अप्पू घर

अप्पू घर: चार घंटे चुप रहने की मजेदार कॉमेडी कहानी

“क्या बात है, तुम आज कुछ भी बोल क्यों नहीं रही हो” निफ़्टी ने बुलबुल से धीरे से पूछा?

बुलबुल ने निफ़्टी की ओर देखा और वापस ब्लैकबोर्ड की तरफ़ देखने लगी।

निफ़्टी ने मुस्कुराते हुए बुलबुल के हाथ से पेंसिल छीन ली।

बुलबुल ने तुरंत अपने पेंसिल बॉक्स से दूसरी पेंसिल निकाल ली और सवाल हल करने लगी।

निफ़्टी ने आश्चर्य से बुलबुल की ओर देखा।

अप्पू घर: डॉ. मंजरी शुक्ला की कक्षा के दोस्तों के साथ मस्ती की बाल-कहानी

बुलबुल उसकी पक्की दोस्त थी। सबसे प्यारी… सबसे अच्छी… हमेशा चटर चटर करके सारे समय बात करने वाली…

निफ़्टी के साथ-साथ आज बुलबुल के सभी दोस्त भी हैरान थे। अगर क्लास में किसी बच्चे की सबसे ज़्यादा आवाज़ आती थी तो वो थी बुलबुल।

जब उनकी क्लास टीचर, जोशी मैडम, किसी भी तरह से बुलबुल को चुप रहना ना सिखा पाई तो उन्होंने एक मज़ेदार तरीका सोचा और बुलबुल को मॉनिटर बना दिया।

पर ये क्या, बुलबुल जिस बच्चे को चुप कराने के लिए जाती उससे खुद ही बात करने लग जाती।

धीरे धीरे जोशी मैडम के साथ बुलबुल की मज़ेदार बातें सुनने की सबकी आदत पड़ गई और सबने मान लिया कि वह कभी भी शाँत होकर नहीं बैठ सकती है।

हमेशा हँसने बोलने वाली बुलबुल आज बिना एक शब्द बोले मूर्ती की तरह शाँत बैठी हुई थी।

तभी जोशी मैडम बुलबुल के पास आई और बोली – “तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना”?

बुलबुल ने सिर हिलाकर हामी भरी और धीमे से मुस्कुरा दी।

जोशी मैडम ने प्यार से उसके गाल पर हलकी सी चपत लगाई और ब्लैक बोर्ड की तरफ़ चल दी।

शायद जोशी मैडम को भी क्लास में इतना सन्नाटा अच्छा नहीं लग रहा था।

निफ़्टी से रहा नहीं जा रहा था। कभी मैडम की नज़र बचाकर वह बुलबुल को गुदगुदी कर देती तो कभी उसकी कॉपी खींच लेती।

पर बुलबुल ने निफ़्टी की तरफ़ नज़र उठाकर देखा भी नहीं।

हारकर निफ़्टी बैचेनी से इंटरवल का इंतज़ार करने लगी ताकि बुलबुल से कुछ तो बात कर सके।

जैसे ही हिंदी का पीरियड खत्म हुआ सब बच्चे शोरगुल मचाते हुए अपना-अपना टिफ़िन लेकर मैदान की ओर भागे।

निफ़्टी बुलबुल का हाथ पकड़ते हुए गुस्से से बोली – “क्या रात में कोई तुम्हारी ज़ुबान चुराकर ले गया”?

बुलबुल मुस्कुराई और अपना टिफ़िन बैग से निकालने लगी।

“अरे, कुछ तो बोल दो। तुम्हारे रहते इतनी शांति की आदत अब नहीं रही हमारी” पीछे की बेंच से दीपक की आवाज़ आई।

तब तक बुलबुल के सारे दोस्त अपना टिफ़िन लेकर उसके आस पास आकर खड़े हो गए थे।

“आज तो इतिहास वाले सर भी नहीं आएंगे वरना वो तो बिना प्रश्न पूछे किसी बच्चे को छोड़ते ही नहीं” नितिन ने कहा।

“हाँ, तब तो बुलबुल को बोलना ही पड़ता” दीपेश अपनी टाई ठीक करते हुए बोला।

सीमा जो कि बहुत देर तक चलते हुए पंखे को देखकर कुछ सोच रही थी, अचानक ख़ुशी से उछलते हुए बोली – “मुझे पता चल गया कि बुलबुल क्यों नहीं बोल रही है”।

निफ़्टी जानती थी कि जहाँ तक कोई नहीं सोच सकता है वहाँ तक सीमा का दिमाग पलक झपकते ही तुरंत पहुँच जाता है पर बिलकुल विपरीत दिशा में, इसलिए निफ़्टी को छोड़कर बाकी सबने एक साथ पूछा – “जल्दी बताओ कि क्या हुआ”?

“क्योंकि उसका टॉन्सिल्स का ऑपेरशन हुआ होगा” सीमा ने ख़ुशी से हाथ नाचते हुए कहा।

“अच्छा, बुलबुल तो रोज़ स्कूल आती है तो भला कब हो गया उसका ऑपरेशन! नाज़मा ने चश्में के पीछे से अपनी गोल गोल आँखें नचाते हुए कहा।

ये सुनते ही बच्चे ठहाका मारकर हँस पड़े और नाज़मा झूठा गुस्सा दिखाते हुए बेंच पर बैठ गई।

इंटरवल का समय बीता जा रहा था पर सभी बच्चों को सिर्फ़ ये जानते की उत्सुकता थी कि आख़िर बुलबुल बोल क्यों नहीं रही है।

तभी बच्चों के पीछे से एक आवाज़ आई जिसे सुनकर सभी बच्चे एक साथ पीछे मुड़े।

आश्चर्य और कौतूहल के मिले जुले भाव सभी बच्चों के चेहरों पर आ जा रहे थे क्योंकि वहाँ पर जोशी मैडम खड़ी थी।

नाज़मा फुसफुसाते हुए बोली – “हमारी बुलबुल के नहीं बोलने से आज जोशी मैडम से खाना भी नहीं खाया जा रहा है”।

कोशिश तो नाज़मा ने धीरे बोलने की करी थी पर उसकी आवाज़ इतनी तेज थी कि सभी बच्चों के साथ साथ जोशी मैडम ने भी सुन ली। वह धीरे से मुस्कुरा दी और बुलबुल के पास जाकर हँसते हुए बोली – “एक शब्द तो बोल दो बुलबुल, देखो मुझसे खाना भी नहीं खाया जा रहा है”।

पर बुलबुल थी कि सबकी बातों से बेख़बर सिर्फ़ अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखे जा रही थी।

“बुलबुल, हम लोग इतनी देर से तुमसे कुछ पूछ रहे है और तुम इस घड़ी को घूरे जा रही हो” दीपाली ने झुंझलाते हुए कहा?

जैसे ही घड़ी में दस बजकर पचास मिनट हुए, बुलबुल अपने दोनों हाथ हवा में उठाते हुए ख़ुशी से चीखी – “हो गए पूरे चार घंटे”!

“किस बात के” जोशी मैडम ने हैरत से पूछा?

“मैडम, पूरे चार घंटे हो गए और मैंने एक शब्द भी नहीं बोला” कहते हुए बुलबुल मैडम से जाकर लिपट गई।

निफ़्टी बोली – “अब बताओगी भी कि क्या हुआ है”?

“अगले इतवार मेरा जन्मदिन है और मामा ने वादा किया था कि अगर में चार घंटे बिना बोले रहूँगी तो वह मुझे “अप्पू घर” घुमाने ले जाएँगे।

जोशी मैडम ये सुनकर मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई।

पर सभी दोस्तों के चेहरे उतर गए क्योंकि बुलबुल अपना जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाती थी।

उसके मम्मी पापा बहुत सारे गेम्स खिलाते थे, ढेर सारे रंगबिरंगे गुब्बारों के बीच कई लोग जोकरों की पोशाक पहनकर घूमते रहते थे और बच्चों को खूब हँसाते थे।

सभी बच्चों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और अपना बेमन से टिफ़िन खोलने लगे।

नाज़मा बोली – “मेरा भी बहुत मन था अप्पू घर जाने का…”

“मेरा तो रोज़ ही करता है। कितने बढ़िया झूले है ना वहाँ पर…” निफ़्टी तुरंत बोली।

“चलो, कोई बात नहीं बुलबुल, अगर एक साल तुम अपना जन्मदिन नहीं मनाओगी तो क्या होगा, कम से कम तुम अप्पू घर तो घूम लोगी” दीपाली ने धीरे से कहा।

बुलबुल ख़ुशी से चहकते हुए बोली – “अरे बाबा, तुम सबको क्या लगा। इतने सालों तक मैं क्या अकेले जाने के लिए चुप थी”?

“सालों तक” दीपू ने टोका!

“और क्या, वो चार घंटे मुझे पचास सालों के बराबर लग रहे थे” बुलबुल ने आँखें नचाते हुए कहा।

सभी बच्चे ठहाका मारकर हँस पड़े और निफ़्टी ने बुलबुल का हाथ पकड़ते हुए पूछा – “अब ये बताओ, इतने घंटों तक चुपचाप क्यों बैठी थी”?

“वादे के कारण” बुलबुल ने कहा।

“क्या मतलब” रितेश ने अपने हाथ में पकड़ा पराँठा वापस टिफिन में रखते हुए पूछा?

“मतलब ये कि जब मैंने अपने मामा से कहा कि मेरे सारे दोस्त भी अप्पू घर जाएँगे तो उन्होंने मेरे आगे दुनियाँ की सबसे कठिन शर्त रख दी”।

“चार घंटे नहीं बोलने की…” निफ़्टी ने तुरंत टिफिन एक ओर सरकाते हुए कहा।

“हाँ… और वो मैंने पूरी कर दी” बुलबुल ने ख़ुशी के मारे ताली बजाते हुए कहा।

“सच! क्या हम सब भी तुम्हारे साथ अप्पू घर जाएँगे” नाज़मा ने खुश होते हुए कहा।

“हाँ…पर तुम सब मेरे साथ नहीं बल्कि हम सब साथ साथ अप्पू घर जाएँगे और अब मुझे कोई भी बोलने से मत मना करना”।

“आख़िर ये चार घंटे मुझे बराबर भी तो करने है” बुलबुल मुस्कुराते हुए बोली।

कक्षा में हँसी का फव्वारा फूट पड़ा। उन ठहाकों के बीच बुलबुल हमेशा की तरह सबसे ज़्यादा चहक रही थी और बच्चों के बीच एक ही शब्द बार-बार गूँज रहा था “अप्पू घर”।

~ ‘डॉ. मंजरी शुक्ला‘ – मई 2021 की नव किरण’ में प्रकाशित

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