बाग़ बगीचों में अक्सर साँप भी सरपट दौड़ते नज़र आते… कई तो पानी वाले होते और कई ज़हरीले। पर माली काका ने उसे साँपों का ज़हर निकालना भी सिखा दिया था जिसकी वजह से उसे अब उनसे डर नहीं लगता था।
उसकी माँ के गुज़र जाने के बाद जैसे सारा गाँव ही उसकी माँ हो गया जिसे देखो वहीँ उसे प्यार करता सिवाय उसी गाँव में रहने वाले वैद्य जी के।
लड़के और लड़की में भेदभाव करना उनकी आदत थी और वो किसी भी लड़की के जन्मदिन पर कभी भी शरीक नहीं होते थे और सिर्फ लड़कों के जन्म लेने पर ही प्रसन्न होते थे।
मुनिया को भी उनसे बहुत डर लगता था और वह उनके सामने जाने में भी घबराती थी। पर एक बार माली काका को बहुत तेज बुखार आ गया। मुनिया बहुत घबरा गई और भरी बरसात में दौड़ती हुई उनके घर जा पहुँची।
ठण्ड से काँपती हुई मुनिया वैद्य जी से माली काका के बुखार में तपने की बात बताते हुए फूट-फूट कर रोने लगी तब भी वैद्य जी ने उसे धक्के मारते हुए घर से बाहर निकाल दिया और चिल्लाते हुए बोले – “ये सब तेरे कारण ही है अगर बेटा होता तो वो बीमार पड़ते ही नहीं।”
मुनिया बारिश में भीगती हुई वहीँ आँगन में खड़ी होकर बिलख बिलख कर रोती रही कि शायद वैद्य जी को उस पर दया आ जाए पर जब ठण्ड से उसके दाँत किटकिटाने लगे तो वो थरथराती हुई अपने घर की ओर चल दी।
वहाँ पर आसपास के सभी लोग माली काका की मदद करने के लिए आ गए थे और उन्हें घरेलू उपचार दे रहे थे। सबकी सेवा से माली काका का बुखार तो कुछ दिनों में उतर गया पर सही दवा नहीं मिलने के कारण वो बहुत कमजोर हो गए थे और काम पर भी नहीं जा पाते थे।
मुनिया को तो अब वैद्य जी का नाम सुनते ही घ्रणा हो जाती थी। तभी अचानक एक दिन गाँव में कोहराम मच गया।
पता चला कि वैद्य जी के इकलौते बेटे को साँप ने काट खाया था और वो किसी काम से शहर से बाहर गए थे। सब लोग ये बात सुनकर चिंतित हो गए पर किसी के पास भी माली काका से ये बात कहने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि वैद्य जी ने तो उन्हें मरने के लिए ही छोड़ दिया था।
पर मुनिया ने जब जाकर माली काका को सब बताया तो वो तुरंत उठने लगे पर तभी कमजोरी के कारण लड़खड़ाकर गिर पड़े। मुनिया ने उन्हें तुरंत आराम से लिटाया और माली काका की ओर देखा और जैसे वो दोनों एक दूसरे की बात समझ गए।
मुनिया जैसे बिजली की गति से सीधे वैद्य जी के घर की ओर दौड़ पड़ी और हाँफते हुए वहाँ कुछ ही मिनटों में पहुँच गई। उसने देखा कि वहाँ पर कोहराम मचा हुआ था और वैध जी का बेटा जमीन पर बेहोश पड़ा था। उनकी पत्नी का रो रोकर बुरा हाल था और वो बार बार अचेत होकर गिर रही थी। मुनिया भीड़ को चीरते हुई आगे गई और उसने पूछा- “साँप ने कहाँ काटा था?”
यह सुनकर वैद्य जी की पत्नी जैसे नींद से जागी और रोते हुए पैर की तरफ़ इशारा करने लगी। मुनिया ने ध्यान से जाकर बच्चे का पूरा पैर देखा और वह काटे गये स्थान पर साँप के निशान देखने की कोशिश करने लगी। पर उसे कहीं भी विषदंत के दो निशान नहीं दिखाई दिए। उसने कुछ सोचा और पास ही रखे लोटे में से पानी लेकर बच्चे के मुहँ पर छीटें मारने लगी। बच्चा कुनमुनाता हुआ उठ खड़ा हुआ। सब लोगो ने ख़ुशी के मारे मुनिया को गोदी में उठा लिया और पूछने लगे कि बच्चा उठ कैसे गया।
मुनिया बोली- “साँप ने इसको काटा नहीं था। कोई पानी वाला साँप होगा जो इसके पैर से छूकर निकल गया होगा और वो डर के मारे बेहोश हो गया।” वैद्य जी की पत्नी ने मुनिया को गले से लगा लिया और उसे बहुत सारे पैसे देने लगी पर मुनिया ने कुछ भी लेने से इन्कार कर दिया और अपने घर चली गई।
जब रात में वैद्य जी को ये बात पता चली तो उनकी आँखों से आँसूं निकल पड़े और वो मुनिया के आगे खुद को बहुत छोटा महसूस करते हुए मन ही मन नतमस्तक हो उठे। वे तुरंत मुनिया के घर की ओर रोते हुए चल पड़े जहाँ आंसुओं के साथ उनके मन से उनकी विकृत सोच और मानसिकता भी धूलि जा रही थी।
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