माँ ने तुरंत अगला प्रश्न दागा – “तुझे कैसे पता चला कि वह तुझसे प्यार करती है और तू उसे बिना देखे बिना जाने कैसे प्यार करता है”।
मैंने धीरे से कहा – “वो क्लास में मेरे आगे की सीट पर ही बैठती है। यह पांचवा साल है और वो आगे हमेशा पहले से ही आकर बैठ जाती है ताकि कोई और उस जगह ना बैठ जाए। जब मुझे लेक्चर नहीं सुनाई देता है और मैं अपने बगल वाले से पूछता हूँ तो वो सबसे पहले मुझे तुरंत पीछे मुड़कर अपनी कॉपी पकड़ा देती है। मां, उसने कई बार मुझे अपना टिफिन भी दिया है। तुम मुझसे पूछती हो ना कि मैंने क्या खाया अगर मैं कभी खाना घर पर भूल जाता हूं। मेरे सारे दोस्त बाहर कैंटीन में खाते है पर तुझे मेरा कैंटीन में खाना पसंद नहीं है इस वजह से मैं कई बार नहीं खाता हूँ, तो मां, वो हमेशा दो टिफ़िन लेकर आती है एक खुद खाती है और दूसरा मुझे दे देती है।”
मां अब थोड़ा गुस्से से चिल्लाई -” मुझे लगता है कि मैं पागल हो जाऊंगी। ये क्या पागलपन है आगे से पीछे टिफिन देती है आगे से पीछे कागज पकड़ाती है। तो तूने पांच साल में एक बार भी उसका मुंह कैसे नहीं देखा?”
“मैं कैसे देखूंगा, वो बुर्का पहनकर जो आती है।”
माँ का चेहरा ये सुनते ही फ़क पड़ गया।
“बुरका भला वो क्यों…” माँ ने हकलाते हुए पूछा।
वो बता रही थी कि उसके घरवाले बहुत ही दकयानूसी ख़्यालों के लोग है और क़ानून की पढ़ाई कोई लड़की करे ये बात उनके तमाम रिश्तेदारों को गंवारा नहीं, इसलिए वो उसकी जिद के आगे झुककर चुपचाप उसे लॉ की डिग्री दिलवा रहे है।”
ओहो… माँ ने राहत की साँस लेते हुए कहा और बोली – “लेकर आ उसे जल्दी ही किसी दिन, बोलना मैंने बुलाया है मिलने को”।
ठीक है माँ… कहता हुआ में कॉलेज के लिए निकल पड़ा। माँ से बात करने के बाद मैंने सुगंधा से बात करने का निश्चय किया, पर उसके सामने जाते ही जैसे जुबान पर किसी नामी गिरामी कंपनी का ताला लग जाता था जो बहुत कोशिशों के बाद भी कभी नहीं खुल पाता।
तमाम रातें अपना तकिया उसकी यादों से भिगोने के बाद मैंने उससे बात करने का निश्चय किया उधर माँ मेरी हालत देखकर बहुत परेशान हो रही थी। एक दिन उन्होंने मुझे अपने पास बैठाया और मेरी आंखों में देखते हुए कहा – “लड़की है चुड़ैल या पिशाचिनी नहीं जो तेरा खून पी जाएगी या फ़िर तेरी पीठ पर तुरंत सवार होकर बैठ जाएगी”।
मां की बात सुनते ही सुगंधा का मेरे पीठ पर बैठकर घर तक आने के दृश्य को सोच-सोचकर मैं खूब हँसा और मैंने कहा – “मां अगर तुमने मुझे कोएड स्कूल में डाला होता तो आज मेरी यह दुर्दशा नहीं हुई होती। कम-से-कम लड़कियों से बात करने की हिम्मत तो हुई होती।”
माँ हंसते हुए बोली – “अच्छा हुआ नहीं डाला वरना यहां लड़कियों का तांता बंधा रहता और वे सब मिलकर मुझ बुढ़िया को घर से बाहर निकाल देती।”
मैंने मुस्कुराते हुए उनकी तरफ देखा तो बाइक की चाभी मेरे हाथ में देते हुए वे बोली – “आज खटारा बस के धक्के खाते ना जाना और बाइक पर ले कर आना उसे वरना आज ही तुझे घर के बाहर कर दूंगी।”
मैंने मां की ओर देखा तो वो मुस्कुराते हुए रसोईघर में चली गई।
मुझे माँ का वाक् चातुर्य और बड़ी से बड़ी बात को मजाकिया लहज़े में कहने का ढंग बहुत पसंद है।
मैं कॉलेज जाने की तैयारी करने लगा।
क्लास में जाते ही सुगंधा को देखकर में आश्चर्यचकित रह गया।
ओफ्फो, क्या आज भी सुबह 5 बजे से आकर यहां बैठ गई है, मैं सुगंधा को पहले से वहां बैठा देखकर बुदबुदाया।
आज मैं भी समय से बहुत पहले पहुंच गया था, इसलिए मुझे सुगंधा से बात करने का मौका मिल गया मैंने गले पर हाथ फेरकर, थूक निकलते हुए पीछे की सीट से ही धीरे से कहा – “माँ,तुमसे मिलना चाहती है।”
“क्यों?” एक शांत किंतु सधे हुए शब्दों में जवाब आया।
वो, वो… मैंने तुरंत सोचा कि अपने जन्मदिन का बहाना बना दूँ या फिर घर में कोई फंक्शन के लिए कह दूँ, पर अमूमन झूठ बोलने की कभी आदत ही नहीं रही इसलिए चुप हो गया।
“ठीक है…” सुगंधा ने मेरी चुप्पी का जवाब अपनी हाँ में देते हुए कहा।
मैं तो खुशी से जैसे बाँवला हो गया।
एक के बाद एक करके बाकी के स्टूडेंट्स क्लास में कब आए, कब लेक्चर शुरू हुआ और कब खत्म, कब सर चले गए कुछ पता ही नहीं चला।
सपनों के सफ़ेद गुब्बारों में बैठकर मैं सुनंदा के साथ आराम से बातें कर रहा हूं। उसके सुंदर गोरे मुखडे की ओर ताकते हुए अपने सुनहरे सपनों को साकार करने की हामी भर रहा हूं।
तभी सुगंधा की आवाज मेरे कानों में पड़ी और भी जैसे नींद से जागा।
वो पूछ रही थी – “घर चले तुम्हारे?”