अब अब्दाली दिल्ली की ओर रवाना हुआ पर सरहिंद के पास सिखों से उस की टक्कर हो गई। सिख बिफरे शेर की तरह अफगानों पर टूट पड़े। बाद में दिल्ली की मदद के लिए शाही फौज भी आ गई। सिखों ने दूर तक उस का पीछा किया और बहुत सा सामान छीन कर लौट आए।
दिल्ली के ऐयाश बादशाह सिखों की बहादुरी से अफगानों को हराया, पर इस विजय का यश वह खुद ओढ़ कर राहरंग में मस्त हो गया। सरहिंद के नवाब मन्नू खां को सरहिंद का सूबेदार बनाया गया। अब्दाली की तरह मत्रू खां भी सिखों से बहुत परेशान था। सिख विजय के उन्माद में जहां तहां लूटपाट करने लगे। अब मन्नू खां ने सिखों का कत्लेआम शुरू कर दिया। हर दिन सैकड़ों सिख पकड़ कर लाहौर जाए जाते और वहां उन के सर काट दिए जाते। हजारों सिख शहीद हो गए। लाहौर में उस जगह का नाम ही शहिदजंग पड़ गया। बहुत से सिख पहाड़ों की और भाग गए।
लाहौर में सिखों की बलि का यह सिलसिला शायद और भी चलता, पर तभी अब्दाली ने पंजाब पर फिर हमला कर दिया। मन्नू खां ने दिल्ली से मदद मांगी। पर वहां तो सभी रागरंग में मस्त थे, बात सुनने की किसे फुरसत थी। दिल्ली से कोई मदद न आई। फलस्वरूप सूबेदार मत्रू खां को झुकना पड़ा। अब्दाली को काबुल से लाहौर तक आने में बहुत तकलीफ हुई थी। उस ने इसे दूर करने की मांग की तो मत्रू खां ने चार जिलों-पसरुर, गुजरात, सियालकोट, गुजंरावाला, का लाखों रुपए साल का राजस्व इस लुटेरे की झोली में दाल दिया। इस से अब्दाली की तकलीफें दूर हो गई और वह काबुल लौट गया। सन 1749 में यह उसके द्वारा की गई दूसरी लूट थी।
जब मन्नू खां लाहौर से दूर झेलम तट पर अब्दाली से उलझ रहा था तो सिख मौका देख कर अपने छिपे स्थानों से निकल आए और उन्होंने अपने भाई बंधुओं की हत्या का बदला लेने ले लिए लाहौर पर चढ़ाई कर दी। उन्होंने शहर को लुटा और फिर आग लगा दी। मन्नू खां ने जब लौहार को श्मशान बना हुआ पाया तो उस की आंखों में खून उतर आया। उस ने अपनी फौज को आदेश दिया, “पंजाब से सिखों का नामोनिशान मिटा दो।”