बदल गया टीटू: टीटू की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी। वह दिन भर धमाचौकड़ी करता। स्कूल में उसकी न तो अध्यापकों से बनती थी और न ही उन विद्यार्थियों से, जिनकी रुचि पढ़ाई में थी मगर टीटू ने अपने घर में अपना प्रभाव एक अत्यंत पढ़ाकू बच्चे का जमा रखा था।
बदल गया टीटू: प्रो. रणजोध सिंह
अत: स्कूल से आते ही वह अपने कमरे में चला जाता और किताबें खोलकर पढ़ने लगता। घर में जितने भी मेहमान आते, उसके मम्मी-पापा उसकी तारीफ करते हुए न थकते।
सभी को बताते कि उनका बच्चा पढ़ने में बहुत होशियार है, सारी-सारी रात पढ़ता रहता है, बल्कि कई बार तो उससे डरा-डरा कर सुलाना पड़ता है। उसकी एक बड़ी बहन भी थी मगर वह इतनी भाग्यशाली नहीं थी कि स्कूल जा पाती। वह टीटू को पढ़ता हुआ देख कर ही खुद को धन्य समझने लगती।
उस दिन टीटू का जन्मदिन था, सभी लोग यथासंभव उपहार लेकर आए थे। थोड़ी-बहुत धमाचौकड़ी करने के बाद और जन्मदिन पर मिले उपहारों का निरीक्षण करने के उपरांत दोस्त-मित्र अपने-अपने घर चले गए तथा टीटू सदा की भांति अपनी किताबें लेकर कमरे में चला गया।
इस बीच कई मेहमान आए और बधाइयों का सिलसिला देर रात तक जारी रहा। टीटू के माता-पिता व अन्य रिश्तेदार भजन-कीर्तन करते रहे तथा टीटू कमरे से पढ़ाई के चलते बाहर नहीं आया। तभी रात 9 बजे के लगभग टीटू की कक्षा अध्यापिका न जाने क्या सोचकर बधाई देने चली आईं।
उनको देखते ही सारे लोग सम्मान में खड़े हो गए मगर टीटू अपनी पढ़ाई में इतना मस्त था कि उसको पता ही न चला कि उसकी कक्षा टीचर आई हैं।
उन्होंने आते ही टीटू को तलब किया। उसके पिताजी ने छाती फुलाते हुए कहा, “टीटू तो अभी अपने कमरे में है। पढ़ने का उसे बहुत शौक है। वह देर रात तक पढ़ता रहता है।”
खैर, मैडम जी इस कथन से जरा भी प्रभावित नहीं हुईं क्योंकि उसका कक्षा का व्यवहार इस कथन के अनुरूप नहीं था। वह सीधे टीटू के कमरे में प्रवेश कर गईं। वह सचमुच पुस्तक खोल कर बैठा था। मैडम ने उसके कमरे में इतनी तीघव्रता से प्रवेश किया कि टीटू को संभलने का मौका ही नहीं मिला।
मैडम जी ने उसके हाथ से यह जानने के लिए कि ऐसी कौन-सी किताब है जो टीटू जैसे उद्दंड विद्यार्थी को भी आकर्षित कर सकती है, उत्सुकतावश किताब टीटू के हाथों से छीन ही ली । मैडम के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि टीटू के हाथ में जो किताब थी उसका नाम था ‘सामान्य विज्ञान’ मगर जो किताब वह पढ़ रहा था वह एक नावेल था, जिसका नाम था “पहला प्यार” और यह नावेल बड़े अच्छे तरीके से “सामान्य विज्ञान” की किताब के अंदर छुपा कर रखा गया था।
टीटू को काटो तो खून नहीं, मैडम के दर उसकी पोल खुल चुकी थी मगर मैडम ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
उन्होंने चुपचाप एक पैन उपहार स्वरूप उसे दिया और जितनी तेजी से टीटू के कमरे में आई थीं, उतनी ही तेजी से कमरे से बाहर भी चली गईं मगर टीटू हैरान था कि मैडम जी ने नावेल पढ़ने वाली बात उसके परिवार वालों से शेयर नहीं की।
किंतु टीटू को जबरदस्त झटका तो उस समय लगा, जब मैडम ने स्कूल में सारी कक्षा के सामने उसकी तारीफ की और बच्चों से कहा, “हर बच्चे को टीटू जैसा बनना चाहिए क्योंकि कल टीटू के पापा बता रहे थे कि वह देर रात तक पढ़ता रहता है और कई बार तो उसे सुलाने के लिए उसके साथ जबरदस्ती भी करनी पड़ती है।”
बच्चे कनखियों से एक-दूसरे को देख कर हंस रहे थे क्योंकि वे टीटू की वास्तविकता से परिचित थे और इधर टीटू की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे, जो पश्चाताप के थे।
उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह सचमुच ही ऐसा टीटू बनकर दिखाएगा जिसकी तारीफ उसके पिता जी कर रहे थे।