बैलों के रुकते ही तीन अादमी झट गाडी के पास लपक आए। भोलाशंकर को माजरा समझते देर न लगी। बैलगाड़ी और माल छोड़ कर भाग जाना भी संभव नहीं था। अतः जान की परवाह किए बिना भोलाशंकर ने पूछा, “आप लोग कौन हैं?”
“लुटेरे,” एक साथ कई आवाजें गूंज उठीं।
तत्काल ही एक लुटेरा बोला, “जान की खैर चाहते हो तो गाड़ी का माल चुपचाप हमें ले जाने दो और बैलगाड़ी ले कर दफा हो जाओ।”
अपनी जान के सामने गाडी में लदी सरसों की चार बोरियां और हजार-पंद्र्ह सौ के माल का कोई महत्व नहीं था। इसलिए वह जरा घबराहट के साथ बोला, “माल ले जाइए।”
लुटेरों ने सौदे और सरसों की चारों बोरियां गाड़ी से उतार लीं। भोलाशंकर ने डरते-डरते खाली गाड़ी आगे बढ़ाई।
दस वर्षो की दुकानदारी में शहर की आवाजाही में भोलाशंकर रास्ते पर कभी कोई भी महसूस नहीं किया था। लूटपाट की वारदात कभी हुई भी नहीं थी। यह पहली घटना थी। उसी रास्ते हो कर आवाजाही करने पर ही उस की दुकानदारी चल सकती थी। इस घटना से भोलाशंकर ने भविष्य में होने वाली वारदातों का अनुमान लगा लिया कि लुटेरे अगर पकड़े न गए तो उस रास्ते पर दुकानदारी के लिए आनाजाना दूभर हो जाएगा।
मगर लुटेरे कैसे पकड़े जाएं? उस के सामने यही सब से बड़ा प्रश्न था। लुटेरों को वह पहचान भी नहीं सका था। बिना जाने पहचाने पंचायत या थाने में रिपोर्ट लिखवानी भी बड़ी हिमाकत थी। इसलिए भोलाशंकर ने लूट के बारे में अपने गांव में किसी को कुछ भी नहीं बताया।
दूसरे दिन उसने शहर जाकर फिर सरसों की कुछ बोरियां खरीद लाने का निश्चय कर लिया। लेकिन हलकी वर्षा शुरू होने के कारण वह उस दिन शहर न जा सका।
वर्षा से गीली सड़क पर गाड़ी के पहिए फंस जाते थे, इसलिए सड़क सूखने के बाद चौथे दिन फिर भोलाशंकर ने बैलों को उस स्थान पर रोक दिया जहां उस रात उस का माल लूट लिया गया था।
गाड़ी रोक कर बस्ती की ओर जाने वाले रास्ते की तरफ झांक के देखा तो भोला शंकर की आंखे फ़टी की फ़टी रह गई। दरअसल, रास्ते पर सरसों के बीजों के अकुंर निकल आए थे।
अंकुर देख कर भोलाशंकर ने मन ही मन सोचा, सरसों के बीज निश्चय ही उस रात की लूट की बोरियों से गिरे होंगे वरना सरसों के बीज सड़क के किनारे कहां से आते?
ऐसा सोच कर भोलाशंकर और आगे बढ़ गया। अब उसे पूरा यकीन हो गया कि गाड़ी की नुकीली कील में फंस कर सरसों की कोई बोरी फट गई होगी और फ़टे स्थान से सरसों के बीज निकल कर नीचे गिर गए होंगे। लुटेरों को इस बात का पता नहीं होगा। बीज इसी तरह लुटेरों के घर तक गिरते गए होंगे और निश्चय ही घर का पता चल जाएगा और लुटेरे निश्चय ही पकड़े जाएंगे।
इस यकीन के साथ भोलाशंकर गाड़ी के पास वापस आ गया। उस ने शहर जाने का इरादा बदल दिया और मुखिया रामधन को ले कर थाने जाने निश्चय कर लिया।
गांव पहुंच कर भोलाशंकर ने गाड़ी और बैलों को तो नौकर के हवाले कर दिया और कुछ खाएपिए बगैर ही रामधन के पास चल दिया। उसने उस रात की लूट के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया था। इसलिए संकोच करते हुए भोलाशंकर ने पहले लूट की घटना बताई और फिर सरसों के बीजों के अंकुरों के बारे में बता दिया।