बड़ा कौन: वार्षिक परीक्षा अभी शुरू नहीं हुई थी। आठ वर्षीय अवि अपने मम्मी-पापा और दीदी के साथ दिल्ली जा रहा था। वहां उसके सबसे छोटे मामा जी की शादी थी। अवि के स्कूल में तीन छुट्टियां भी हो रही थीं इसलिए उसकी खुशी और बढ़ गई थी।
बड़ा कौन: दर्शन सिंह ‘आशट’
अगले दिन सुबह सारा परिवार पटियाला से दिल्ली जाने वाली गाड़ी में सवार होने की तैयारी करने लगा। सबसे पहले तैयार होने वाला अवि ही था। उसे डर था कि कहीं गाड़ी छूट गई तो सारी योजना चौपट हो जाएगी इसलिए वह बार-बार सब को बोल रहा था, “जल्दी करो, फिर न कहना गाड़ी छूट गई है। देखिए, सबसे पहले मैं तैयार हूं”। उसकी बातें सुनकर मम्मी-पापा मुस्कुरा रहे थे।
आखिर सारा परिवार तैयार हो गया। उनके पास चार बड़े बैग थे। तीन में कपड़े वगैरह और एक में अन्य वस्तुएं। पापा ने सीटों का आरक्षण पहले से ही करवाया हुआ था।
गाड़ी आई तो सारा परिवार अपने डिब्बे में जा बैठा। अवि खिड़की की तरफ बैठ गया। ज्यों-ज्यों गाड़ी की रफ्तार तेज होती जा रही थी, अवि को बहुत मजा आ रहा था।
लगभग पांच घंटे में परिवार दिल्ली जा पहुंचा। ननिहाल में खूब रौनक थी। अवि ने मामा जी की शादी में खूब भंगड़ा डाला। कभी किसी
पंजाबी और कभी हिन्दी गीत की धुनों पर उसके पैर थिरकते रहे।
शादी होने के बाद अब परिवार लौटने की तैयारी करने लगा तो ननिहाल से उसकी मम्मी, पापा, उसकी दीदी और अवि को खूब उपहार मिले। अब चार बैगों की बजाय छह बैग बन गए। एक और अलग नैग था छोटा सा, जिसमें अवि ने दिल्ली से खरीदी एक पैंट और दो टी-शर्टे रखी थीं। बूटों का एक नया जोड़ा भी उसी बैग में था।
राजपुरा पहुंचने तक वर्षा भी शुरू हो चुकी थी। “अवि उठो, देखो अपना स्टेशन आ रहा है।” दीदी ने उसे जगाया। अवि आंखें मसलता हुआ सीट पर एकदम बैठ गया। स्टेशन पर उतरने वालों की काफी भीड़ थी। बारिश कम हो रही थी । सारे परिवार ने मिल-जुल कर अपने बैग निकाले और स्टेशन के बाहर आ गए। सामान ज्यादा था, इसलिए 2 रिक्शा कर लिए।
घर पहुंच कर अवि और दीदी अपने-अपने बैगों की वस्तुओं को संभालने लगे लेकिन यह क्या। अवि का छोटा बैग तो दिखाई ही नहीं दिया।
“मम्मी मेरा बैग कहां गया?” अवि ने उत्सुकता से पूछा।
परिवार में तू-तू मैं-मैं होने लगी। सभी एक-दुसरे को दोषी ठहराने लगे।
अवि रोने लगा। उसका कितना खास सामान था बैग में। कोई कह रहा था कि गाड़ी में रह गया। कोई कह रहा था रास्ते में गिर गया होगा। पापा फौरन स्कूटर लेकर रिक्शे वालों के पीछे भागे लेकिन दोनों रिक्शा चालक शायद अपने-अपने घर चले गए थे।
पापा मायूस होकर घर लौट आए। मम्मी बोली, “मुझे तो रिक्शा वाले पर ही शक है। ये चोर होते हैं। एक-एक दो-दो रुपए के लिए लड़ते हैं। जरूर रिक्शे वाला ही ले गया होगा”।
“कहीं गाड़ी में ही तो नहीं रह गया? कितनी धक्का-मुक्की हो रही थी”। पापा ने कहा।
अवि को नींद न आई।
सुबह होते ही घंटी बजी।
पापा ने दरवाजा खोला। एक रिक्शे वाला खड़ा था। उसके हाथ में अवि का बैग था। वह बैग अवि के पापा को सौंपता हुआ बोला, “मैंने रात घर जाकर देखा आपका यह बैग मेरे रिक्शे के पीछे ही एक कील के सहारे लटकता रह गया था। मुझे इसे वापस करने के लिए रात को ही आना था लेकिन बारिश बहुत ज्यादा होने लगी थी। अब सुबह थमी तो तुरंत आपकी चीज लौटाने चला आया”। तब तक सारा परिवार रिक्शे वाले के डर्द गिर्द जमा हो गया था। परिवार के पास रिक्शे वाले का धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं थे।
रिक्शे वाले के जाने के बाद दीदी पापा से बोली, “पापा हम तो इनके बारे में कुछ और ही सोच रहे थे”।
“पिंकी तुम ठीक कह रही हो। अब मेरी सोच ही बदल गई है। ऐसा लगता है कि उस रिक्शे वाले पर दोष लगाकर मैं बड़ा नहीं बल्कि छोटा हो गया हूं। ऐसे व्यक्ति गरीब होने के बावजूद दिल के बहुत अमीर होते हैं और अपनी ईमानदारी से समाज का गौरव बढ़ाते हैं।