आम के पेड़ के पीछे छुपे बैठे तीन साल के बंटी को देखकर मीनू का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया था।
उसने ना आव देखा ना ताव और एक जोरदार चाँटा बंटी के कोमल गाल पर जड़ दिया।
जब तक बंटी कुछ समझ पाता तब तक मीनू ने उसे उठाकर कार की पिछली सीट पर बैठाया और अस्सी की स्पीड पर चल दी, उसे क्रेश छोड़ने के लिए।
गाड़ी तो जैसे उसका दिमाग ही चला रहा था क्योंकि बाएँ हाथ की कलाई में सोने सी जगमगाती घड़ी पर से वो जैसे अपनी आँखें ही नहीं हटा पा रही थी।
रोज़ उसे ऑफिस में सबके सामने इस बंटी के कारण डाँट खानी पड़ती हैं। उसे याद आया कि थोड़े दिनों पहले तक बंटी कितना हँसता मुस्कुराता रहता था।
इसी बंटी ने ना जाने कितने बेबी कॉन्टेस्ट जीते। गोल मटोल बंटी को देखते ही सब उसे हाथों में लेने के लिए मचल उठते थे, पर जैसे ही उसने बंटी की दादी को गाँव भेजकर उसे शहर के सबसे महँगे क्रेश में डाला, ये दिन ब दिन और फूहड़ और उजड्ड होता चला जा रहा हैं।
इतने सारे बादाम और काजू खिलाने के बाद भी आँखों के नीचे ऐसे गड्ढे हैं मानों शरीर में कुछ लगता ही नहीं हैं।
यही सब सोचते हुए ना जाने कब बंटी का क्रेश आ गया मीनू को पता ही नहीं चला। जैसे ही उसकी कार बरामदे में पहुँची, वहाँ खड़े अर्दली ने उसे सलाम ठोंकते हुए एक चिर-परिचित मुस्कान दी। अर्दली के सफ़ेद जगमगाते कपड़े देखकर उसे निरमा की वो पाँच औरते याद आ गई जो सूरज सी चमकती सफ़ेदी का दावा बहुत ही शान के साथ करती नज़र आती है और गड्ढे में फँसी कार को भी बड़ी ही आसानी से धक्का लगाकर सड़क पर खड़ा कर देती हैं जो वहाँ खड़े मर्द भी नहीं कर पाते क्योंकि उनके कपड़े बार-बार किसी दूसरे वाशिंग पावडर से धुलाई के कारण अपनी ओरिजिनल चमक खो चुके होते हैं।
कार एक पेड़ के नीचे पार्क करके उसने बंटी को गोद में उठाया और साथ में उसका बड़ा सा बैग, जिसमें ढेर सारे चिप्स, बिस्किट, बर्फ़ी, चॉकलेट, उसकी पसँद का कढ़ी-चावल और हमेशा की तरह उसके भालू वाले डिब्बे में काजू और किशमिश थे।
जैसे ही वो क्रेश के अंदर दाखिल हुई, वहाँ का साफ़ सुथरा माहौल देखकर उसका मन खिल उठा। अगर सफ़ेद कपड़ा लेकर भी फर्श पर लोट जाओ तो कहीं धूल का एक कण नहीं मिलेगा पर उसके बाद भी पता नहीं बंटी को हर समय क्यों हल्का बुखार रहता हैं। उसने सोचा, आज वो ये बात वहाँ बैठने वाली मैडम से पूछ ही लेगी। पर वो जानती हैं कि उनके यहाँ हमेशा एक डॉक्टर रहते हैं जो सिर्फ़ बच्चों की देखभाल के लिए हैं और इसीलिए तो वो महीने के 6,००० रुपये सिर्फ बंटी की अच्छी परवरिश की वजह से अपने ऊपर कटौती करके दे रही हैं। वो कमरे के अंदर जाने ही वाली थी कि तब तक हमेशा की तरह हँसती मुस्कुराती शर्मा मैडम आ गई और बंटी को देखते ही ख़ुशी से उछल पड़ी। बंटी मीनू के सीने से और जोर से चिपक गया। शर्मा मैडम बंटी को जितना अपनी तरफ़ खींच रही थी, वो मीनू का पल्ला उतने ही जोर से पकड़ रहा था।
ओफ्फो, झुँझलाते हुए मीनू सारी सभ्यता भूलकर चिल्ला पड़ी और चीखी – “देखा आपने, कितना बद्तमीज़ बच्चा हैं, मैंने अभी इसे घर में एक जोरदार चाँटा मारा था तब भी ये मुझसे चिपका पड़ा हैं और एक आप हैं जो इसके पीछे जान दिए हुए हैं तब भी ये आपके पास नहीं जा रहा”।
यह सुनकर शर्मा मैडम की आँखों में आँसूं छलछला उठे और वो अपनी साड़ी के पल्लू से उन्हें पोंछते हुए बोली – “क्या करे मैडम, हमारी तो किस्मत ही ऐसी हैं। मैंने तो इन बच्चों के पीछे शादी भी नहीं की। मुझे लगा, कहीं मेरी ममता बँट ना जाए और ये बच्चे जब ऐसा व्यवहार करते हैं तो बहुत दुःख होता हैं”।
मीनू उनकी बात सुनकर दंग रह गई। पसंद तो वह उन्हें पहले से करती थी पर आज उनके जीवन की यह सच्चाई सुनकर उसका मन उनके प्रति असीम श्रदा से भर उठा और वो बंटी को देते हुए सिर्फ इतना ही कह सकी – “कृष्ण को भी तो माँ यशोदा ने जन्म नहीं दिया था पर थी तो वो उनकी माँ से भी बढ़कर”।
“अरे आप ने इतना सम्मान देकर मुझे अभिभूत कर दिया मैडम…” शर्मा मैडम उन्हें एकटक देखते हुए बोली।
मीनू ने मुस्कुराते हुए बंटी के खाने पीने का बैग उन्हें पकड़ाया और मुस्कुराकर बाहर निकल गई।
दिन भर की उहापोह में कब शाम के 6 बज गए उसे पता ही नहीं चला।
क्रेश का टाईम तो केवल पांच बजे तक का था पर शर्मा मैडम ने कभी भी इस बात को लेकर कोई शिकायत कभी नहीं करी, बल्कि वो जब भी वहाँ पहुँचती थी तो एक कप गरमा गरम कॉफी से ही उसका स्वागत होता था।
भागती दौड़ती जब वो क्रेश पहुँची तो सात बजने वाला था और शर्मा मैडम बंटी को लिए टीवी देख रही थी।
माफ़ कीजियेगा, बंटी के पापा मतलब अमित एक साल के लिए ऑफिस के काम से विदेश क्या गए, मैं सब काम सँभालते हुए पागल सी हो जा रही हूँ”।
“कोई बात नहीं… आप नाहक ही संकोच करती हैं। मैं तो कहती हूँ, आज देखिए पूरा एक महीना हो गया बंटी को हमारे यहाँ आये हुए, आपको जरा भी पता लगा”?
“हाँ, ये बात तो हैं पर आप से एक बात कहनी थी…” मीनू ने आँखें झुकाते हुए कहा।
उसे लग रहा था शर्मा मैडम कहीं उसकी बात सुनकर नाराज़ न हो जाए या फिर वो बंटी को रखने से मना ना कर दे इसलिए वो संकोच के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी।
“नहीं नहीं, आप बताइये, क्या बात हैं, आखिर सुबह तो अपने मुझे यशोदा माँ कहा हैं ना”? कहते हुए सुर्ख लाल साड़ी का पल्ला ठीक करते हुए शर्मा मैडम ने उसकी आँखों में सीधा झाँकते हुए पूछा।
“देखिये आप से तो कुछ छिपा नहीं हैं, जब अमित विदेश गए थे तो उन्होंने गाँव से अपनी माँ को बुला लिया था” – कहते हुए मीनू का चेहरा ना चाहते हुए भी विद्रूप हो उठा। पर इसकी दादी का व्यवहार मुझसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था। घर में कहीं भी जमीन पर बंटी को सुला देना, खुद भी इसके बगल में नंगी फर्श पर लेट जाना।
ना तो इसको टाईम से सोने देना और ना इसके जागने पर दूध कॉर्नफ्लेक्स देना, बस आलू के पराँठे मक्खन के साथ चाय की कटोरी पकड़ा देना”।
ये कोई भी शैतानी करता था वो अपने सर पर ले लेती थी। उनकी संगत में तो पता हैं ये झूठ बोलना भी सीख गया था।
“ओह माई गॉड… क्या कह रही हैं आप, क्या हुआ था। शर्मा मैडम ने एक तीन साल के बच्चे के झूठ बोलने पर इतने आश्चर्य से मुँह फैलाते हुए पूछा मानों पहली बार इस संसार में किसी बच्चे ने झूठ बोला हो, क्योंकि बाकी सब तो हरिश्चंद्र ही हैं।
मीनू को शर्मा मैडम की अपने प्रति सहानुभूति देखकर बहुत अच्छा लगा इसलिए वो बिना रुके आगे बोली “इसकी दादी के हाथ से मेरा क्रिस्टल का बाऊल गिरकर टूट गया, पता हैं पूरे बारह हज़ार थी उसकी कीमत…
और जब मैंने उनको थोड़ा सा ऊँची आवाज़ में कहना क्या शुरू किया कि उनकी आखों में घड़ियाली आँसूं आ गए और ये मेरा बेटा, मेरा अपना खून दादी के सामने जाकर खड़ा हो गया और कहने लगा – “दादी को कुछ मत बोलो। मुझे मारो, मैंने तोड़ा हैं इस बाऊल को”।
शर्मा मैडम ने तुरंत बंटी की तरफ ममता भरी नज़रों से देखते हुए कहा – “मासूम बच्चों का क्या हैं जैसा सिखा दो वैसा ही सीख जाते हैं”।
“आपने ये बहुत अच्छा किया जो इसे हमारे यहाँ डाल दिया”।
मीनू बोली – “जी, पर मैं आपसे पूछना चाहती थी कि ये इतना कमजोर क्यों होता जा रहा हैं? क्या यह ठीक से खाता पीता नहीं हैं”?
“आप विश्वास नहीं मानोगी मैडम, आप जो खाना देती हैं उसके अलावा मैं इसको दाल-चावल भी बनाकर देती हूँ पर जैसा अभी आपने बताया ना कि ये अपनी दादी के बिना पल भर भी नहीं रह पाता था तो शायद उनकी चिंता में अभी भी यह बहुत दुखी हैं। कुछ समय बाद जब यह धीरे-धीरे उन्हें भूल जाएगा तो अपने आप ही आपको पहले की तरह गोल मटोल नज़र आने लगेगा।
तभी वहाँ बैठी नर्स बोली – ” गर्मी का भी मौसम हैं मैडम, देखिये सारे ही बच्चे थोड़े से दुबले हो रहे हैं”।
“अच्छा अच्छा, मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था” कहते हुए मीनू ने बंटी का हाथ पकड़ा और उसके खाने का खाली बैग लेकर निकल गई।
रास्ते में देखा तो बंटी का गाल कुछ लाल दिखा। घबराकर मीनू ने छुआ तो बंटी बुखार से तप रहा था।
मीनू का गुस्से के मारे खून जल उठा उसने सबसे पहले वही से शर्मा मैडम को फ़ोन मिलाया और अपने गुस्से को संयत करते हुए बोली – “आपने बताया नहीं कि बंटी को बुखार हैं”।
मैडम, हमारे यहाँ तो डॉक्टर और नर्स दोनों ही सारे समय रहते हैं। दिन भर तो वो अच्छा भला था आप आई तब भी आराम से बैठकर मेरी गोदी में टीवी देख रहा था अब आप ही ने उसकी दादी की इतनी सारी बातें उसके सामने छेड़ दी, हो सकता हैं उसका कोमल मन यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाया हो”।
मीनू को अपनी ही सोच पर ग्लानि हुई कि इतनी सभ्य और सुसंस्कृत महिला से उसने ऐसा पूछा ही क्यों?
वो बात बदलते हुए बोली – “माँ, हूँ ना मैडम… जरा बहक गई थी। आशा हैं आप मुझे माफ़ कर देंगी”।
“कल मेरी बहुत जरुरी मीटिंग हैं पर शायद मैं बंटी को कल छोड़ नहीं सकूँ”।
यह सुनते ही शर्मा मैडम रोने लगी और उनकी सिसकियों की आवाज़ ने मीनू को विचलित कर दिया।
वो बोली – ” मैडम, लगता हैं आपका हमारे ऊपर से भरोसा उठ गया हैं। अब मैं अपना क्रेश ही बंद कर दूंगी, जब मेरी ज़िंदगी ही इन बच्चों के नाम हैं और…” आगे के स्वर उनके कंठ आँसूं के वेग में बह गए।
मीनू बोली – “नहीं नहीं… अच्छा मैं डॉक्टर को दिखाकर आपके यहाँ सुबह इसे छोड़ दूँगी और मीटिंग खत्म करते ही इसे ले लूँगी”।
शर्मा मैडम यह सुनकर ऐसे खुश हो गई जैसे उन्हें मुँह मांगी मुराद मिल गई हो।
मीनू ने शाम को जाकर डॉक्टर मिश्रा को दिखाया और मिश्रा जी ने एक भरपूर नज़र उसके ऊपर डालते हुए थोड़ा तल्खी से बोले – “खाना पीना नहीं दे रही हैं क्या आप बच्चे को”?
अभी करीब महीने भर पहले यही बच्चा पार्क में अपनी दादी से साथ खेल रहा था तो करीब इसका वजन आज से चार गुना था। तो अब ये सूखकर काँटा क्यों हो गया”?
मीनू अब भला दादी के गंवारपन के किस्से डॉक्टर मिश्रा को कैसे बताती इसलिए वो चुपचाप बैठी रही।
डॉक्टर ने बड़े ही प्यार से बंटी को गोद में बैठाया और मीनू को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया। मीनू ने सोचा अजीब बात हैं, वो बंटी की माँ हैं और उससे ही डॉक्टर गैरों जैसा व्यवहार कर रहा हैं। पर मीनू डॉक्टर मिश्रा की बात काट भी नहीं सकती थी। दूर दूर से लोग उनसे इलाज कराने के लिए महीनों अपना नंबर लगवाए रहते थे, वो तो अमित के दोस्त होने के कारण वो उसे बिना किसी नंबर या अपॉइंटमेंट के तुरंत देख लेते थे।
मीनू के कमरे से बाहर जाने के बाद करीब दो घंटे बाद उसे डॉक्टर मिश्रा ने वापस अपने केबिन में बुलाया।
देखा तो बंटी डॉक्टर मिश्रा की गोद में आराम से बैठा हुआ था।
डॉक्टर ने कहा – “बंटी ने मुझे सारी बातें बता दी हैं, इसलिए मैंने अमित से कहकर बंटी की दादी को गाँव से तुरंत बुलवा लिया हैं”।
मीनू की आँखें गुस्से से जल उठी और वो चिल्लाकर बोली – “इलाज करने के लिए कहा हैं आपको ना कि हमारे पारिवारिक मामलों को सुलझाने के लिए”।
पर डॉक्टर मिश्रा पर जैसे इस बात का कोई असर ही नहीं हुआ। वो घृणा से बोले – “कहने को तो बहुत कुछ मन कर रहा हैं मेरा, पर जब तुम जैसी औरतें कार, फ्लेट और ऐशो आराम की आदि हो जाती हैं ना, तो उनकी आँखों पर दौलत का चश्मा चढ़ जाता हैं”।
“बस तुम मेरी एक बात मान लो उसके बाद जो मन हो करना, वैसे अमित का फ़ोन रात में आएगा तुम्हारे पास”।
अमित का गुस्सा मीनू जानती थी उसे लगा कहीं गुस्सें में अमित नौकरी ही छोड़कर ना आ जाए और उसकी आखों के सामने ढेर सारी इएमआई नाच उठी।
सकपकाते हुए वो बोली – “क्या करना हैं मुझे”?
“ख़ास कुछ नहीं, बस सुबह बंटी को क्रेश में छोड़ना और उनसे कहना कि तुम उसे लेने रात के ९ बजे जाओगी क्योंकि तुम्हें शहर से बाहर जाना हैं ऑफिस के काम से, पर तुम सिर्फ १ घंटे बाद पहुँचोगी उसे लेने के लिए बिना उन्हें बताये सीधे वहाँ, जिस कमरे में बंटी रहता हैं”।
बात तो बहुत अजीबो-गरीब थी पर मीनू ने सोचा मान लेने में कोई हर्ज़ नहीं हैं।
डॉक्टर मिश्रा बोले -“और कोई भी बात हो तो मुझे तुरंत फ़ोन करना मैं उस क्रेश के सामने ही खड़ा रहूँगा।
मीनू को डॉक्टर मिश्रा की बे सर पैर की बात सुनकर लग रहा था कि वो मेज पर रखे पेपर वेट से उनका सर फोड़ दे, पर चिढ़ और गुस्से के मारे उसके मुँह से बोल तक नहीं निकल रहे थे। उसने बंटी को गोद में उठाया और घर की ओर चल दी।
आज रात बंटी ने उसे बिलकुल तंग नहीं किया और जितनी दवाई उसने दी, बंटी ने बिना नाक मुँह सिकोड़े खा ली।
बहुत दिनों बाद आज उसने सिर्फ़ एक बात पूछी – “दादी माँ, कितने बजे तक आ जाएंगी”?
मीनू का मन हुआ, उसे अच्छे से डांटे पर बुखार की याद आते ही उसने उसे सीने से चिपटा लिया और उसके सर पर बड़े ही प्यार और दुलार से हाथ फेरने लगी।
बंटी को सुलाते हुए उसकी आँख भी कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला।
सुबह उसने सबसे पहले ऑफ़िस फ़ोन करके छुट्टी ली और फिर नाश्ता वगैरह करके बंटी को क्रेश छोड़ने के लिए निकल गई।
शर्मा मैडम उसे देखते ही खिल उठी।
मीनू ने उनसे नमस्ते करते हुए कहा – “आज मुझे शहर से बाहर जाना हैं। किसी भी हालत में मैं रात के ९ बजे से पहले नहीं लौट पाऊँगी। वैसे मैंने बंटी का सारा खाना पीना रख दिया हैं”।
शर्मा मैडम बोली – “यह तो और अच्छी बात हैं कि बंटी हमारे साथ ज्यादा समय तक रहेगा” और उन्होंने बंटी को अपने पास खींचा तो बंटी ने रोना शुरू कर दिया।
“आप जाइए, थोड़ी ही देर में बिलकुल मस्त हो जाएगा” शर्मा मैडम बंटी को प्यार करते हुए बोली।
मीनू ने सोचा डॉक्टर मिश्रा तो लगता हैं पागल हो गए हैं। पता नहीं हज़ारों मरीज क्यों उनसे मिलने के लिए मरे जा रहे हैं। इतनी महान और देवी जैसी औरत पर शक कर रहे हैं।
यही सब सोचते हुए मीनू ने कार घर की तरफ ना मोड़ते हुए एक पार्क की तरफ मोड़ दी। करीब एक घंटे बाद डॉक्टर मिश्रा का फ़ोन आया – “जाईए अब आप बंटी को लेने के लिए”।
“जी” कहते हुए मीनू ने फ़ोन काटा और सोचा – “मेरी जान के पीछे ही पड़ गए हैं, ये डॉक्टर मिश्रा। मेरे आज के ऑफिस के पैसे भी कटवा दिए।
मीनू ने डॉक्टर के कहे अनुसार कार बाहर ही पार्क की और सीधे क्रेश के अंदर चली गई। अंदर शर्मा मैडम बैठकर नर्स और डॉक्टर के साथ चाय पी रही थी।
मीनू ने उन्हें देखकर कहा – “नमस्ते मैडम, आज शहर के बाहर नहीं जाना पड़ा तो सोच बंटी से मिलती चलू”।
शर्मा मैडम के साथ साथ वहाँ बैठे उन दोनों लोगो के भी जैसे साँप सूँघ गया।
शर्मा मैडम हड़बड़ाकर खड़ी हो गई और उनके हाथ में पकड़ा हुआ चाय का कप छूट गया और छन्न की आवाज़ के साथ टूटे टुकड़े चिकनी फ़र्श पर नाच उठे।
मीनू ने आश्चर्य से पूछा – “आप सब मुझे देखकर इतना डर क्यों रहे हैं”?
तभी बगल के कमरे से नौकरानी की कर्कश चीखती हुई आवाज़ कानों में पड़ी – “तेरी मम्मी इतना सज संवर कर आफिस जाती है, जरा सा पॉटी सूसू नहीं करवा सकती, यहाँ पे आते ही गंदगी करने लगते हो… और फिर एक चाटें की आवाज़ के साथ ही उस बच्चे के जोर जोर से रोने की आवाज़ आई…।
मीनू के तो दिमाग ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया। उसने सोचा कि शायद नौकरानी को पता ही नहीं है कि शर्मा मैडम ये सब सुन रही है।
वो शर्मा मैडम से उस नौकरानी को निकाल देने कि बात करने ही वाली थी कि कमरे से नौकरानी सप्तम सुर में चीखी – “शर्मा मैडम, आप सुन रहे हो ना… आज इसको शाम तक खाना मत देना वैसे भी आज मैं अपना टिफ़िन नहीं लाई हूँ।”
मीनू को तो जैसे अपने कानों पे विश्वास ही नहीं हुआ उसने विस्मय से शर्मा मैडम की ओर देखा, जो चश्मा उतार कर सफ़ेद रंग के रुमाल से अपने माथे का पसीना पोंछ रही थी।
मीनू का दिल बंटी के बारे में सोचकर जोरो से धड़क रहा था। वो बंटी का नाम लेकर चिल्लाना चाह रही थी, पर शब्द जैसे आवाज़ का साथ ही नहीं दे रहे थे।
वो तेजी से उस कमरे की ओर बढ़ी, पर वहाँ की हालत देखकर उसका कलेजा मुँह को आ गया… जिस बच्चे को आया ने मारा था वो नंगे बदन एक कोने में दुबका सिसकियाँ भर रहा था। कुछ छोटे बच्चे ज़मीन पर चुपचाप बैठे हुए थे मानों वो इस की तरह नंगी फर्श में बैठने के अभ्यस्त हो। कुछ बच्चें खिलौनों की अलमारी के काँच के पास खड़े ढेर सारे खिलौनों को हसरत भरी निगाह से देख रहे थे पर खिलौने छू भी नहीं सकते थे क्योंकि अलमारी में ताला जड़ा हुआ था।
मीनू की आखों के सामने में वो रंगबिरंगे नर्म, मुलायम गद्दे और तकिया नाच गए जो शर्मा मैडम ने बच्चों को सुलाने के लिए दिखाए थे तभी पीछे से शर्मा मैडम आ गई और खींसे निपोरती हुई बोली – “अरे, वो मैं… मैं क्या बताऊँ आपको… बस खिलौनों की अलमारी का… ताला खोलने ही जा रहे थे और… और
वो आगे कुछ और कहानी सुनाती, इससे पहले ही मीनू ने दूसरे कमरें में बंटी को देखने के लिए झाँका।
बंटी की हालत देखकर मीनू का कलेजा मुँह को आ गया।
बंटी के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। उसके गोरे गालों पर उँगलियों के निशान साफ नज़र आ रहे थे और उसने डर के मारे टट्टी और पेशाब कर दी थी, जिसमें लथपथ वो बैठा हुआ हिलक हिलक कर रो रहा था।
मीनू के आगे जैसे कमरा घूमने लगा और वो धड़ाम से वहीँ बैठ गई।
बंटी उसे देखकर चीत्कार कर उठा और अपने नन्हें नन्हें हाथ उसकी ओर फैलाकर सरकने लगा।
पूरा कमरा माँ-माँ की आवाज़ों से गूँज रहा था पर मीनू के हाथ इस बुरी तरह से काँप रहे थे कि वो बंटी की रस्सी भी नहीं खोल पा रही थी।
तभी उस कमरे में डॉक्टर मिश्रा, एक इंस्पेक्टर और पाँच-छह सिपाहियों के साथ आए जिन्होंने शर्मा मैडम और उनके स्टाफ़ को पकड़ रखा था।
डॉक्टर मिश्रा ने तुरंत रस्सी खोलते हुए बंटी को अपने गले से लगा लिया। बंटी रो-रो कर अधमरा हुआ जा रहा था।
इंस्पेक्टर बोला – “आपको डॉक्टर मिश्रा का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, जिन्होंने आपके बच्चे के साथ साथ यहाँ रह रहे कई मासूमों की ज़िंदगी बचा ली”।
डॉक्टर मिश्रा गुस्से से बोले – “बंटी ने कई बार आपको बताने की कोशिश की पर आपने उसे मार पीटकर जबरदस्ती यहाँ भेज दिया। कल जब मैंने उसकी दादी को वापस लाने का आश्वासन दिया तब उसने मुझे यहाँ की आपकी देवी सामान शर्मा मैडम की करतूतों के बारें में बताया।
तभी इंस्पेक्टर बोला – “जल्दी से सभी बच्चों के पेरेंट्स को फोन करके यहाँ बुलाओ, आखिर उन्हें भी तो पता चले कि बिना जाने बूझे अपने बच्चों को दूसरें हाथों में को सौंप देने का क्या हश्र होता है”।
मीनू को लगा, उसकी आखों के सामने कमरा तेजी से घूम रहा है, उसने ज़ोरो से आखें बंद कर ली और पागलों की तरह चीख उठी – “मेरे लालच ने आज मुझे यह दिन दिखाया। माँ कहलाने के लायक भी नहीं हूँ मैं”।
और यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगी और बंटी को डॉक्टर की गोद से लेकर पागलों की तरह चूमने लगी।
बंटी मीनू के गले में दोनों बाहें डाले निढाल पड़ा हुआ था। रो-रोकर अब वो बुरी तरह थक चुका था और रह-रहकर सिसकियाँ ले रहा था।
तभी मीनू की नज़र बिस्तर के किनारे रखे मिर्च पाउडर से भरे हुए कटोरें पर पड़ी।
उसने बंटी का मुँह अपनी तरफ घुमाते हुए पूछा – “बेटा… मिर्च पाउडर से भरा हुआ कटोरा… आपके बिस्तर के पास क्यों”?
बंटी ने शर्मा मैडम की तरफ डरते हुए देखा और धीरे से उसके कान में बोला – “मैं जब बिस्तर पर सू-सू कर देता था तो वो इसको मेरे मुँह में डालती थी”।
मीनू फफक-फफक कर रोने लगी और शर्मा मैडम से बोली – “सब मेरी गलती हैं। ये सारी गलती मेरी हैं और अब मैं इसे सुधारना चाहती हूँ और जब तक कोई समझ पाता, उसने बिजली की गति से जाकर वो कटोरा उठाया और शर्मा मैडम के मुँह पर फेंक दिया”।
चीखने चिल्लाने की आवाज़ों से जैसे उसके दिल के फफोलों पर ठन्डे पानी के छींटे से पड़ रहे थे… अब वो चल दी गाँव की ओर, बंटी की दादी से माफ़ी माँगकर उन्हें हमेशा के लिए अपने साथ रखने के लिए…