फाइव स्टोन्स गेम: भारत के बच्चों का परम्परागत देसी खेल

फाइव स्टोन्स गेम: भारत के बच्चों का परम्परागत देसी खेल

फाइव स्टोन्स गेम: सिम्मी और चीनू सुपर संडे मना रहे रथ थे। सुपर संडे इसलिए कि राखी का त्यौहार होने से सोमवार की भी छुट्टी थी। सोमवार को तो समय मिलेगा नहीं, इसलिए संडे को सुपर संडे बना दिया।

“आज हम अपने देसी खेल खेलेंगे… ।” सिम्मी ने कहा।

चीनू ने तुरंत पुछा, ‘देसी मतलब?’

फाइव स्टोन्स गेम: देसी खेल पर गोविन्द भारद्वाज की हिंदी कहानी

“अरे, मेरा कहने का मतलब है कि अपने परम्परागत खेल जैसे गिल्ली-डंडा, सितोलिया, कंचे या कंटू।” सिम्मी बोली।

“कंटू… ? कुछ अजीब-सा नाम नहीं है यह… ?” चीनू ने कहा।

सिम्मी ने हंसते हुए कहा, “इस परम्परागत खेल को अंग्रेजी में ‘फाइव स्टोन्स गेम‘ कहा जाता है, जो पांच छोटे-छोटे पत्थरों से या फिर पांच मोटे बीजों से भी खेला जाता है।”

“पांच कंचों से भी खेल सकते हैं?” चीनू ने पूछा।

“खेल तो सकते हैं, किंतु कंचे-गोलियों से खिलाड़ी जल्दी आउट हो जाएगा… क्योंकि ये इधर-उधर भाग जाती हैं।” सिम्मी ने बताया।

“चलो तो खेलते हैं… मैं पांच पत्थर ढूंढ कर लाती हूं।” चीनू ने कहा।

“अरे ढूंढने को जरूरत नहीं है, मैं लेकर आई हूं… वह हमारे पड़ोस में घर बनाने का काम चल रहा है, बस उनकी बजरी से बढ़िया-बढ़िया छांट कर लाई हूं… ये देख।”

सिम्मी ने ‘फाइव स्टोन्स‘ दिखाते हुए कहा।

“अरे वाह! बड़ा मजा आएगा आज तो… पहले मुझे थोड़ा सिखलाओ।” चीनू ने हंसते हुए कहा।

“अरे मुझसे बड़ी हो कर भी तुम्हें यह खेल नहीं आता… मुझे बहुत अच्छी तरीके से आता है…।”

चिंटू अपनी बहन नैना का हाथ पकड़े वहां बैठा था। “तुम कहां से सीख आए… ?” चीनू ने मुंह बनाते हुए पूछा।

“गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपनी नानी के घर गया था। उस गांव में हर कोई पेड़ की छांव में बैठकर यही खेल खेलता था और वह भी, लड़कियां तो बहुत ज्यादा।” चिंटू ने कहा।

“अरे बुद्ध यह खेल ही लड़कियों का है। तुम क्‍यों सीख आए?” सिम्मी ने कहा।

“आजकल कोई भी खेल क्यों न हो, सब खेल सकते हैं, लड़कों का या लड़कियों का… इसमें अंतर नहीं रहा।” चिंटू ने कहा।

सिम्मी ने चीनू को फाइव स्टोन्स गेम खेलना सिखाना शुरू किया। लगभग छ: तरह की बाजी चलाकर दिखाई। चिंटू बड़े गौर से देख रहा था। वह बीच-बीच में रोक-टोक जरूर कर रहा था।

Five Stones

“अरे सिम्मी यह गेम तो बड़ा आसान और मजेदार है। यह तो हथेलियों और उंगलियों का खेल है। क्या बढ़िया हाथों की  कसरत है।” चीनू ने कहा।

चीनू कसरत के साथ-साथ बहुत ही सुरक्षित और टाइमपास खेल है।” सिम्मी ने कहा।

“मैं कुछ बोलूं?” चिंटू ने पूछा।

“बोल भाई बोल…।’ चीनू ने कहा।

“यह खेल बिना पैसों का खेल है… न कोई खर्चा, न कोई खेल मैदान, न कोई खेल सामग्री किंतु… ।” चिटू बोलता-बोलता चुप हो गया।

“किंतु क्या चिटू?” सिम्मी ने पूछा।

“’इस खेल का आगे चलकर कोई भविष्य नहीं है… न कोई स्कूल में खिलाता है, न कोई बड़े आयोजनों में शामिल करवाया है।” चिंटू ने उदास मन से जवाब दिया।

यह सुनकर सिम्मी जोर-जोर से हंसने लगी।

“अरे चिंटू भेया यह खेल छोटे बच्चों के लिए है… यह कभी एशियन गेम्स में या ओलम्पिक में शामिल नहीं हो सकता। इसे हम अपने मनोरंजन के लिए खेलते हैं।” सिम्मी ने ‘फाइब स्टोन्स गेम’ को आगे बढ़ाते हुए कहा।

चीनू भी इस खेल को समझ चुकी थी। चिटू अपनी बारी आने के इंतजार में बैठ था।

~ ‘फाइव स्टोन्स गेम‘ गोविन्द भारद्वाज, अजमेर

Five stones is known as Kallangal or Anchangal in the villages of Tamil Nadu. The game is played by 2 or more players, using 5 small stones. It comprises a set of eight steps. The player who completes all the sets first is the winner.

This game helps sharpen your eyesight and memory. It also builds concentration.

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