वजीरों मत से कहा, “इस बार कश्मीर को जरूर फतह किया जाए।”
“सोचता तो मैं भी यही हूं,” अब्दाली ने कहा, “पर कश्मीर तक जाऊं कैसे, बीच में पंजाब पड़ता है और वहां लंबी दाढ़ी और केशों वाले सिख शेर की तरह खुले घूम रहे हैं, उन से डर लगता है। सरहिंद में इन कंबख्तों ने मेरी बड़ी मिट्टी पलीद की थी। न सिर्फ मुझे पटकनी दी थी, बल्कि लुट भी लिया था। किसी तरह भाग कर जान बचाई थी।”
“जहांपनाह, इन से मोर्चा तो लेना ही पड़ेगा,” वजीरों ने कहा।
“हां, वह तो निश्चित है पर मैं सोचता हूं कि वह ताकत कौन सी है जिस से कि दाल पी कर जीने वाले और चींटी पर भी पांव पड़ने से कांप जाने वाले बुजदिल हिंदू सिखों के रूप में इतने खूंखार लड़ाके बन बैठे?”
वजीर ने कहा,”हुजूर, हिंदुओ में एक बहुत बड़े पीर हुए हैं। उन्हें गोविंदसिंह कहते हैं। उन का यह पीर, जिसे ये ‘गुरु’ कहते हैं, बहुत पहुंचा हुआ बली था। उस ने 5 प्रकार केश, कृपाण, कड़ा, कंघा और कच्छा दे जार हिंदुओ की कायापलट कर दी। उन्हें अपना सिख यानि शागिर्द बनाया। हुजूर, कहते हैं कि उस पीर की रूह अब भी अपने सिखों की रक्षा करती है। वह पीर जिस किसी के सिर पर हाथ रख देता था वह आदमी फौलाद का और शेरदिल बन जाता था। उस ने एक हिंदू फकीर लछमनदास को अपना सिख बनाया। उस ने पंजाब में आ कर वह कहर बरसाया कि दिल्ली कांप गई। उस ने जिन्न पाल रखे थे जिन्न!”
अब्दाली ने कहा, “हां, मैं ने उस का नाम सूना है – बंदा बैरागी। सरहिंद के सूबेदार ने उस पीर गोविंदसिंह के दो बच्चों को जिंदा ही दीवार में चिनवा दिया था। बंदा ने उसे पकड़ कर जूतियों पर बैठाया और मरवा डाला। कुछ भी हो, वह आदमी बहादुर और काबिले तारीफ था।”
“हां, जहांपनाह, पंजाब में हमें इन्हीं की औलादों से टकराना है। बहुत संभल कर चलना होगा।”
अब्दाली ने उत्तर दिया, “पंजाब को तो मैं कभी का हजम कर लूं पर ये दाढ़ी वाले सिख मुझे कुछ करने से तब न। पंजाब तो गले में ऐसा फंस गया है जिसे न छोड़ते बनता है, न निगलते ही इस बार पंजाब न सही, कश्मीर तो जरूर ही झपट लेना है।”
“जरूर, जहांपनाह, जरूर,” वजीरों ने समर्थन किया।