एक रात के निम्बू: हमारे साथ रहने के लिए गांव से दादी जी आई। सब उनसे अच्छी तरह से मिले। बल्लू ने भी उन्हें प्रणाम किया, उसके बाद अपने मोबाइल में डूब गया। दादी जी ने उलाहना दिया, “बल्लू जब तू छोटा था, मुझे एक मिनट के लिए भी नहीं छोड़ता था। अब तुझे मेरी कोई परवाह नहीं!”
“नहीं-नहीं, दादी जी, ऐसी बात नहीं है। आप तो मेरे दिल में रहती हैं।”
“अच्छा? दिखा तो तेरे दिल में कहा हूं?”
बल्लू ने मोबाइल में एक जगह दादी जी की फोटो दिखाते हुए कहा “यह देखो”।
एक रात के निम्बू: गोविंद शर्मा जी की शिक्षाप्रद हिंदी कहानी
मोबाइल में अपनी फोटो अभी दादी जी देख ही रही थीं कि घर में सब हंस पड़े। एक ने कह भी दिया, “दिल-दुनिया, सब कुछ बल्लू का मोबाइल ही है”।
दादी जी ने देखा कि दिन हो या रात, बल्लू मोबाइल में ही डूबा रहता। उन्होंने उसे सबक सिखाने या उसकी यह आदत छुड़ाने की सोची।
एक दिन दादी जी ने आवाज लगाई, “बल्लू,जरा यहां आना। यह गमला मुझसे उठाया नहीं जा रहा। थोड़ी मदद करना”।
बल्लू आया, मोबाइल देखते हुए। गमला उठाकर बोला, “दादी जी, यह तो वास्तव में भारी है। इसमें मिट्टी भरी है, पौधा भी लगा रखा है।किस चीज का पौधा है यह?
“नींब का”
“नींबू का? पर इसमें तो कहीं नींबू नहीं लगे। नींबू तो पीले रंग का होता है। इसमें तो सारे पत्ते हरे रंग के हैं”।
“आज ही लगाया है। कल देखना, इस पर बड़े-बड़े पीले रंग के नींबू लगे होंगे”।
“दादी जी, ऐसा कैसे हो सकता है। आपको पता ही है कि मैं स्कूल में भी पढ़ता हूं। ऐसा कोई पौधा नहीं होता कि आज लगाओ, कल तक उसके फल लग जाएंगे”।
“यह गांव की चमत्कारी मिट्टी और नई तकनीक का कमाल है। तुम इसका फोटो उतार लो। कल तुम्हें नींबू लगे हुए मिलेंगे”।
गमला बल्लू की कुर्सी के पास रख दिया गया। दादी जी ने उसे कई बार संभाला। बल्लू ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। अगले दिन बल्लू की नजर अचानक गमले पर पड़ी। वहां थे। उसने तुरंत दो फोटो उतार लिए। किसी से इस चमत्कार की चर्चा करने से पहले ही पौधे का कल का बिना नींबुओं का और आज का नींबू वाला फोटो फेसबुक, इंस्टाग्राम वगैरह पर डाल दिया। अपने कुछ दोस्तों को व्हाट्सएप पर भी भेज दिया कि हमारे घर में कल पौधा लगाया गया और आज उसमें तीन बड़े-बड़े नींबू लग गए।
जिसने भी देखा हतप्रभ रह गया, पर थोड़ी देर बाद ऐसे कमैंट्स की बाढ़ आ गई कि ऐसा हो ही नहीं सकता, तुम्हें तुम्हारी दादी जी ने बेवकूफ बनाया है। नाराज होते हुए दादीजी के पास आया और बोला, “दादी जी आप… ।”
“मैं? बेटा मैं उसी पौधे से तोड़े हुए नींचुओं को शिकंजवी पी रही हूँ। बहुत स्वाद बनी है”।
“नहीं दादी जी, आपने मुझे बेवकूफ बनाया है”।
“नहीं बेटा, तुम्हँ में क्यों बुद्ध मानूगी, तुम्हारे पास तो मोबाइल है। उसमें दुनिया भर का ज्ञान भरा है। फिर, वह गमला हर वक्त तुम्हारे पास ही रहा है”।
“नहीं दादी जी, एक ने तो यह भी लिखा है कि फोटो को जूम करके देख, नींबू हरे-पीले धागे से पौधे की टहनियों पर लटकाए गए हैं”।
“पर, तुम तो वहीं थे। क्या तुमने मुझे ऐसा करते देखा था”?
“नहीं मैं तो मोबाइल में व्यस्त था, मुझे कुछ पता नहीं चला”।
“यही बात समझाने के लिए मैंने यह नाटक किया तुम्हें पता ही नहीं चलता कि आसपास क्या हो रहा है। कुछ समय तो मोबाइल पर बिताना अलग बात है, उसमें डूबना और बात है”।
“तुम नैट चलाते हो, फिर भी कुछ नहीं सीखा, पहला नुक्सान तो यही है। लाओ, मोबाइल मुझे दे दो, जब जरूरत हो तब ले लेना। अभी तुम पूरे घर का चक्कर लगाकर आओ। बताना, क्या-क्या नया देखा। घर में रास्ता भूल जाओ तो मुझे आवाज लगाना… मैं तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी”।
दादी जी की इस बात पर बल्लू सहित सब हंस पड़े। बल्लू ने दादी जी को मोबाइल पकड़ाया तो सब खुशी से ताली बजाने लगे।