दिल्लीवासी हिन्दू-मुसलमान दोनों ही जातियों के लोग लुटेरों की तलवार के शिकार हुए। इस में कितनी स्त्रियां उन की पैशाचिक वासना का शिकार बनीं, कितने लोंगो के सर कलम किए गए, इस की कोई गिनती नहीं। दिल्ली के बाजार और मकान धूधू कर जल रहे थे। लोग घरों को छोड़ कर इधरउधर भाग रहे थे। सब कुछ वीरान हो गया था। घरों में और सड़कों पर दिनरात कुत्ते और गीदड़ घूमते थे। बस कुछ ही लोग जान बचा कर इधरउधर भाग सके थे।
सैनिक जब शहर की लूट में मस्त थे तो अब्दाली लालकिले में शंहशाहेहिंद आलमगीर द्वितीय का मेहमान बना बैठा था। फौजी ने शाही महलों को लुटा, करोड़ों की संपत्ति उन के हाथ लगी। अठारह साल पहले सन 1739 में नादिरशाह दिल्ली को खूब निचोड़ कर ले गया था। कुछ वर्षों बाद वहां फिर वहीँ ठाटबाट हो गया। हाथी मर जाता है तो क्या उस का वजन भी कम हो जाता है? समझदार लोग कहते हैं कि जिंदा हाथी लाख का, मरा सवा लाख का। अब्दाली उन्हीं में से एक था। लूट के मामले में निराश नहीं होना पड़ा। सोनाचांदी लूट लिया गया तो अब सौंदर्य की लूट होने लगी। मुगल बादशाह के महलों में अपने समय की विख्यात और लावण्ययुक्त सुंदरियां थी। उन की सुंदरता देख कर खूसट अब्दाली का मन भी ललचा उठा। उस ने सैकड़ों सुंदर देख कर खूसट अब्दाली का मन भी ललचा उठा। उस ने सैकड़ों सुंदर बेगमें, शहजादियां और बांदिया अपने अधिकार में कर लीं, उस ने मुहम्मदशाह रंगीले की बेटी से अपना विवाह किया।
रंगीले बादशाह की दो खूबसूरत बेगमों पर भी अधिकार जमाया, जो यों तो उस की सास लगती थीं पर लुटेरे ने सौंदर्य के आगे उस रिश्ते का सम्मान भी न किया। अब्दाली ने अपने बेटे तैमूर का विवाह आलमगीर द्वितीय की बेटी से कराया। बूढा बाप और जवान बेटा एक साथ मुगल शहजादियों को ब्याहने के लिए दूल्हे बने।
अब्दाली एक महीने दिल्ली में रहा। जब दिल्ली के महलों, घरों और बाजारों में लूटने के लिए कुछ भी न बचा तो उस ने काबुल लौटने का विचार किया। पर तभी वजीर ने उसे आगरा की याद दिलाई, जहां अपार संपत्ति उस का इंतजार कर रही थी। सदियों से आगरा लुटा नहीं था, नादिर भी वहां तक नहीं पहुंचा था। इसलिए अब्दाली का मन ललचा उठा। उस ने सोचा कि आगरा किसी भी तरह दिल्ली से कम नहीं है। यह मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
अब्दाली आगरा लूटने चला। गरमी खत्म होने को थी और बरसात सर छाई हुई थी। लुटेरे ने धन के लालच में कोई परवाह नहीं की। उस के मुंह खून लग चुका था। दिल्ली तक आ कर आगरा को बिना लूटे योन ही छोड़ देने की बेवकूफी करने को वह तैयार न था। दिल्ली और आगरा के बीच में हिंदुओ के दो प्रसिद्ध तीर्थस्थान पड़ते हैं, मथुरा और वृन्दावन। दोनों तीर्थ उतने ही प्राचीन हैं जितना भारत का लिखित इतिहास ,यहां एक से बढ़ कर एक भव्य मंदिर हैं। सदियों पूर्व भी यहां मंदिर थे, इन से भी भव्य और सुंदर। औरंगजेब ने इन को मटियामेट कर दिया था।