सर्कस की सैर: गोविन्द भारद्वाज

सर्कस की सैर: दोस्तों के साथ सर्कस के मैनेजर से ली जानवरों की जानकारी

सर्कस की सैर: शहर को बाहर की तरफ खुली जगह में एक सर्कस आई हुई थी। देवांश और उसके दो दोस्त एकांश तथा दिव्यांश सर्कस ग्राउंड के आस-पास घूम रहे थे।

“देखो एकांश, शहर में सर्कस के पोस्टरों में हाथी, घोड़े और शेर को कहीं पर नहीं दिखाया गया, लेकिन यहां तो हाथी हैं” देवांश ने कहा।

“हां यार… तुम सच कह रहे हो… उधर देखो, अप्पू फुटबॉल के साथ खेल भी रहा है” एकांश ने इशारा करते हुए कहा।

सर्कस की सैर: गोविन्द भारद्वाज

“चलो हम सर्कस ग्राउंड में चलकर देखते है” दिव्यांश बोल पड़ा। वे तीनों सर्कस वालों के लिए लगे तंबुओं की ओर चल पड़े।

“देखो दिव्यांश, यहां तो एक हथिनी भी है… शायद यही अप्पू की मां है” एकांश ने कहा।

इस पर दिव्यांश बोल उठा, “शायद… ये अप्पू की मां ही है… देखो और कोई हाथी नजर भी तो नहीं आ रहा।”

उसी समय एक तंबू में से आदमी निकला, “बच्चों तुम यहां कैसे आए… अभी तो शो का समय भी नहीं हुआ है”?

“अंकल हम यहां से गुजर रहे थे तो सोचा सर्कस में हिस्सा लेने वाले जानवरों को देखा जाए” देवांश ने जवाब दिया।

आदमी ने कहा,”बच्चो, मैं यहां का मैनेजर हूं, मिस्टर डेविड”।

“नमस्ते अंकल” तीनों ने हाथ जोड़कर एक साथ उससे कहा।

“नमस्ते बेटा, लेकिन हमारी सर्कस में तो अब कोई जानवर नहीं है” मि. डेविड ने कहा।

“वो अप्पू है न… जिसे हमने अभी-अभी फुटबॉल खेलते हुए देखा था” दिव्यांश ने कहा।

“बस वही और उसकी मां पम्मी ही बची है… दरअसल जब से पशु-पक्षियों को सर्कस में काम करने से रोका गया है, तब से सर्कस की पहचान ही खो गई” मि. डेविड ने कहा।

“हां अंकल, हमने शहर में लगे विभिन्न पोस्टरों में किसी भी जानवर की फोटो नहीं देखी” एकांश ने जवाब दिया।

“मैं एक सवाल पूछूं अंकल?” देवांश ने मि. डेविड से कहा।

“हां… हां पूछो।” मि. डेविड ने कहा।

“फिर आपने यह पम्मी और अप्पू को क्‍यों रख रखा हैं क्या ये कोई तमाशा दिखाते हैं?” देवांश ने पुछा।

मि. डेविड ने लंबी सांस भरते हुए कहा, “बेटा, पम्मी मेरी सबसे प्रिय और वफादार हथिनी है। इसके सर्कस में शामिल होने से मुझे और इस सर्कस मालिक को बहुत लाभ हुआ। इसके और अप्पू के अलावा अन्य सभी जानवरों को जंगल में भेज दिया गया”।

“अच्छा तो यह बात है…” दिव्यांश ने कहा।

मि. डेविड उन तीनों को अप्पू के पास ले गए। अप्पू को देखकर वे बड़े खुश हुए। इससे पहले उन्होंने कभी हाथी के बच्चे को हकीकत में कभी नहीं देखा था।

“थैंक्स अंकल… शाम को हम सर्कस देखने जरूर आएंगे… और सर्कस के कलाकारों को कलाबाजियां और हैरतअंगेज करतब जरूर देखेंगे” एकांश ने कहा।

“मुझे भी देखने जरूर आना” एक लड़के ने दूर से चिल्लाकर कहा।

“यह हमारी सर्कस का जोकर है” मि. डेविड ने बताया।

“जरूर देखेंगे आपको भी भैया” तीनों ने हाथ हिलाते हुए कहा।

~ ‘सर्कस की सैर‘ story by ‘गोविन्द भारद्वाज‘, अजमेर (राजस्थान)

Check Also

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: This day encourages critical thinking, dialogue, and intellectual curiosity, addressing global challenges …