गांव वालों ने सैनिक को पंचायत भवन के कमरे में बंद कर के बाहर से कुंडा लगा दिया। राजबीर सोच में पड़ गया था, “यह कैसे पता लगाया जाए कि यह भारतीय फौजी है या पाकिस्तानी जासूस? वरदी इसकी पाकिस्तानी फौज की है जबकि यह स्वयं को भारतीय सैनिक बताता है। कहीं सचमुच यह भारतीय सैनिक हुआ और किसी महत्वपूर्ण अभियान पर दुश्मन के ठिकानों पर जा रहा हो तब…?”
“इस समय इसकी भारतीय फौज द्वारा शिनाख्त भी तो नहीं कराई जा सकती। फौज की निकटतम चौकी यहां से 15 किलोमीटर दूर है। लालटेन भी नहीं जला सकते क्योंकि रात के समय किसी प्रकार का प्रकाश करने की इजाजत नहीं है। ऐसे में फौजी चौकी तक पहुंचना नामुमकिन है। सुबह होने पर ही यह शिनाख्त कराई जा सकती है। पर इस कैदी सैनिक का कहना है कि यदि आज रात वह दुश्मन के क्षेत्र में नहीं पहुंचा तो यह महत्वपूर्ण व गोपनीय अभियान विफल हो जाएगा”।
अचानक राजबीर के दिमाग में एक योजना कौंधी और वह चिंतित मुद्रा में बैठे प्रधानजी के पास जा कर बोला, “आप क्या सोच रहे हैं, चाचाजी?”
“मैं सोच रहा हूं कि यदि वह पाकिस्तानी जासुस है तो फिर कोई बात नहीं। कल सुबह हम इसे फौज के सुपुर्द कर ही देंगे। पर यदि यह भारतीय सैनिक है और सच बोल रहा है, तब तो इसे यहां रख कर हम बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं।”
“मेरे दिमाग में एक उपाय आया है। हम इस कैदी सैनिक के शब्दों पर तो भरोसा नहीं कर सकते, पर इसके चेहरे के भाव सच्ची गवाही दे देंगे।”
“तुम कहना क्या चाहते हो?” प्रधानजी उलझन भरे स्वर में बोले.
“विकास भैया के घर टेपरिकार्डर है। उनकी आवाज भी गहरी व उच्चारण शुद्ध है। टेपरिकार्डर और विकास भैया की मदद से हम इस कैदी सैनिक की शिनाख्त कर सकते हैं।”
और राजवीर प्रधानजी को अपनी योजना समझाने लगा।
सारी बात सुनकर प्रधानजी ने संतुष्ट हो कर सिर हिलाया। लगभग 20 मिनट बाद विकास टेपरिकार्डर लिए पंचायत भवन के बरामदे में बैठा था। राजबीर व प्रधानजी एक ऊंची मेज पर खड़े हो कर कैदी के कमरे की रोशनदान नुमा छोटी खिड़की पर आंख टिकाए बैठे थे। कमरे में लालटेन का धुंधला प्रकाश फैला हुआ था। कैदी सैनिक बेचैनी कमरे में चहलकदमी कर रहा था।
प्रधानजी के इशारे पर टेपरिकार्डर में टेप लगा कर विकास ने बटन दबा दिया। पहले एक गाना आया। फिर समाचार वाचक का स्वर सुनाई दिया, “यह आकाशवाणी है, अब आप विशेष समाचार बुलेटिन सुनिए। आज दोपहर बाद राजस्थान सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में भारतपाक में घमासान युद्ध छिड़ गया। भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज को उनकी 2 महत्वपूर्ण चौकियों से पीछे खदेड़ दिया। पश्चिम क्षेत्र में उस के 50 टैंक नष्ट हो गए। पूर्वी क्षेत्र में भी उन्हें 20 किलोमीटर पीछे सरकना पड़ा। कल निर्णायक युद्ध होने की संभावना है जिस में भारत की विजय सुनिशिचत है।”
राजबीर और प्रधानजी बड़े ध्यान से सैनिक के चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयत्न कर रहे थे जो कुरसी पर बैठा ध्यान से समाचार सुन रहा था। लालटेन का प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ रहा था। तनाव की रेखाएं भी जैसे पिघलता जा रही थीं। अंतिम समाचार मिलने पर कि पश्चिम क्षेत्र इस समय पाकिस्तानी टैंकों का श्मशान बना हुआ है, उसकी आंखों में चमक व होठों पर मुस्कान छा गई।
प्रधानजी ने अर्थपूर्ण दृष्टि से राजबीर को देखा। अब वे दोनों मेज से निचे उतर आए।
राजबीर बोला, “आप भी क्या वही सोच रहे हो मैं सोच रहा हूं?”
“हां बेटा, तुम्हारी तरकीब कामयाब रही। भारतीय सेना की विजय के समाचार से यह सैनिक बहुत ही प्रसन्न नजर आता है। मुझे तो अब विश्वास हो गया है कि यह भारतीय फौज का ही जवान है और सचमुच किसी महत्वपूर्ण अभियान पर निकला है। हमें इसे तुरंत छोड़ देना चाहिए। हमारे चक्कर में यह पहले ही 4-5 घंटे लेट हो गया है।”
प्रधानजी ने पंचायत भवन के कक्ष का दरवाजा खोला और बोले, “तुम अब आजाद हो। हम समझ गए हैं कि तुम हमारे ही सैनिक हो।”
“शुक्र है, आप लोगों को विश्वास तो हुआ। कैसे हुआ, यह पूछने का अभी वक्त नहीं। पहले ही काफी देर हो चुकी है।”
“पर अंधेरे में कैसे जाओगे?”
“फौजी की आंखे ही टार्च होती हैं और कंपास उसका पथप्रदर्शक, आप लोग चिंता न करें।”
तेज गति से चलते सैनिक को राजबीर न पीछे से पुकारा, “एक बात तो सुनते जाइए… जो समाचार बुलेटिन आप ने सुना था, वह सही नहीं था। यहीं गांव के एक आदमी की टेप की हुई आवाज थी। असल में युद्ध की स्तिथि वही है, जैसी पहले थी।”
फौजी के चेहरे पर पल भर के लिए उलझन के भाव् आए फिर वह मुसकरा कर बोला, “अब मैं सारी बात समझ गया हूं। आप लोग सचमुच बहुत समझदार हैं। यदि सीमावर्ती गांवों और कसबों के लोग ऐसे ही होशियार हो जाएं तो फौज को भी काफी मदद मिल सकती है।”
इसके बाद फौजी तेजी से चल पड़ा। राजबीर, प्रधानजी व विकास मुसकराते हुए अंधेरे में उसकी गुम होती हुई आकृति को देख रहे थे।