औरंगजेब की कट्टर नीति का शिकार कश्मीर भी बना। कश्मीर में तुर्की सुलतानों की कट्टरता से जो थोड़े बहुत हिंदू बच गए थे, उन को औरंगजेब की तलवार ने धर्म बदलने पर मजबूर कर दिया। परिणाम यह हुआ कि कश्मीर राज्य में उन की आबादी 10 प्रतिशत से भी काम हो गई। इस 10 प्रतिशत में ब्राहाणो की ही संख्या अधिक थी। और जातियां लगभग गायब ही हो गई। औरंगजेब के अत्याचारों के त्रस्त हो कर हिंदूओ की दबी हुई शक्ति मराठा, राजपूत, सिखों के रूप में ज्वालामुखी की तरह पंजाब से दक्षिण भारत तक फूट पड़ी। पर कश्मीर में स्वंतत्रता व धर्मरक्षा के लिए कुछ नहीं हुआ। पंजाब में गुरु गोविंदसिंह ने अपने शिष्यों के तनमन में वह चेतना फूंकी कि वे अन्याय के विरूद्ध चट्टान बन कर खड़े हो गए। इस चट्टान से टकरा कर ओरंगजेब ने अपना सिर फोड़ लिया।
दक्षिण में शिवाजी ने भी वीर मराठा जाति में प्राण फूंके। लेकिन कश्मीर में न कोई गुरु गोविंदसिंह हुआ, न छत्रपति शिवाजी, जो अत्याचार, पाप और जुल्मो सितम के खिलाफ आवाज उठाता। कश्मीर के हिंदू सैकड़ों साल के शासन और उस की धर्मिक कट्टरता से इतने सहमे व डरे हुए थे कि औरंगजेब के दमनचक्र के खिलाफ जबान तक हिलाने का साहस नहीं कर सकते थे।
कश्मीर के दक्षिण में डोगरा राजपूत राजा रणजीत देव की छोटी सी जम्मू रियायत थी पर उस की हस्ती हाथी के सामने चिड़िया जैसी थी। जम्मू के राजाओ में इतनी शक्ति नहीं थी कि श्रीनगर के सूबेदार या दिल्ली के बादशाह से टक्कर ले सकें। औरंगजेब के विरोध में जब उत्तर में गुरुगोविंदसिंह और दक्षिण में छत्रपति शिवाजी तन कर खड़े हो गए थे और लाखों सिक्ख, जाट, राजपूत और मराठे अपना खून बहा रहे थे, उस समय कश्मीर सो रहा था। वह इस स्वतंत्र्य युद्ध में कर भी क्या सकता था क्योंकि वहां दस का नब्बे से मुकाबला था। उन के पास न शिवाजी जैसा रणकुशल कर्मठ योद्धा था, न गुरु गोविंदसिंह जैसा महान धर्म गुरु।
कश्मीर की प्रगति को तब और भी धक्का लगा जब औरंगजेब लगातार 26 साल तक दक्षिण में मराठों से उलझता रहा और लड़ते लड़ते वहीँ मर गया। वह खुद तो मरा ही साथ में अकबर के बनाए हुए विशाल मुगल साम्राज्य को भी बिखेर गया। औरंगजेब की आंखें बंद होते ही दिल्ली कमजोर हो गई और स्वार्थी सूबेदार अपने अपने इलाकों में स्वतंत्र हो कर जम गए। कश्मीर में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वहां उचित नेतृत्व का अभाव था, अन्यथा दक्षिण हैदराबाद, अवध और बंगाल की तरह वहां भी कोई जबरदस्त सूबेदार अपनी स्वतंत्रता घोषित कर देता। लेकिन कश्मीर को कोई ऐसा दबंग सूबेदार नहीं मिला जो औरंगजेब के बाद होने वाले ऐयाश, निकम्मे और कायर बादशाहों को अंगूठा दिखा देता।