चुग्गी मुर्गी और लोमड़ी की कहानी: चुग्गी मुर्गी खाने की तलाश में जंगल में इधर उधर घूम रही थी। तभी उसे उस कुछ सुनहरे रंग के गोल बीज घास के पास पड़े दिखाई दिए। वे सभी बीज सुनहरे रंग के थे और उनके हलकी सी रोशनी निकल रही थी। सुनहरे रंग की उनकी रौशनी आस-पास की घास तक बिख़र रही थी। चुग्गी इतने खूबसूरत बीजों को देखकर खुद को रोक नहीं सकी। वह धीरे से आगे बढ़ी और बीजों के पास पहुँच गई। पास जाने पर मक्के की महक से उसके मुँह में पानी आ गया। उसने तुरंत एक बीज खा लिया। बीज खाते ही चुग्गी का आकार बहुत तेजी से बढ़ने लगा। अचानक ही उसे अपने आसपास की सारी चीज़े और ज़मीन पर बिखरे दाने बहुत छोटे नज़र आने लगे। जिस विशाल आम के पेड़ को देखकर वह डर जाया करती थी कि कहीं उसके आम उसके ऊपर ना गिर पड़े और आज वह उस पेड़ के बराबर ऊँची हो गई थी।
चुग्गी बहुत घबरा गई पर तभी उसकी नजर डाली से लगे हुए एक पीले रंग के पके आम पर पड़ी और उसने झट से एक आम खा लिया।
उसे बहुत अच्छा लगा तभी वहाँ से उसकी दोस्त पीलू मुर्गी निकली। पीलू ने जैसे चुग्गी को देखा, वह डर के मारे काँपने लगी। वह चुग्गी को पहचान ही नहीं पा रही थी।
चुग्गी ने उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा – “रुको”!
पर यह क्या… उसके दो शब्द बोलते ही पूरा जँगल जैसे थर्रा गया। पेड़-पौधे जोरों से हिलने लगे।
सबसे बुरा हाल हुआ पीलू का, वह तो बेचारी डर के मारे बेहोश ही हो गई। तभी चुग्गी ने वहाँ पर कुछ जानवरों को देखा जो उसे देखकर घबराहट के मारे चट्टान के पीछे छिपने की कोशिश कर रहे थे।
इतनी बड़ी चट्टान के पास जाने से ही चुग्गी पहले डर जाती थी, पर अब वह इतनी बड़ी हो चुकी थी कि चट्टान उसे एक छोटा सा पत्थर लग रही थी।
उस ने एक कदम आगे बढ़ाया और चट्टान के पीछे झाँका तो देखा कि शेर, भालू, चीता और लोमड़ी उस से डरकर छिपने की कोशिश कर रहे थे।
चुग्गी हँसते हुए बोली – “तुम लोग मुझे देखकर क्यों डर रहे हो मैं तो चुग्गी हूँ”।
चुग्गी मुर्गी और लोमड़ी: मंजरी शुक्ला जी की खूबसूरत हिंदी बाल-कहानी
लोमड़ी ने उसे गौर से देखते हुए पुछा – “पर तुम तुम अचानक इतनी बड़ी कैसे हो गई”?
“वो… वो… मैंने…” कहते हुए चुग्गी अचानक रुक गई और उसने गुस्से में कहा – “तुमने मेरे बहुत सारे दोस्तों को खा लिया है, इसलिए मैं तुम्हें नदी में फेंक दूंगी”।
“नहीं.. नहीं, मैं अब एक भी मुर्गी नहीं खाऊँगी” कहते हुए लोमड़ी रोने लगी।
पर चुग्गी ने उसे एक पंजे में पकड़ा और घुमाकर जोर से नदी के तरफ़ उछाल दिया। लोमड़ी जाकर सीधे नदी के बीचों-बीच गिरी।
छपाक की आवाज़ के साथ ही ढेर सारा पानी उछला और पानी की बूंदों से सभी जानवर भीग उठे।
शेर, चीता और भालू चिल्लाये – “हमें छोड़ दो.. हमें छोड़ दो..”
और वे सभी घबराते हुए वहाँ से भाग गए।
“अरे, जल्दी भागो। लोमड़ी आ रही है” चुग्गी को तभी पीलू की आवाज सुनाई दी।
चुग्गी ने हड़बड़ाकर आँखें खोली तो देखा सामने पीलू खड़ी थी।
पीलू बोली – “हमेशा की तरह आज फ़िर तुम दिन में भी सपना देखने लगी”।
“ओह! था तो सपना, पर बड़ा ही मज़ेदार” चुग्गी ने हँसते हुए कहा और पीलू के पीछे दौड़ पड़ी।
bahot hi acchi kahan hai chote baccho ke liye.