दिल्ली पहुंच कर अब्दाली ने बूढ़े मुगल बादशाह की गरदन जा दबाई, उस से हिंदुस्तान के तीन बड़े सूबे अफगानिस्तान के लिए लिखा लिए। ये तीन सूबे थे, पंजाब, सिंध और कश्मीर। इस तरह सन 1757 में कश्मीर का सुंदर प्रदेश हिंदुस्तान से कट कर अफगानिस्तान से जा मिला, जहां उस को आने वाले 62 वर्ष तक अफगानों की गुलामी में रहना था। अब्दाली ने लौटने से पहले अपने ही एक आदमी नजीबुद्दौला को मुग़ल बादशाह का वजीर बनाया। वह बड़ा दुष्ट था और बूढ़े असहाय बादशाह को हमेशा अपमानित व पीड़ित करता रहता था। कुछ समय बाद मराठों ने आ कर इस राक्षस के चुंगल से बादशाह निकाला।
जब अब्दाली दिल्ली से काबुल की ओर लौटा तो उस पंजाब में घुसते ही सिखों ने छेड़ना शुरू कर दिया। पठानों की मथुरा में जो दुर्गति हुई थी, इस का पता उन को लग गया था। इस से उन का हौसला बढ़ गया। वे छिप कर उस की डरी हुई सेना पर वार करते थे। बहादुर सिखों ने दिल्ली और मथुरा की लूट का बहुत सा माल अब्दाली से छीन लिया। अफगान अपने साथ से सुंदर युवा लडके लडकियों को गुलाम बना कर ले जा रहे थे। सिखों ने एक रात छावनी पर जबरदस्त छापा मार और कैदी बने लडके-लडकियों को छुड़ा ले गए। उन्होंने हजारों पठानों को मार डाला। अब्दाली इन से बड़ा तंग हुआ और अपने बेटे तैमुरशह को लाहौर में पंजाब का सूबेदार बना कर और फौज का एक बड़ा भाग दे कर जल्दीजल्दी काबुल की ओर लौट गया। सिखों ने उस के बेटे तैमूरशाह को जमने नहीं दिया।
उन्होंने लाहौर पर कई बार हमले किए और पंजाब के बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार जमा लिया। सन 1758 में कलाल जस्सासिंह नामक एक सिख सरदार ने पठानों को करारी हार दी।
तैमूरशाह और उन के सरदार इतनी जल्दी जान ले कर भागे कि उन के स्त्री बच्चे भी पीछे छूट गए। सिखों ने उन के साथ दया का बरताव किया और सब को वापस भेज दिया। पठानों के साथ खुले युद्ध में सिखों की यह पहली शानदार विजय थी। अब तक वे केवल छापामार युद्ध करते थे और सामने पड़ने से कतराते थे। इस भारी विजय के बाद कलाल जस्सासिंह ने लाहौर का शासन संभाला और अपने नाम का सिक्का चलाया, जिस पर फारसी में ये शब्द खुदे मिलते हैं :
“सिक्का जब दर जहान बफजले अकाल, मुल्के अहमद गरिफ्त जस्सा कलाल,”
अर्थात, जस्सासिंह कलाल ने अकाल (भगवान) की कृपा से अहमद के देश पर अधिकार कर के यह सिक्का चलाया है।”
इस तरह कुछ ही सप्ताहों बाद अब्दाली के हाथ से पंजाब का विशाल प्रदेश निकल गया।