अब ना-नानी रहीं, ना ही वो कहानियाँ और ना ही उनकी वो जादुई सुनहरी संदूकची, जिसको बस एक नज़र देखने के लिए हम नानी के सभी काम सर के बल करने के लिए तैयार खड़े रहते थे। फ़िर चाहे उनका चाँदी का नक्काशीदार पीकदान उठाकर लाना हो या फ़िर उनकी सफ़ेद मुलायम फ़र वाली चप्पलें जो वह बड़े गर्व से बताती थी कि किसी गोरी अंग्रेजन मेम ने उनकी सुंदरता पर फ़िदा हो कर दी थी।
सारी बातें सदियों पुरानी एक कहानी की तरह है। लगता है ये रात मुझे अपने आगोश में लेकर कुछ खुश हो जाएगी और अंधेरों से निकालेगी कुछ अनकही बातें, कुछ अनसुनी कहानियाँ जिन्हें सोचते हुए पता नहीं ये पल कब बीत जाएंगे जैसे कभी थे ही नहीं। कल फिर उस से सामना होगा… उसी से… और ये सोच कर मैं ज़ोरो से हँस पड़ा ऐसा लगा जैसे पूरे कमरे में जैसे सुगंधा के सुनहरे बाल है और मैं उनका झूला बनाकर उस पर झूलते हुए उससे बातें करने लगा। ना जाने कब खिड़की से आती ठंडी हवा के झोंकों ने मुझे सुला दिया, मैं जान ही नहीं सका। सुबह उठते ही हमेशा की तरह सबसे पहले मैंने भगवान से प्रार्थना करी कि मुझे आज सुगंधा का चेहरा जरूर दिखा देना, वरना इस तरह से तो दिन रात घुटते हुए मैं मर जाऊंगा। मैं हर पल की मौत नहीं मर सकता। पर मैं कर ही क्या सकता हूँ? क्या किसी को जबरदस्ती अपनी ओर खींच लूँ। इस बात की कल्पना ने ही मेरे रोंगटे खड़े कर दिए और मैंने पास पड़ी चादर से अपने माथे का पसीना पोछ लिया।
तभी माँ कमरे मे आई हमेशा की तरह एक हाथ में बेलन और एक हाथ में भिंडी लिए हुए।
मुझे देख कर मुस्कुराते हुए बोली – “क्या देख रहा है तेरी बीवी भी एक दिन इसी हाल में दिखेगी सुबह-सुबह”।
ये सुन कर मैं शरमा दिया।
माँ बोली – “चल अब जल्दी से नाश्ता कर ले तेरी पसंद की भिंडी की सब्जी बना रही हूँ।”
मैं झटपट तैयार होकर डाइनिंग टेबल पर पहुंचा तो मां बोली – “तेरा ही रास्ता देख रही थी अब गरम-गरम कुरकुरे पराठें बना कर तुझे खिलाती हूं।”
मैंने कहा “अरे माँ, क्यों परेशान हो रही हो – दो सेंक कर रख देती वैसे भी मैं कहाँ ज्यादा खाता हूँ मैं?”