छोटों को दो प्यार: आज चीते का जन्मदिन था, जो आजकल कुछ उदास-सा रहता था क्योंकि उसके सब बच्चे दूसरे जंगलों में रहने चले गए थे। उसकी पत्नी ने सलाह दी, “आज जंगल के जानवरों के साथ हिल-मिल कर, बातें करके अपना दिन बिताइए। आपने अपना जन्मदिन बहुत अच्छी तरह से मनाया, आपको इस बात की खुशी होगी।”
छोटों को दो प्यार: प्रभा पारीक
चीते को बात जंच गई। वह जंगल में घूमने निकला। पहले उसे देख सब जानवर भाग जाते थे, वह जानता था कि मेरी फितरत देखकर ये वैसा ही व्यवहार मेरे साथ कर रहे हैं। कुछ देर बाद चीता एक घने पेड़ के नीचे जाकर बैठने की सोच ही रहा था कि उसने देखा कि उसके नीचे मुर्गी, मेंढक, मधुमक्खियां और छोटे-छोटे से खेल रहे थे। मेंडक फुदक कर मुर्गी पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। मधुमक्खी भिन-भिनाकर मुर्गी को परेशान कर रही थी। मेंढक ऊंची कूद दिखा कर हंसा रहा था। चीते महाराज भी वहां जाकर बैठ गए।
कुछ देर के लिए उन सभी ने चीते को ध्यान से देखा, मुर्गी दूर चली गई, मेंढक थोड़ा-सा कूदा और चीते की पहुंच से दूर होने लगा। चीते ने मुस्कुराकर मुर्गी से कहा, “मुर्गी रानी क्या खेल रही हो?”
उसने बतख से भी पूछा, “आज तुम्हारी सब सहेलियां कहां गई?”
थोड़ी देर तक छोटे जीवों को यह चीते की चाल लगी, लेकिन सीधे-सरल छोटे-छोटे से जीव थोड़ी ही देर में चीते के साथ दोस्त जैसा व्यवहार करने लगे। मेंढक ने कहा, “वैसे तो मैं छोटे मुंह बड़ी बात कह रहा हूं, पर क्या मैं फुदक कर आपकी पीठ पर बैठ जाऊं?”
चीते ने हंस कर कहा, “बैठ जाओ…।”
मुर्गे ने कहा, “मैं बहुत ऊंचा तो नहीं फुदक सकता, आप बैठें तो में चढ़ जाऊं।”
तितली बातें सुन रही थी, वह बोली, “मैं तो ऊंचा उड़ सकती हूं क्या मैं भी… ?”
मेंढक ने बीच में ही कहा, “जब आप बैठोगे तो मैं भी बैठ जाऊंगा।”
चीते ने उसे भी हां कह दी। मधुमक्खी और पास आकर भिनभिनाने लगी।
चीते ने कहा, “देखो काटना मत।”
मधुमक्खी ने हंस कर कहा “वह तो मेरा स्वभाव है।”
चीते ने कहा, “अगर तुमको काटना है तो मेरी पूंछ पर काट लो… अब तो खुश?”
इस तरह चीते का व्यवहार सब छोटे जीवों के साथ बहुत मित्रतापूर्ण रहा। चीते को मजे आ रहे थे।
दूर खड़े गधे और जिराफ भी यह दृश्य देख रहे थे। वे सोच रहे थे कि आज चीते महाराज नाटक कर रहे हैं, पर इतने छोटे जीवों से उनका कैसे पेट भरेगा। छोटे जीवों के करतबों पर चीते को हंसते, खिलखिलाते देख गधा और जिराफ भी थोड़ा पास आ गए लेकिन फिर भी वे सहमे से दूर ही खड़े थे।
पास खड़ा हाथी सोच रहा था कि “आज जंगल में यह सब क्या हो रहा है।”
पेड़ पर बैठे बंदर राजा ने सोचा कि “मैं भी नीचे चलता हूं। खतरा होगा तो भाग जाऊंगा, मुझ पर हमला कैसे करेंगे।”
बंदर को देखकर कुत्ता भी आ गया और गोल-गोल घूम कर चीते को प्रसन्न करने लगा। छोटे जीव सोच रहे थे कि आज इस जंगल के बड़े जानवर भी हमारे साथ मिलकर इतनी मस्ती कर रहे हैं जबकि ये तो हमें कुछ समझते ही नहीं, हमसे अलग-अलग ही रहते हैं लेकिन फिर उन्हें समझ आ गया था कि जब कोई हमसे बड़ा हमारे साथ सहज होकर, हमसे हिले-मिले तो सब सामान्य-सा होने लगता है।
चीता महाराज हंस कर धीरे से छोटे जीवों से बोला, “मेरी भी एक इच्छा है।”
सबने एक साथ पूछा, “आपकी क्या इच्छा है।”
चीता बोला, “क्या मैं तुमको थोड़ा-सा काट लूं।”
सारे जीव एक साथ नहीं… नहीं… कहते हुए दूर हट गए। चीते ने हंस कर कहा, नहीं… ऐसा कुछ नहीं है, मैं तो मजाक कर रहा था।”
शाम को चीते ने अपनी पत्नी को बताया, “आज मेरा जन्मदिन बहुत अच्छा रहा, मुझे इन छोटे जीवों के साथ तो कम से कम मित्रतापूर्ण
व्यवहार करना ही चाहिए, बड़े पशुओं का शिकार करना और उनको खाना यह तो पेट भरने के लिए आवश्यक है लेकिन जब आवश्यकता न हो तब मुझे सहज रहकर मित्रतापूर्ण व्यवहार भी करना चाहिए।”
उस दिन से जंगल का नियम थोड़ा बदलने लगा था। चीते का जब पेट भरा होता तो वह छोटे जीवों के साथ खूब मन भर कर खेलता, दौड़ लगाता और अपना सारा तनाव भुलाकर मस्ती से रहता।