बिल्लू हमेशा की तरह अपनी किताब पकड़े हुए बगीचे में बैठा हुआ था पर उसकी नज़रें आसमान में उड़ती हुई लाल पतंग पर टिकी हुई थी।
मम्मी जो कि पास ही बैठी गुलाब के पौधों की कटाई-छंटाई कर रही थी उसे बीच बीच में देख लेती थी।
वह मन ही मन बहुत खुश हो रही थी कि करीब एक घंटा होने के बाद भी बिल्लू चुपचाप बैठा अपनी पढाई कर रहा था।
खुश तो पापा भी बहुत हो रहे थे जो नीबूं के पेड़ से नीबूं तोड़कर एक हरे रंग की टोकरी में रख रहे थे।
बिल्लू की पतंग: डॉ. मंजरी शुक्ला
उन्हें लग रहा था कि बिल्लू अगर इसी तरह से मन लगाकर पढ़ता रहा तो इस महीने के टेस्ट में तो पास हो ही जाएगा।
बिल्लू का ध्यान ना भटक जाए इसलिए मम्मी और पापा, दोनों ही उसके पास नहीं जा रहे थे और बिल्लू का मन नीले आसमान में उस लाल पतंग के साथ अठखेलियाँ कर रहा था।
पर दादाजी अपनी आरामकुर्सी पर बैठे बिल्लू को बहुत गौर से देख रहे थे।
उन्हें समझ में आ गया था कि जो बच्चा पाँच मिनट से ज़्यादा ना तो चुप बैठ सकता था और ही अपनी जगह पर बैठ सकता था, वह भला पिछले एक घंटे से मूर्ति बना कैसे बैठा हुआ है।
वह धीरे से उठे और दबे पाँव जाकर बिल्लू की कुर्सी के पीछे जाकर खड़े हो गए।
पर बिल्लू की नज़र अभी भी पतंग पर थी। उसका मुँह खुला हुआ था और आँखों की कंचे जैसी पुतलियाँ इधर से उधर घूम रही थी।
दादाजी बोले – “बहुत ध्यान से पढ़ाई हो रही है”।
बिल्लू हड़बड़ा गया और तेजी से बोलने लगा – “इस पाठ में हमें लेखक हमें ये बता रहा है कि…”
“रुक जाओ… हिंदी मत पढ़ो, तुम गणित की किताब पकड़े बैठे हो”।
“ओह! पढ़ते पढ़ते इतना खो गया कि ध्यान ही नहीं रहा कि हिंदी पढ़ रहा हूँ या गणित पढ़ रहा हूँ” कहते हुए बिल्लू ने अपनी गणित की किताब को सीधा कर लिया जो इतनी देर से वह उल्टी पकड़े बैठा हुआ था।
ना चाहते हुए भी दादाजी की हँसी निकल गई और वह बोले – “चलो, अपनी पतंग और माँझा निकालो हम छत पर चलते हैं”।
बिल्लू चुपचाप किताब पकड़े बैठा रहा।
“आओ, बिल्लू, चलो, हम छत पर चलकर उस लाल वाली पतंग से पेंच भिड़ाते है” बिल्लू ने डरते हुए पापा मम्मी की तरफ़ देखा।
पापा उसके पास आने लगे तो बिल्लू ने डर के मारे आँखें बंद कर ली।
वह सोच ही रहा था कि अब उसे जोरो की डाँट पढ़ने वाली है और हमेशा की तरह पापा अभी सौ बातें उसे पढ़ाई के लिए कहेंगे और उसे किस बात का क्या जवाब देना है और कैसे देना है, ये सवाल उसके मन में चल ही रहे थे कि पापा कि आवाज़ आई – “लो, ये पैसे रख लो, अपने लिए सुन्दर सी पतंग और नई चाकरी भी ले लेना”।
बिल्लू ने हड़बड़ाते हुए आँखें खोली।
सामने ही पापा मुस्कुराते हुए खड़े थे।
बिल्लू की आँखें शर्म से झुक गई। वह धीरे से बोला – “पापा, मैं अभी पढ़ाई नहीं कर रहा था बल्कि उस लाल पतंग को देख रहा था”।
मुझे पता है। जब मैंने पिताजी को तुम्हारे पास जाते हुए देखा तो मुझे लगा कि वह तुझसे पढ़ाई के बारे में कुछ पूछने जा रहे हैं पर तुम्हरी बातें सुनकर मुझे पता चला कि तुम पिछले एक घंटे से उस पतंग को देख रहे थे”।
“तो आप मुझ पर नाराज़ क्यों नहीं हो रहे हो” बिल्लू ने आश्चर्य से पूछा?
“मेरे नाराज़ होने से क्या वो एक घंटा वापस लौट कर आ जाएगा जो तुमने बर्बाद कर दिया। इससे तो अच्छा होता कि तुम छत पर जाकर पतंग उड़ा लेते और उसके बाद अपनी पढ़ाई कर लेते”।
“पापा, मैं कितना भी पढ़ लूँ, मेरे अच्छे नंबर नहीं आते” कहते हुए बिल्लू की आँखें भर आई।
दादाजी ने प्यार से बिल्लू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा – “नंबर इसलिए अच्छे नहीं आते क्योंकि तुम सरे दिन सिर्फ़ किताब पकड़े बैठे रहते हो। जैसे तुम सब कुछ भूलकर उस लाल पतंग को देख रहे थे वैसे ही ध्यान से अपनी पढ़ाई करो तो”।
तभी दादाजी बोले – “बेटा, जिस तरह से तुम सब कुछ भूलकर उस पतंग को देखने में खोये थे अगर उतनी ही तल्लीनता से पढ़ोगे तो फ़िर देखना कि तुम क्या कमाल करते हो”।
बिल्लू ने दादाजी को गौर से देखा और बोला – “हम एक घंटे बाद चलेंगे पतंग लेने, मैं अपना होमवर्क खत्म करके आता हूँ”।
और यह कहकर उसने घर के अंदर की ओर दौड़ लगा दी।
पापा और दादा जी एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए।
आसमान में उड़ती लाल पतंग अचानक ही अब और ऊँची उड़ने लगी थी।