राम भरोसे की बात सुनकर मुझे आष्चर्य हुआ कि हर रोज हँसने वाला, सबको हँसने वाला और चलते आदमी की गाल पर झांपड़ मार कर पूछने वाला आपको दर्द तो नहीं हुआ? राम भरोसे आज अचानक रोने की बात करें कर रहा है? मैंने उससे साहस कर पूछ लिया – क्यों भाई भरोसे आज हँसने की बात छोड़कर तुम्हें रोने की अक्ल कहां से आ गई, औरतों और जब तुम्हारे पिता देहान्त हुआ था, शायद तुम तब भी नहीं रोये थे, बल्कि नाच-कूद कर सबको यही बता रहे थे कि मेरी गाल पर थप्पड़ मार कर पंजाब का नक्शा बनाने वाला आज दुनिया छोड़ गया है, पर आज तुमसे रोने की बात सुनकर बड़ा अजीब सा लग रहा है, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?
राम भरोसे ने नकली हँसने की अदा दिखाते हुए कहा – भैया मैं अभी अभी डाक़्टर से अपना मैडिकल चैकअप करा कर आ रहा हूं। बी.पी. यानि की रक्त संचार 120-80 है, शूगर तो साली नाम को नहीं है, ब्लड यूरिया ठीक, एक्सरे ठीक, अल्ट्रा साऊंड ठीक, सब कुछ नारमल है, फिर भी पता नहीं क्यों मेरा मन कल से रोने को कर रहा है, बीवी मायके गई है इसलिए नहीं, मगर बार-बार मन कह रहा है, मैं रोऊं और कोई मेरा रोना सुने जरूर, इसीलिए मैं तुम्हारे पास आ गया हूं।
भरोसे भैया, इस तनाव भरे वातावरण में आज हर आदमी तो रो ही रहा है, मगर तुम्हें रोने की आवश्यकता क्यों पड़ी, यह पहेली मेरी समझ से परे है।
भरोसे ने एक मोटी सी भद्दी गाली देते हुए कहा – भाई जब साल में तीन बार गैस के पैसे बढ़ रहे हों, गरीब और मजदूरों को मिलने वाला राशन बन्द कर दिया जाए, मिटटी का तेल चोर बाजारी में पन्द्रह रूपये बोतल बिकने लगे तो कौन ससुर भला हंस पाएगा? डीजल और पेट्रोल के दामों में आग लग गई है, प्याज ने सरकार बदल दी हो, नमक ने नाच नचाया हो तो भला कौन है जो खुलकर हंसने की हिम्म्त कर पाएगा।
पाकिस्तान पिछले पचास वर्षो से कश्मीर के पीछे हाथ धोकर पड़ा है, सारा कश्मीर छलनी हो चुका है। गुजरात भूकम्प और दंगो की चपेट में आ चुका है। उत्तरांचल, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ नए राज्य बन गए हों क्या यह छत्तीस का आंकड़ा नहीं है हमारी एकता के लिए।
पत्नि, पति को पीट रही हो, बेटा माँ-बाप का अपमान कर रहा हो, बेटी मनमाना जीवन जीने लगें, भाई-भाई का शत्रु बनकर तना हो तो भला हँसना किसको याद आएगा। पत्रकारों का अपहरण हो रहा हो, पत्रकार पिट रहे हों, लेखकों को रुलाया जा रहा हो, नेता कमीनेपन पर उतर रहें हों तो भल किसको रोना नहीं आएगा।
समूचा देश आतंक की काली छाया में जी रहा है, आतंकवादी दिल्ली के लालकिला में घुसे, भारत की संसद पर हमला कर दिया, समूचे विश्व ने इस घटना की निन्दा की, मगर हम एक मुक्का भी न तान सके। हमें हमारी घटती मर्दानगी पर क्या रोना नहीं आएगा? जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला क्या हंसने के लिए है? अक्षरधाम पर हमले ने सबको रुलाया ही तो है। नक्सवाद अपनी जड़े गहरी कर रहा है, निर्दोष लोग रोग मारे जा रहे हैं, क्या हम हर घटना पर हंसने का नाम ले सकते हैं, नहीं तो फिर हमें भला रोने से डर क्यों लगता है, इस पर कभी आपने मिलकर, बैठकर विचार किया है।
कभी खुद पर कभी, हालत पर रोना आया।
बात निकली तो हर बात पर रोना आया।।
यह अब से तीस-चालीस साल पहले किसी शायर ने कहा था। हमें अपने आप पर और देश के हालत पर जोर-जोर से रोना चाहिए, रोने से आदमी का रक्त संचार सही होता है, मन हल्का हो जाता है और तनाव भी कम होने लगता है।
हम रो लेंगे, तुम रो लेना, रोते हुए जियेंगे।
रोते-रोते अपने आंसू, अपने आप पियेंगे।।
जीवन में जो आदमी रोना नहीं जानता उसका जीना बेकार है, जो रो नहीं सकता वह बेकार, जो रोता नहीं है, वह बेकार, इसलिए जरूर रोना चाहिए जैसे भगवान भोले नाथ ने जब पार्वती द्वारा बनाए बालक का सर काट दिया तो पार्वती जोर-जोर से रोई, तब शिव ने हाथी का सर काटकर पार्वती के सुत को गणेश बना दिया था। राम के जन्म लेने पर माँ कौशल्या ने राम को रोने के लिए कहा तो राम रोये नहीं, माँ के बार-बार कहने पर बालक राम ने कह दिया था – माँ यदि आप मुझे रोने के लिए विवश करती हो तो मैं पूरे जीवन ही रोता हर सकता हूं। धोबी के कहने पर सीता के त्यागने पर रोये, लव-कुश के साथ युद्ध में और धरती फटी सीता उसमें समा गई तब भी राम रोये थे। कृष्ण ने जन्म के समय जब रोने की मुद्रा बनाई तो यशोदा ने कृष्ण के मुंह पर हाथ रख दिया और कहा – लल्ला रोना नहीं। तुम्हारा रोना सुनकर पहरेदार जाग जाएंगे, कंस आ जाएगा। है न रोने का कितना बड़ा महत्व, कह कर भरोसे मेरे कांधे पर सर रख कर पता नहीं कब तक रोता ही रहा –