“और सुनाओ सुमन” रात को संजय ने सुमन से पूछा, “कैसी चल रही है तुम्हारी पढाई-लिखाई”?
“बस भैया, चल रही है किसी तरह” उसने कहा।
“किसी तरह”? संजय चौका, “क्या मतलब है तुम्हारा”? “मतलब यह कि पढाई जैसी चलती है, वैसी चल रही है और कोई खास बात नहीं है”।
सुमन के इस बेमन से दिए जवाब को सुनकर संजय से नहीं रहा गया। उसने कहा, “तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं है”?
“ऐसी कोई बात नहीं”। “फिर पढाई में क्या दिक्कत है”? संजय ने बता आगे बढ़ाते हुए कहा, “अच्छा चलो तुम मेरे कुछ प्रश्नों का जवाब दो”। इतना कहकर उन्होंने गणित, विज्ञान और अंग्रेजी के उससे कुछ प्रश्न पूछे मगर वह उनके प्रश्नों का जवाब नहीं दे सका।
“छोड़ो भी भैया। तुम भी क्या पूछने लगे”? अंत में उसने कहा। “नहीं सुमन”, संजय ने कहा, “मुझे यकीन नहीं आता कि तुम्हारी पढाई इतनी कमजोर कैसे हो गई? खैर छोड़ो, इस पर बाद में चर्चा करेंगे। तुम्हारे और दोस्तों के क्या हाल-चाल है”?
सुमन उन्हें अपने मित्रों के बारे में बताने लगा। फिर उसके भैया ने कहा, “तुम क्रिकेट तो बड़ी अच्छी खेलते थे। इधर स्कूल की तरफ से कोई मैच खेले कि नहीं”?
“कुछ मैच तो जरुर खेला” सुमन ने कहा, “लेकिन मैं उनमें कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सका”।
“ऐसा क्यों”? “पता नहीं”, सुमन ने कंधे उचकाते हुए कहा। इन दो-तीन दिनों में संजय ने महसूस किया कि सुमन में कौन-सी कमियां आ गई थीं। वह कोई भी काम करता तो उसे बेमन से और टालने के उद्देश्य से करता। किसी काम में उसका पूरा मन नहीं लगता था। चाहे स्कूल की पढाई हो या घर का होमवर्क या उसका कोई दैनिक कार्यकलाप। सब वह जैसे-तैसे पूरा करता था अथवा आधा-अधूरा कर छोड़ देता था।
उसकी कमियों को महसूस कर संजय ने उसे एक दिन अपने साथ बिठाया और समझाने लगा, “सुमन, तुम किसी काम को ठीक से क्यों नहीं कर पाते हो, इसका रहस्य मैं तुम्हें बात रहा हूं”।
सुमन आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा। उन्होंने आगे कहा, “दरअसल तुममें आत्मविश्वास की सख्त कमी है। यही वजह है कि न तो तुम कोई काम मन से कर पाते हो और न ही उसे ढंग से करने की कोशिश करते हो”।
“क्या मतलब भैया”? उसने आश्चर्य से पूछा।
“देखो मैं तुम्हें बताता हूं”। संजय ने कहा, “कोई भी काम पूरा करने के लिए जरूरत होती है लगन की। यह तभी हो पाता है जब हमारे पास उस काम को कर पाने का पूरा आत्मविश्वास हो। तुम कोई भी काम करते हो तुम्हारा आधा दिमाग कहीं और होता है। तुम्हें इस बात का विश्वास नहीं होता कि तुम उसे अच्छे ढंग से कर सकते हो। यह चीज दर्शाती है कि तुममें आत्मविश्वास की कमी है इसी कमी की वजह से तुम जिंदगी में कभी कुछ हासिल नहीं कर सकते”।
“फिर मुझे क्या करना चाहिए”? सुमन बोला, “आखिर मैं कहां से लाऊं आत्मविश्वास”? इसका बहुत आसान सा उपाय है”? संजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “हम कोई भी काम समय से और अच्छे ढंग से करें तो हममें स्वतः आत्मविश्वास आ जाएगा। हर काम का एक समय निर्धारित समय पर पूरा करें तो निश्चित ही उसमें सफलता मिलेगी। पढाई का जो सिलेबस है, तुम उसे सही समय पर पूरा नहीं करते हो, इससे उसमें पिछड़ जाते हो। नतीजा होता है कि परीक्षा में अच्छे अंक नहीं आते। किसी एक क्षेत्र में पिछड़ने पर उसका प्रभाव आगे भी पड़ता है”।
इतना कहकर वह थोड़ी देर रुके और फिर आगे कहा, “तुम्हें अपने डेली रूटीन, खान-पान और पहनावे पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि इनके सही रहने पर ही तुममें आत्मविश्वास आ सकेगा। तुम्हारी उम्र के लड़कों को नियमित रूप से थोड़ा व्यायाम भी करना चाहिए। इससे शरीर तो चुस्त रहता ही है, मन भी प्रसन्न रहता है और जब हम प्रसन्न मन से कोई काम करते हैं तो उस काम को करने में आनंद भी आता है और काम भी अच्छा होता है। ये सब कुछ ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं जिनका ध्यान रखकर हम आत्मविश्वास पा सकते हैं और जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं”।
उनकी बातें सुनकर सुमन ने कहा, “भैया, आज आपने मेरी आखें खोल दीं। अब मैं आपके सुझावों पर अवश्य अमल करूंगा और अपने सारे काम समय पर पूरा करने का प्रयास करूंगा”।
“तब मैं कह सकता हूं कि तुम अपने जीवन में एक दिन अवश्य कामयाब होकर रहोगे”। इतना कहकर बड़े भैया ने उसकी पीठ थपथपा दी।