चक्रव्यूह: हालात से मजबूर होनहार विद्यार्थी की दिल छु लेने वाली कहानी

चक्रव्यूह: हालात से मजबूर होनहार विद्यार्थी की दिल छु लेने वाली कहानी

चक्रव्यूह: गांव का वह स्कूल 11वीं कक्षा तक का था। बच्चे दो-दो, चार-चार के गुट में बतिया रहे थे। आज 10वीं का परिणाम आने वाला था। अभिमन्यु को देखकर एक गुट के बच्चों ने उसे अपने पास बुला लिया। वह गया तो एक बच्चा बोला, ‘अभिमन्यु, इस बार तुम चक्रव्यूह में घिर गए हो।’

‘मैं समझा नहीं।’

चक्रव्यूह: गोविंद शर्मा

‘हर साल तुम कक्षा में प्रथम आते हो। इस बार अपनी कक्षा के पांच बच्चों ने एक योजना बनाई कि वे खूब पढ़ेंगे। उनमें से कोई न कोई तुमसे ज्यादा नंबर लेकर तुम्हें फर्स्ट के पद से नीचे धकेल देगा। उन कौरवों का चक्रव्यूह तुम नहीं भेद सकोगे।’

अभिमन्यु को हंसी आ गई। बोला, ‘तुम बार-बार उन्हें कौरव क्यों कह रहे हो? वे मेरे भाई ही है। उनमें से किसी के या सबके मेरे से ज्यादा नंबर आए तो मुझे खुशी होगी।’

यह तब की बात है, जब परीक्षा परिणाम दैनिक समाचारपत्रों में छपा करते थे।

अचानक आए एक भीषण तूफान से फसलों का नुकसान हुआ ही, कुछ घर भी गिर पड़े, जिनमें अभिमन्यु का घर भी शामिल था। अभिमन्यु के श्रमिक पिता के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। उसका पुनर्निर्माण काफी खर्चीला था, इसलिए एक फैसला ले लिया गया कि…।

फिर भी परीक्षा परिणाम आने का पता चलने पर अभिमन्यु को रिजल्ट जानने के लिए स्कूल भेज दिया गया। वहां दूसरे बच्चों ने उसे घेर लिया और बधाइयां देने लगे। अध्यापकों ने भी उसकी पीठ थपथपाई क्योंकि इस बार भी वह अपनी कक्षा में प्रथम था। वे पांचों बच्चे भी आए, जिन्होंने अभिमन्यु को प्रथम पद से गिराने के लिए पढ़ाई में परिश्रम शुरू किया था। वे बोले, ‘हम तुम्हें हरा नहीं सके पर तुम्हारा मुकाबला करने के लिए हमने जो मेहनत की, हम सब के अंक उम्मीद से ज्यादा आए हैं।’

‘मित्रो, यह बहुत अच्छी बात है। खूब मेहनत करो, पर यह भी सोच लेना कि अब तुम लोग मेरा मुकाबला नहीं कर सकोगे क्योंकि मैं अब स्कूल पढ़ने नहीं आऊंगा। अभिमन्यु अब पढ़ने की बजाय टूटे घर को दोबारा बनाने में मदद करेगा अर्थात कोई नौकरी करेगा या मजदूरी करने जाएगा।’ यह कहते-कहते अभिमन्यु की आवाज थर्रा गई और आंखें गीली हो गईं।

लगभग 15 दिन बाद स्कूल खुल गए। अभिमन्यु तो स्कूल की बजाय मजदूरी करने जाने लगा। एक दिन बरसात की वजह से उसे कहीं काम नहीं मिला। वह घर के आंगन में बैठा था। उसके एक परिचित अध्यापक उसके घर के आगे से कहीं जा रहे थे। उनकी निगाह अभिमन्यु पर पड़ी तो उसे इशारे से अपने पास बुलाया। अभिमन्यु तेजी से उनके पास गया और अध्यापक के पांव छुए।

‘अभिमन्यु तुम आजकल स्कूल क्यों नहीं आते?’

‘सर मैंने पढ़ाई छोड़ दी है। आप देख रहे हैं हमारे घर की हालत। मेरे पिता कहते हैं कि उनकी आय से घर की दाल-रोटी मुश्किल से जुटती है, टूटे घर को बनाने पर भी भारी खर्च होगा। ऐसे में फीस के रुपए, किताबें और यूनिफार्म के पैसे का इंतजाम कैसे करूं?’

‘क्या कहते हो? तुम्हारी फीस तो जमा है। 11वीं कक्षा में तुम्हारा नाम लिखा है।’

‘यह फीस कैसे जमा हो गई?’

‘यह तो मुझे नहीं मालूम। स्कूल में जाकर प्रिंसीपल साहब से पूछो।’

अगले दिन पिता से अनुमति लेकर अभिमन्यु स्कूल गया। प्रिंसीपल साहब से पूछा कि उसकी फीस किसने जमा की है। प्रिंसीपल बोले, ‘इससे तुम्हें क्या लेना है? तुम कल से पढ़ने स्कूल आया करो। तुम उस बड़ी मेज के पास जाओ और किताबों का एक बंडल उठा लो।
ये तुम्हारी 11वीं की किताबें हैं।’

अभिमन्यु किताबें लेकर कार्यालय से बाहर आया। अभी वह कुछ ही दूर गया था कि एक बच्चा उसके पास आया और एक बंडल उसे पकड़ा कर दूर निकल गया। अभिमन्यु ने देखा उस बंडल में एक जोड़ी स्कूल यूनिफार्म है।

अब अभिमन्यु के चेहरे पर एक मुस्कान थी। उसने सोच लिया कि अभावों के चक्कर में घिरे पिता से कहूंगा तो वह स्कूल आने की अनुमति जरूर दे देंगे, क्योंकि उसके स्कूल छोड़ कर काम करने से वह खुश नहीं थे।

अब सद्भावना के चक्रव्यूह में घिरा अभिमन्यु मन ही मन प्रण कर रहा था कि उम्र भर, जाने-अनजाने लोगों का भला करता रहूंगा अर्थात सद्भावना के इस चक्रव्यूह को कभी भूलूंगा नहीं।

~ ‘चक्रव्यूह‘ story by ‘गोविंद शर्मा

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