शांतनु कुछ बोले, इसके पहले ही नीता बोली – “दादाजी इसको शक करने की बीमारी हैं यह कभी किसी पर भरोसा नहीं करता।”
तभी मोहन दुखी होकर बोला – “आज तो यह मेरी बात भी सुनने को तैयार नहीं हैं, जबकि मैं इसको कितनी बार यकीन दिला चुका हूँ।”
“हूँ” दादाजी कुछ सोचते हुए बोले। आज मैं तुम सबको एक सच्ची घटना सुनाता हूँ। यह तुमको कहानी से भी मजेदार लगेगी। सभी बच्चों के चेहरे पर प्रसन्नता और उत्सुकता के मिले जुले भाव देखकर दादाजी ने कहना शुरू किया – “बहुत समय पहले की घटना हैं। मणिधर नाम का एक बहुत ही मेहनती किसान था। उसकी ज़िन्दगी का बस एक ही सपना था कि टूटी – फूटी झोपड़ी की जगह उसका अपना एक मकान हो।
अपने इस ख्वाबों के मकान को लेकर उसने बहुत सपने संजोये थे इसलिए वह दिन रात कड़ी मेहनत करता और पैसे जमा करता रहता।
पहले के ज़माने में आजकल की तरह बैंक तो होते नहीं थे, इसलिए वह अपना धन एक विशाल बरगद के वृक्ष के पास में एक छोटे से गड्ढे में छिपा कर रख देता और उसके ऊपर मिट्टी बिछा देता। वह अपने सभी सुख दुःख अपने एकमात्र दोस्त धीनु के साथ ही बाँटा करता था और उस पर वह आँख मूंदकर भरोसा करता था। उसके सपनो में एक सफ़ेद रंग का विशाल मकान था, जिसके आगे एक खूबसूरत सा बगीचा था, जो हमेशा रंगबिरंगे फूलों से लदा रहता था। ना जाने कितनी कल्पनाएँ वो सारा दिन वो बुना करता और घंटो बैठकर धिनु से अपने मन की बात करता।
धिनु उसकी बाते बड़े ही प्यार से सुनता और धीमे से मुस्कुरा देता। एक दिन मणिधर की बहन का पति उसे पड़ोस के गाँव से लेने आया और बोला – “तुम्हारी बहन बहुत बीमार हैं और वह तुमसे मिलना चाहती हैं। यह सुनकर वह घबरा गया और तुरंत उसके साथ चल पड़ा।
हड़बड़ी में वह धीनू से भी कुछ नहीं कह पाया। जब अपनी बहन के स्वस्थ हो जाने पर वह एक सप्ताह बाद अपने गाँव लौटकर आया तो सबसे पहले अपने छुपाये हुए धन को देखने गया। पर बहुत खोजने के बाद भी उसे कहीं भी अपना धन नहीं मिला। वह पागलों की तरह अपने हाथ पैर पटकने लगा और चिल्ला – चिल्लाकर रोने लगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसका पैसा किसने चुराया होगा क्योंकि उसने तो किसी को भी इस बारे में कुछ नहीं बताया था।
तभी उसे ध्यान आया कि उसने धिनु को अपने सपने के मकान और छुपाये हुए धन के बारे में बताया था। उसको यकीन हो गया कि उसकी ज़िन्दगी भर की मेहनत की कमाई धीनू ने उसके ना रहने पर चुरा ली। वह धीनू के घर गया तो उसने दरवाजे पर एक बड़ा सा ताला लटका देखा। आस पड़ोस में पूछने पर पता चला कि धीनू तीन दिन पहले ही गाँव से बाहर चला गया था और अभी तक नहीं लौटा। यह सुनकर मणिधर का खून खौल उठा और उसके मन में बदले की भावना जाग उठी। दो दिन के बाद जब धीनू गाँव में आया तो मणिधर को देखते ही उसके गले लग गया, पर मणिधर के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नहीं पाकर उसने घबराकर पुछा – “क्या हुआ? तुम मुझे देखकर खुश नहीं हुए। तुम बिना बताये कहाँ चले गए थे?”
मणिधर ने मन में सोचा -“कितना मक्कार आदमी हैं। मेरे जीवन भर की पूँजी चुराने के बाद भी कितने अपनेपन से मिल रहा हैं, मानों कुछ हुआ ही ना हो।”
पर प्रत्यक्ष में वह कुछ नहीं बोला। थोड़ी देर बाद कुछ सोचकर वह धीनू से बोला – “आज रात का खाना हम साथ में खायेंगे।” धीनू यह सुनते ही खुश हो गया और चहकते हुए बोला – “हाँ हाँ, क्यों नहीं। मैं रात में खाने के समय तुम्हारे यहाँ पहुँच जाऊँगा।”
सारा दिन मणिधर ने बड़ी बेसब्री से धीनू का इंतज़ार करते बिताया।
रात में जब दोनों खाने बैठे तो अचानक धीनू खाने के बीच में ही तड़पने लगा और मणिधर की ओर देखते हुए बेहोश हो गया। नफ़रत के कारण मणिधर ने खाने में थोड़ी सी ज़हरीली बूटी मिला दी थी ताकि धीनू के पेट में जलन होने लगे। उसे पल भर के लिए तो बहुत दुःख लगा पर जैसे ही उसे अपने मकान की याद आई तो वह सामान्य हो गया। वह धिनु को उठाकर उसके घर के बाहर छोड़कर आराम से आकर सो गया। अगले दिन सुबह उसकी आँख किसी के जोर जोर से दरवाजा पीटने की आवाज़ से खुली। उसने हड़बड़ाते हुए दरवाज़ा खोला तो सामने सफ़ेद धोती कुरता पहने एक आदमी खड़ा था।