हिंदी जासूसी कहानी – पेज 7
“सुरेंदर कुमार के उकसाने पर ही दोनों ने मिल कर एक योजना बनाई। 3 महीने पहले स्टोर के लिए 2 ताले खरीदने का आदेश प्राप्त हुआ तो दया राम ने एक ताला खिड़की में लगा दिया जो चाबी लगाने से प्रत्यक्ष में तो बंद हो जाता था लेकिन हाथ से झटका देते ही खुल भी जाता था। इस ताले को हाथ से धक्का देकर फिर से बंद भी किया जा सकता था।
दया राम ने हाथ आए इस अवसर के बारे में अपने प्रगाढ़ मित्र सुरेंद्र कुमार को बताया। सुरेंद्र कुमार की बाछें खिल गई। उसका तेजतर्रार पेशेवर दिमाग काम करने लगा। आपस के विचारविमर्श से उनकी योजना को बल मिला जबकि दया राम का बास गोपी कृष्ण उसकी इस चालाकी के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकता था।”
राकेश ने बोलना जारी रखा, “लेकिन मैं दया राम की इस चालाकी को पिछले दिनों खिड़की का मुआयना करने के बाद भांप गया था, अतः मैं उसे सतर्क नहीं करना चाहता था।
“इसके बाद मैंने चुपके से श्रीकांत जी से उनके घर पर संपर्क साधा। उनसे कुछ मदद चाही और अपने मकसद को गोपनीय रखने के लिए कहा। यहां तक कि कुमार साहब से भी छिपा कर रखने का वादा लिया।
“दया राम को सतर्क होने से बचा कर और प्रत्यक्ष में स्टोर विभाग से लौट कर मैंने चोर को पकड़ने के लिए जाल बिछाया था। उसके बाद मैं श्रीकांतजी के साथ रात में 9 बजे चुपके से फैक्टरी में घुसा। मैंने स्टोर में जाकर खिड़की की ग्रिल पर काले रंग का ताजा पेंट लगाया। मुझे आशा थी कि उस रात को कोई न कोई चोर खिड़की के रास्ते बियरिंग चुराने आएगा। खिड़की पर पहले से ही काला रंग लगा हुआ था, इसलिए चोर को संदेह भी नहीं हो सकता था कि ताजा पेंट किया गया है। इसके बाद मैं निश्चिन्त हो गया, लेकिन उस रात कोई चोरी नहीं हुई।
“मैंने दूसरी रात को फिर ताजा पेंट खिड़की में लगाया। सुरेंद्र कुमार रात में 12 बजे अपनी ड्यूटी पर तीसरी पारी में आया। इसके बाद अवसर मिलते ही वह स्टोर में गया। फिर उसने खिड़की की ग्रिल में हाथ डाल कर ताला खोला भीतर घुस गया।
“उसे पता भी न चला कि उसके हाथ में काला पेंट लग गया था। मैंने पेंट में एक केमिकल मिलाया था जिस की वजह से पेंट हाथ में लगने के बाद आसानी छूट न सके।
एस.लाल जी, आप एक बात ध्यान से सुनिए। आप के यहां जब भी चोरी होती थी, उस रात सुरेंद्र कुमार तीसरी पारी की ड्यूटी में होता था। आप को स्टोर स्टाफ रजिस्टर तथा सुरेंद्र कुमार का हाजिरी रजिस्टर देखने से इसका पता चल जाएगा। थोड़े से बियरिंग चोरी करने के बाद सुरेंद्र कुमार खिड़की में दया राम द्वारा बताई गई तरकीब के अनुसार ताला बंद कर देता था। इससे ताले की सील भी वैसी की वैसी लगी रहती थी। इसके बाद वह बियरिंग लेकर फैक्टरी की पिछली चारदीवारी की ओर चला जाता।
“रात में एक से डेढ़ बजे के बीच वहां पर कोई चौकीदार नहीं होता है क्योंकि एक बजे रात तक ड्यूटी करने वाला चौकीदार अपनी छुट्टी करके सिक्योरिटी गेट आफिस में चला जाता है और वहां पर सोए दूसरे चौकीदार को उठा कर अपने स्थान पर भेजता है। इस बीच आधे घंटे तक वहां सुनसान रहता है। इस सिथति का फायदा उठा कर सुरेंद्र कुमार बियरिंग चारदीवारी के बाहर फेंक देता था जिन्हें सुबह 5 बजे दया राम आ कर उठा लेता था।
“मैंने 2 -3 दिन दया राम के घर पर अपने एक सहायक द्वारा निगरानी करवाई, तब यह रहस्य मेरे सामने आया।
“पिछले बुधवार की रात को चोरी करने के बाद सुरेंद्र कुमार को हाथ में लगे काले पेंट के बारे में पता नहीं चला। सुबह 8 बजे उसने ड्यूटी समाप्त करने पर काले रंग को हाथ पर लगा देखा तो घर जाने से पहले नल पर जाकर उस रंग को साफ करने का प्रयास किया। वह काला रंग उससे आधे तक भी नहीं छूटा। सुबह की ड्यूटी पर 7.45 बजे ही दया राम भी आ गया था। उसने सुरेंद्र कुमार को मिट्टी के तेल की शीशी ला कर दी, पर उस तेल से भी उसके हाथ से पेंट का दाग नहीं छूटा।
“मैं चेहरे पर मेकअप करके नल के पास ही खड़ा था। मैं जानता था कि जिसके हाथ पर काले पेंट का दाग लगा होगा, वह नल पर आ कर हाथ का पेंट छुड़ाने की कोशिश करेगा।
“सुरेंद्र कुमार को यह दाग छुड़ाते और दया राम द्वारा मिट्टी के तेल की शीशी लाने का दृश्य मैंने दूर से श्रीकांतजी को भी दिखाया था। अब तुम बताओ दया राम, तुमने लालच में आकर अपनी 30 साल की ईमानदारी पर दाग लगा दिया कि नहीं?”
दया राम सिर झुकाए खड़ा था।उसकी मौन स्वीकृति मिल जाने के कारण स्टोर विभाग के सभी कर्मचारी भी शोरगुल बंद करके मौन हो गए थे।
पी. कुमार ने कहा, “इंस्पेक्टर साहब, आप इन दोनों चोरों को थाने ले जा सकते हैं।”
दया राम की आखों में आंसू थे।
राकेश ने कहा, “सेठ जी, आप मेरी बकाया फीस न दीजिए। इसके बदले में क्या आप मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर सकते हैं?”
“बोलो, राकेश।”
“सुरेंद्र कुमार तो पेशेवर चोर है लेकिन दया राम जैसे ईमानदार आदमी से लंबे सेवाकाल में यह पहली भूल हुई है। यदि आप इसे सरकारी गवाह बना कर जेल जाने से बचा लेंगे और बाद में वापस नौकरी पर रख लेंगे तो इसका शेष जीवन बरबाद होने से बच जाएगा।”
“ठीक है, तुम्हारे कहने से मैं इसे माफ कर दूंगा और तुम्हारी फीस भी दोगुनी दूंगा,” कहते हुए कुमार साहब ने राकेश की पीठ थपथपाई तो वहां पर मौजूद सभी लोगों के मन में राकेश के प्रति सम्मान बढ़ गया।
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Bhai Iske Aage Ki story ka kya hua.
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