हिंदी जासूसी कहानी – पेज 6
“नहीं…नहीं…कुमार साहब, आप बुरा न मानिए। मैं कल सुबह 8 बजे आप की फैक्टरी में आऊंगा। आप अपने क्षेत्र के थाने से पुलिस इंस्पेक्टर मान सिंह को भी बुला लीजिए। मैंने चोर के बारे में 2 दिन पहले ही पता लगा लिया था। बस आप के अमेरिका से लौटने का इंतजार कर रहा था।”
“बहुत अच्छे, इसका मतलब यह हुआ कि आपने हमारी कंपनी के अफसरों को बेवकूफ बनाया। आखिर किसलिए, भाई?”
“चोर का पता लगाने के लिए यह ड्रामा जरूरी था, कुमार साहब। आप इसे मेरी मजबूरी समझ कर माफ करें।”
“बहुत अच्छे, तुम तो बड़े होशियार निकले।”
“तो फिर कल सुबह 8 बजे फैक्टरी में आप के कक्ष में मिलते हैं,” कहते हुए राकेश ने फोन का रिसीवर रख दिया।
इधर कंपनी के मालिक पी. कुमार आशचर्यचकित थे। उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उन्होंने सारी रात उत्सुकता में करवटें बदल कर काटी। वह सोच रहे थे कि चोर आखिर कौन हो सकता है? राकेश ने इतनी जल्दी चोर का पता कैसे लगा लिया?
वह सुबह जल्दी ही सो कर उठ गए और तैयार हो कर फैक्टरी पहुंचे। उन्होंने श्रीकांत को भेज कर पुलिस इंस्पेक्टर मान सिंह को अपने कक्ष में बुलवा लिया।
राकेश सुबह के ठीक 8 बजे कुमार साहब के कक्ष में पहुंच गया। उसे प्रसन्नता हुई कि वहां पर कुमार साहब, पुलिस इंस्पेक्टर मान सिंह और जनरल मैनेजर श्रीकांत मौजूद थे।
राकेश ने कहा, “सेठजी, आप स्टोर विभाग के सारे कर्मचारियों को यहां बुला लें। उनके सामने ही चोर को पकड़ना ज्यादा अच्छा होगा।”
कुमार साहब ने श्रीकांत की ओर देखा, श्रीकांत ने कहा “हां” कह कर गरदन हिलाई और चपरासी को बुला कर आदेश दे दिया। कुछ ही देर में वहां पर स्टोर विभाग के सारे कर्मचारी इकट्ठे हो गए।
राकेश ने कहा, “अब प्रोडक्शन विभाग से सुरेंद्र कुमार को भी बुला लें” चपरासी फिर से जा कर प्रोडक्शन विभाग से सुरेंद्र कुमार को भी बुला लाया।
सुरेंद्र कुमार के वहां आते ही इंस्पेक्टर मान सिंह चौंके। उनके मुंह से एकदम निकल पड़ा। “यह तो सजायाफ्ता चोर है। आप के यहां कैसे आ गया?”
सुरेंद्र कुमार ने इंस्पेक्टर के मुंह से यह सुना तो वहां से भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर मान सिंह ने बड़ी फुरती से उसे पकड़ लिया और उसके हाथों में हथकड़ी लगी दी।
राकेश ने कहा, “सुरेंद्र कुमार का चोरी में पूरा पूरा साथ देने के जुर्म में आप दया राम को भी गिरफ्तार कर लीजिए, इंस्पेक्टर साहब।”
“यह मेरे ऊपर झूठा आरोप है। मैं इस कंपनी का पिछले 30 वर्षों से वफादार नौकर हूं। पिछले सप्ताह तो राकेश जी ने सब के सामने मेरी पीठ थपथपाई थी। आज यहां स्वयं मुझे गिरफ्तार करने के लिए कह रहें हैं,” दया राम चिल्लाया।
“आप दिनदहाड़े किसी शरीफ आदमी की इज्जत धूल में नहीं मिला सकते,” स्टोर मैनेजर एस.लाल भी चीख पड़े। स्टोर विभाग के दूसरे कर्मचारी भी शोर मचाने लगे।
कुमार साहब ने उन लोगों को शांत किया और राकेश से बोले, “आप इन लोगों की उत्सुकता को शांत करके जरा केस पर ठीक ढंग से रोशनी डालिए। आप शायद ठीक कह रहे हों, लेकिन मुझे भी कंपनी चलाने के लिए इन लोगों से ही काम लेना है।”
“ठीक है, अब आप लोग मेरी बातें जरा ध्यान से सुनिए,” राकेश ने आराम से कहना शुरू किया, “आज के युग में स्वयं के बारे में ईमानदार एवं शरीफ होने का दावा करना सूरज को दीपक दिखाने के समान है, क्योंकि प्रत्येक आदमी के जीवन में कभी न कभी, किसी न किसी रूप से लालच में फंस ही जाता है। मसलन दया राम पर गोपी कृष्ण पूरा पूरा भरोसा इसलिए करते हैं क्योंकि वह दफ्तर में और दफ्तर के टाइम के बाद घर पर भी उनकी सेवा करता है। वह पिछले 30 वर्षों से कंपनी में निष्ठापूर्वक काम कर रहा है, लेकिन बुरा हो लालच का, 30 वर्षों के बाद भी वह लालच में फंस ही गया।
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Bhai Iske Aage Ki story ka kya hua.
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