ईद मुबारक पर कहानी – चारों ओर ईद की तैयारियाँ चल रही थीं। नगमा एक गरीब महिला थी, जो लोगों के घर काम करके पैसा कमाती थी। उसके साथ उसकी दस साल की बेटी सलमा भी अपनी माँ का काम समेटने में मदद करती थी।
नगमा मोहम्मद साहब के घर काम करती थी। ईद के इस पावन पर्व पर मोहम्मद साहब अपने परिवार के साथ हज पर जाने का कार्यक्रम बना रहे थे। सलमा चुपचाप उन्हें जाने की तैयारियाँ करते देखती।
ईद मुबारक: ईद पर्व पर हिंदी कहानी
एक दिन उसने अपनी माँ से पूछा कि मोहम्मद साहब और उनके परिवारजन कहाँ जा रहे हैं? तब नगमा ने बताया कि ईद के पर्व पर लाखों की संख्या में लोग हज पर जाते हैं। यह साउदी अरब में है। मुस्लिम धर्म को मानने लोग बड़ी आस्था के साथ अपने अल्लाह के दर्शन हेतु वहाँ जाते हैं।
इस पर सलमा ने पूछा ने फिर पूछा – ‘क्या हम भी हज पर जा सकते हैं?’
तब नगमा ने उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा! वहाँ जाने के लिए बहुत पैसों की ज़रूरत होती है और हम गरीब इतने पैसे कहाँ से लाएँगे?’
तब सलमा ने उदास मन से कहा, तो क्या हमें अल्लाह के दर्शन कभी नहीं होंगे? सलमा अपनी माँ से हज पर जाने की ज़िद करने लगी।
इस पर माँ ने उसे ज़ोर से एक थप्पड़ लगा दिया और डाँटते हुए कहा कि मुझे अपना काम करने दो। अगर हमारे पास इतने पैसे होते आज मैँ तुम्हें एक स्कूल में पढ़ाती-लिखाती। जिससे तुम पढ़-लिखकर एक योग्य नागरिक बन सको तथा अपने पैरों पर खड़ी हो सको। तुम्हारी भी तो यही इच्छा है। मैँ कभी भी नहीं चाहूँगी कि बड़े होकर तुम्हें भी इसी तरह घर-घर जाकर काम करना पड़े।
नगमा और सलमा की ये सब बातें मोहम्मद साहब की पत्नी खड़ी हुई छुप कर सुन रहीं थीं। वह सलमा के पास आई और सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं कि बेटा! आज से तुम्हारी पढाई-लिखाई की सारी जिम्मेदारी मैँ लेती हूँ। तुम बस मन लगाकर पढ़ना।
सलमा की तो मानो खुशी का ठिकाना ही न रहा। अब वह मन लगाकर पढ़ती थी। कक्षा में भी सदा अव्वल आया करती थी। नगमा भी अपनी बेटी को खुश देखकर प्रसन्न रहने लगी।
समय बीतता गया।
सलमा ने अपनी पढाई पूरी कर ली और एक अच्छे पद पर सरकारी कार्यालय में नौकरी भी कर लग गई। अब सलमा अपने और अपनी माँ के सभी सपने पूरे कर सकती थी। और अब नगमा को भी किसी के घर काम करने की ज़रूरत नहीं थी।
आज ईद का दिन था। सलमा ने एक सुंदर उपहार खरीदा और अपनी माँ को लेकर वह मोहम्मद साहब के घर गई। उनकी पत्नी ने दरवाज़ा खोला और सलमा तथा नगमा को अपने सामने देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई। सलमा ने उन्हें ईद की मुबारक देते हुए वह उपहार दिया।
मोहम्मद साहब की पत्नी ने उपहार खोला और उसकी खूब तारीफ़ की, लेकिन सलमा ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि आपने जो मुझे कुछ वर्षों पहले ईदी के रूप में उपहार दिया था, उसके सामने इस उपहार का कोई मोल नहीं है। ऐसा कहकर सलमा और मोहम्मद साहब की पत्नी ने दोनों एक दूसरे के गले लग गए।