम नए हो शायद इसलिए इन्हें नहीं जानते। यह हैं देश के जानेमाने जासूस पैंथर। इन्हें यहां तभी बुलाया जाता है। जब कोई केस पुलिस के लिए पहेली बन जाता है।”
“तो क्या यह पहेलियां सुलझाते हैं?”
“नहीं, यह कठिन से कठिन केस को भी चुटकियों में सुलझा देते हैं। शायद इस बार भी कोई ऐसा ही केस हो। तभी कमिश्नर साहब ने इन्हें बुलवाया हैं। वैसे यह असली जेम्स बांड से कम नहीं हैं।”
“आइए मिस्टर पैंथर, आइए,” उधर कमरे में कमिश्नर ने बड़ी गरमजोशी से पैंथर का स्वागत किया, “मुझे आप ही का इंतजार था।”
“अरे अंकल, आप मुझे शर्मिंदा न करें। पैंथर तो मैं दुनिया के लिए हूं। आप के लिए तो मैं वहीँ शरारती पिंटू हूँ। जो आप की मूंछे खींचा करता था। खैर, बताइए मुझे कैसे याद किया?”
“बेटे, पुलिस के पास एक अजीब केस आया है। इस में न तो कोई सुबूत है, न गवाह और फिंगर प्रिंट। यह किसी चोरी या डकैती नहीं बल्कि कत्ल का केस है।” कमिश्नर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “इसलिए तुम्हें बुलाया है ताकि यह केस सुलझ सके।”
“ठीक है, अंकल। आप मुझे केस की फाइल सौंप दीजिए। मुझे यकीन है कि यह केस भी जल्दी ही सुलझ जाएगा।”
“ठीक है,” कहते हुए कमिश्नर ने फाइल दे कर उस से हाथ मिलाया। फिर पैंथर कमरे से तेजी से निकल कर जीप की ओर बढ़ गया।
रास्ते ही में उस ने केस की फाइल पढ़ डाली। फ्लोरेंस होटल के मालिक ने पुलिस स्टेशन ने यह रिपोर्ट लिखवाई थी। दरअसल, उस के होटल में ठहरी एक महिला का कत्ल हो गया था। महिला का गला एक कान से दूसरे कान तक बुरी तरह से काट दिया गया था। पुलिस सुबूत के तौर पर मिला तो केवल एक रुमाल। उस पर इतना परफ्यूम डाला गया था कि पुलिस के खोजी कुत्ते गंध न पा सके। साथ ही, कमरे में फिनाइल की काफी गोलियां भी डाली गई थीं।
निस्संदेह अपराधी बहुत चालाक थे, इसलिए कोई सुबूत नहीं मिल सका। पुलिस केवल इतना ही जान सकी कि हत्या करने वाले 2 व्यक्ति थे। एक ने महिला के गले में रुमाल डाल कर उसे काबू किया और दूसरे ने उस की हत्या कर दी। पुलिस को एक कुख्यात अपराधी बैंजामिनो डे कोसिमी पर शक था क्योंकि वह हत्या के दिन शहर में ही था। लेकिन पुलिस सुबूत के बिना लाचार थी।
“यह केस तो वाकई दिलचस्प है,” पैंथर ने मन ही मन सोचा। फिर तय किया कि पहले आज के समाचार ही सुन लिए जाएं। अतएव टीवी चला दिया। लेकिन समाचार अभी शुरू नहीं हुए थे। टीवी पर हिंदी फिल्म ‘नागिन’ दिखाई जा रही थी। न चाहते हुए भी पैंथर फिल्म देखने लगा। फिल्म देखते देखते उन की आंखें विस्मय से फैलती चली गई।
“क्या सचमुच ऐसा हो सकता है, शायद मुझे केस का सुबूत मिल जाए,” सोच कर वह कमिश्नर को फोन मिलाने लगा, “हैलो कमिश्नर अंकल, मैं पैंथर बोल रहा हूं।”
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