“कल उन के यहां अखंड कीर्तन का पाठ था। सभी लोग थके थे। बस, रात में चोर घुसे और सारा मालमत्ता उठा कर चंपत हो गए,” बिल्लू ने बताया, “मनोहर चाचा जब तीन बजे लघुशंका जाने के लिए उठे तब पता चला।”
राजू के लिए इतना काफी था। बाल की खाल निकालने वह मनोहर चाचा के घर जा पहुंचा।
उस समय वहां काफी भीड़ लगी हुई थी। महल्ले के लगभग सारे लोग वहां इकट्ठे थे। पुलिस भी तब तक आ चुकी थी। एक तरफ लोगों का बयान लिया जा रहा था तो दूसरी तरफ खोजी कुर्तो का दस्ता वहां बिखरी चीजों को सूंघने में लगा हुआ था। उंगलियों की छाप (फिंगर प्रिंट) लेने वाले विशेषज्ञ अपने काम में जुटे हुए थे।
राजू कुछ देर तक तो खड़ाखड़ा सारा तमाशा देखता रहा, लेकिन फिर धीरे से खिसक कर घर के भीतर चला गया। उस ने सोचा था कि अंदर जा कर चाची से कुछ पूछेगा, किंतु अंदर का दृश्य तो और भी करुण था, चाची एक तरफ बेहोश पड़ी थीं। महल्ले की औरते उन्हें होश में लाने की कोशिश कर रही थीं और दूसरी तरफ मोना दीदी की आंखें रोते-रोते सूज गई थीं।
राजू की समझ में आ आया कि वह क्या करें। उसे मनोहर चाचा के घर की सारी स्थिति भी मालूम थी। अगले महीने मोना दीदी की शादी होने वाली है। किंतु उस समय किसी से कुछ पूछने का साहस वह नहीं कर सका। अतः चुपचाप बाहर निकल आया। उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया था की वह उस चोर का पता लगा कर ही रहेगा।
पुलिस कुछ दिनों तक तो सुबहशाम चक़्कर लगा कर अपनी तत्परता दिखाती रही, किंतु धीरेधीरे सब कुछ सामान्य हो गया। शायद पुलिस हार मान चुकी थी। और मनोहर चाचा…? उन्हें तो हार माननी ही थी। आखिर वे कर भी क्या सकते थे ?
किंतु राजू ने हार नहीं मानी। अपनी मित्र मंडली के साथ वह किसी ऐसे सुराग की खोज में लगा रहा, जिस से असली चोर तक पहुंचा जा सके।
उस दिन भी वह अपने मित्रों के साथ पार्क में बैठा इसी विषय पर माथापच्ची कर रहा था।
“यार बिल्लू, मेरी तो अक्ल ने जैसे काम ही करना बंद कर दिया है, समझ में नहीं आता क्या करूँ?” राजू कुछ निराश सा हो कर बोला, क्योंकि अभी तक वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया था।
“सच राजू दा… लगता है हमें मुंह की खानी पड़ेगी,” बिल्लू बोला, “पर एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही….”
“वह क्या?” राजू ने पूछा।
“बेचारे मनोहर चाचा ने तो अखंड कीर्तन करवाया। कहते हैं कि पूजापाठ करने से भगवान प्रसन्न होते हैं, पर यहां तो सारा मामला ही उलट गया। मनोहर चाचा की पूजा से लगता है भगवान नाराज़ हो गए और उन के यहां चोरी करा दी,” बिल्लू बोला।
“मुझे तो लगता है कि इस पूजापाठ वगैरह से कुछ फायदा नहीं है। यह सब बस यों ही है,” राजू बोला, “वरना मनोहर चाचा के यहां चोरी क्यों होती ?”
“तुम शायद ठीक कह रहे हो, राजू दा…” बिल्लू कुछ सोचता हुआ बोला,
“अब देखो न, कुछ दिनों पहले मेरे ताऊजी की यहां पाठ हुआ था और उसी रात उन के यहां भी ठीक वैसे ही चोरी हुई, जैसे मनोहर चाचा के यहां हुई।”
“ठीक ऐसी ही घटना तो पिछले महीने मेरे दोस्त सुनील के घर भी हुई थी,”
पवन जो अब तक चुपचाप बैठा था, बोला, “उस के यहां अखंड कीर्तन था, जो काफी रात तक चलता रहा और दूसरे दिन सुबह पता चला कि घर का सारा मालमत्ता साफ़ है।”