दिवाली पर प्रेरणादायक कहानी: फैली रोशनी – दीपावली की रात जगमगा रही थी। सभी बच्चे गली-मोहल्लों में बम-पटाखे फोड़ रहे थे।
राहुल की दीदी अनु गली में फुलझड़ियां चलाती हुई खुशी से चिल्ला रही थी, लेकिन राहुल का मन कहीं और था।
मम्मी ने पूछा, “राहुल बेटा, जाओ तुम भी दीदी के साथ आतिशबाजी जला लो। तुम्हारा मन नहीं कर रहा क्या?”
राहुल बोला, “नहीं मम्मा, मेरा मन नहीं कर रहा। मेरा मन थोड़ा उदास है…”।
दिवाली पर प्रेरणादायक कहानी ‘फैली रोशनी’: दर्शन सिंह ‘आशट’
यह सुनते ही मम्मी चौंक-सी गई। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरती हुई बोली, “क्या? तुम्हारा मन उदास है? बेटा, दीपावली के त्यौहार पर ऐसे अंट-शंट नहीं बोलना चाहिए। शुभ-शुभ बोलना चाहिए। यह तो बताओ कि तुम्हारा मन उदास क्यों है?”
राहुल ने कहा, “मम्मी, मेरा एक दोस्त है, राजू। वह हमारे स्कूल के पास झॉपड़ियों में रहता है”।
मम्मी ने एकदम हैरत से पूछा, “क्या? झाँपड़ी में रहने वाला राजू तुम्हारा दोस्त है? वह तुम्हारा दोस्त कब से बन गया?”
राहुल बोला, “मम्मा, असल में राजू को उसके पिता जी ने स्कूल से हटा लिया था। उसके पिता जी हमारे स्कूल के गेट के बाहर एक रेहड़ी लगाते हैं और राहुल अपने पिताजी के साथ आकर उनका हाथ बंटाता है।’”
उसकी बातों से मम्मी कौ जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी, “फिर हम क्या कर सकते हैं?”
राहुल ने जवाब दिया, ”आगे तो सुनिए आप। थोड़े दिन पहले उसके पिताजी को एक आवारा कुत्ते ने काट लिया, जिस कारण उसके पिता जी कई दिन से रेहड़ी लेकर नहीं आ रहे थे।”
“फिर?”
“कल राजू मुझे स्कूल के पास जाता हुआ मिला था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसके पिताजी को एंटी-रेबीज के टीके लग रहे हैं। मैं सोच रहा हूं उनकी दीपावली कैसी होगी?”
मम्मी एकदम आग बबूला हो गईं, “घत् तेरे की… मैंने सोचा पता नहीं ऐसी क्या बात हो गई जो दीपावली पर उदास बैठे हो। चलो छोड़ो ऐसे लोगों की चिंता। जाओ, बाहर दीदी आवाजें दे रही है। दीपावली का जश्न मनाओ बाहर जाकर।”
राहुल बाहर चला गया। तब तक पापा भी पड़ोस में ही रहते अपने दोस्त खन्ना जी के घर जाकर लौट आए थे।
थोड़ी देर बाद पापा ने अपने गैरेज से कार निकाली। मम्मी कार की पिछली सीट पर बैठी हुई थी। उनके पास एक बड़ा लिफाफा भी था। पापा ने अनु और राहुल को गाड़ी में बैठने के लिए कहा।
यह माजरा भाई-बहन की समझ से बाहर था।
थोड़ी देर बाद कार झोपड़ियों से कुछ दूरी पर जाकर रुकी। अब तक राहुल को सब समझ आ गया था। अब लिफाफा राहुल के हाथ में था।
उन्होंने राजू की झोंपड़ी में प्रवेश किया। उसके पिताजी एक चारपाई पर लेटे हुए थे। झोपड़ी में केवल दो-तीन दीपक ही जल रहे थे।
राजू को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।
कुछ पलों बाद उसकी झाँपड़ी में कितने ही दीपक और मोमबत्तियां जल रही थीं। राहुल का परिवार राजू के परिवार के साथ झोपड़ी में लक्ष्मी-पूजन में शामिल हो गया। झोंपड़ी का दृश्य बदला हुआ था।
सभी मिलजुल कर मिठाइयां खा रहे थे।
राहुल, अनु और राजू मिलकर छोटे-छोटे बम-पटाखे फोड़ने लगे।
अब राहुल का चेहरा खिला हुआ था।
झोंपड़ी के बाहर सभी एक-दूसरे को बोल रहे थे, “शुभ दीपावली”। राजू की झोपड़ी जगमग कर रही थी।