दीदी की सीख: बच्चों ने गर्मियों की छुट्टियाँ कैसे बिताई - एक रोचक कहानी

दीदी की सीख: बच्चों ने गर्मियों की छुट्टियाँ कैसे बिताई – एक रोचक कहानी

दीदी की सीख: आज सभी बच्चे बहुत खुश थे क्योंकि आज से स्कूल में उनको गर्मियों की छुट्टी पड़ गई थीं। आज तो मानो उनके पंख लग गए हों। स्कूल से घर आते ही उन्होंने कितनी ही योजनाएं बना ली थी। राघव, मीनू, सोनाली, निशांत, नमन, चारू, आकांशा, तान्या, सब एक ही मोहल्ले के बच्चे थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे।

दीदी की सीख: एक रोचक कहानी

छुट्टियों में इनके पास कोई काम तो था नहीं, खूब देर तक सोना, खेलना, टी.वी. देखना, मोबाइल पर गेम खेलना, बस यही काम रह गया था इनके पास। पर जल्दी ही ये सब इस दिनचर्या से बोर हो गए। अत: सब मिल कर सोचने लगे कि कुछ नया किया जाए, पर क्या, यह किसी के समझ में नहीं आया। तभी आकाश ने कहा क्यों न हम सब सौंधी दीदी के पास चलें, उनसे ही पूछते हैं कि इन छुट्टियों में हम क्या करें। वे सब सौंधी दीदी के पास पहुंच गए।

बच्चों ने सौंधी दीदी से कहा कि दीदी हम बोर हो रहे हैं। हम कुछ नया करना चाहते हैं, बताइए हम क्या करें। दीदी ने कहा कि तुम काव्य सम्मेलन करो। उसके लिए तो हमें कविता बनानी पड़ेगी मीनू ने कहा, हां तुम कविता रचो और फिर एक दूसरे को सुनाओ। अच्छा तो तुम नाटक कर सकते हो। सब अभ्यास करो, जब तैयार हो जाएगा तो हम इसका शो करेंगे। पर देखेगा कौन, सोनाली ने पूछा।

सब बच्चों ने नाटक को रिहर्सल शुरू कर दी, दीदी बीच-बीच में उन्हें सलाह देती। राघव भी बड़े मन से नाटक का निर्देशन कर रहा था। दीदी को जब लगा कि अब नाटक बिल्कुल तैयार है तो उन्होंने नाटक के प्रदर्शन की तारीख तय कर दी। मोहल्ले के मैदान में मंच बनाया गया। आकांशा के पापा ने कुर्सियों, दरियों और तान्या के पापा ने लाइट, माइक, पदों का प्रबंध कर दिया।

आखिर वह समय आ गया जब नाटक खेला जाना था। सबसे पहले निशांत को किसान की भूमिका में, नमन को सरपंच और आकांशा को निशांत की पड़ोसन की भूमिका में मंच पर जाना था।

दृश्य यह था कि निशांत अपनी पड़ोसन आकांशा की शिकायत सरपंच बने नमन से करता है। निशांत ने मंच पर आकर अपना संवाद बोला, मैं मेहनत करके अपने खेतों में अनाज उगाता हूं लेकिन मेरी पड़ोसन की बकरी मेरा खेत चर जाती है। निशांत ने अपना संवाद ठीक से बोल दिया| अब नमन का संवाद था, लेकिन मंच पर आकर वह घबरा गया और मैं-मैं करके ही रह गया। राघव मंच के पीछे नाटक की स्क्रिप्ट लेकर खड़ा था, जब उसे लगा कि नमन संवाद भूल गया है तो उसने फुसफुसा कर नमन को संवाद बताने शुरू किए। नमन पीछे को मुंह करके ‘क्या-क्या’ कहने लगा और बोला – जरा जोर से बोल। तभी आकांशा बोली जा पीछे जा कर अपने संवाद पूछ ले। माइक आन था, दर्शकों ने सारी आवाज सुन ली, कुछ तो हंसने भी लगे।

अब निशांत बोल उठा, इसे तो पीछे से भी कुछ समझ नहीं आएगा। मैं तो पहले से ही कह रहा था कि इसे यह रोल मत दो। यह सुन कर नमन को गुस्सा आ गया, बस उसने अपनी पगड़ी उतारते हुए कहा, तू अपने आप को बहुत बड़ा अभिनेता समझता है तू भूल गया मैंने तुझे कैरम में कितनी बार हराया है। वे दोनों भूल गए कि ये मंच है और आपस में मारपीट करने लगे।

आकांशा उन्हें अलग-अलग करने लगी। वह बोली अरे झगड़ो मत, तुम्हारे झगड़े में नाटक कैसे होगा और मैं अपने संवाद कैसे बोलूंगी। इतने में तान्या भी मंच पर आ गई जो गवाह बनी थी। वह उन्हें रोकते हुए बोली, यह तुम क्या कर रहे हो, सारा नाटक बिगड़ रहा है, सौंधी दीदी बहुत नाराज होंगी। अब लड़ना बंद करो और नाटक आगे बढ़ाओ, पर कोई किसी को जात नहीं सुन रहा था, बस उन्होंने तो मंच पर घमासान मचा दिया। दर्शक ये सब देख कर और उनको बातें सुन कर खूब हंस रहे थे।

दीदी एकदम से मंच पर आई और उन्हें रोकते और समझाते हुए बोली, “अरे तुम सब फिर आपस में लड़ने लगे, मैंने क्या कहा था कि तुम सब रिहर्सल करो, मैं अपना जरूरी काम निपटाकर थोड़ी देर में आती हूं पर तुमने यह रिहर्सल की? तुम तो आपस में ही लड़ने लगे।”

दीदी ने उन्हें चुप करवाते हुए कहा, बस अब सब चुप, आज की रिहर्सल बंद। अब हम नाटक की रिहर्सल कल करेंगे। तभी राघव ने पर्दा गिरा दिया। सबको लगा कि नाटक खत्म हो गया। उन्हें क्या पता था कि नाटक तो हुआ ही नहीं।

वे सब तो सब बच्चों की खूब प्रशंसा कर रहे थे और कह रहे थे कि बच्चों तुमने खूब हंसाया। खैर जो भी हुआ पर बच्चों को छुट्टियां बड़े मजे से बीत गईं।

~ ‘दीदी की सीख‘ story by ‘अर्चना सिंह

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